Miraculous Temple In South India: भारत में कई चमत्कारी मंदिर हैं, इन्हीं में से एक है केतु मंदिर जहां इस ग्रह को दूध चढ़ाने पर उसका रंग बदल जाता है। आइये जानते हैं कहां है केतु मंदिर और क्या हैं मान्यताएं (Ketu temple in Tamil Nadu)
Keezhaperumpallam Ketu Temple In Tamil Nadu: वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली के नौ ग्रहों में से दो राहु और केतु छाया ग्रह हैं। केतु तीन नक्षत्रों अश्विनी, मघा और मूल का स्वामी है। कलियुग में इन दोनों ग्रहों का सबसे ज्यादा प्रभाव माना जाता है। अगर कुंडली में ये छाया ग्रह खराब स्थिति में हों तो जातक के जीवन को परेशानियों से भर देते हैं। आइये जानते हैं केतु के प्रभाव और तमिलनाडु के चमत्कारी केतु मंदिर के बारे में (Keezhaperumpallam Naganathaswamy Temple)
वैदिक ज्योतिष के अनुसार इसके पीछे की वजह यह है कि केतु आध्यात्मिक जीवन, दुष्कर्म, दंड, छिपे हुए शत्रु, खतरे और गुप्त विद्या को नियंत्रित करता है। इसके साथ ही यह गहरी सोच, ज्ञान की आकांक्षा, बदलती घटनाओं, आध्यात्मिक विकास, धोखाधड़ी और मानसिक रोग से भी जुड़ा हुआ है। इसके साथ ही केतु को जातक के पिछले जन्म के कर्म का संकेतक भी माना जाता है और यह आपके वर्तमान जीवन की स्थितियों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ऐसे में केतु का कुंडली में अच्छा होना जातक की इच्छा पूर्ति, पेशेवर सफलता प्राप्त करने और समस्याओं से छुटकारा पाने में मदद करता है। इसके साथ ही बता दें कि केतु को ज्ञान का कारक, बुद्धि प्रदाता भी माना जाता है।
हिंदू ज्योतिष के अनुसार कुंडली में शुभ केतु परिवार में समृद्धि लाता है। वह जातक को अच्छा स्वास्थ्य और धन प्रदान करता है।
केतु ग्रह के स्वामी भगवान गणेश और अधिपति भगवान भैरव हैं। भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं और केतु के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए उनकी पूजा की जाती है। केतु रहस्य, तंत्र, और आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु का मुख्य दिन मंगलवार माना जाता है। इसलिए केतु का प्रभाव मंगल के समान होता है।
ऐसे में दक्षिण भारत में एक मंदिर है जहां केतु की पूजा की जाती है और जो जातक वहां जाकर पूजा में शामिल होता है। उसकी कुंडली से केतु के नकारात्मक प्रभाव समाप्त होते हैं और उसे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
कावेरी नदी के तट पर केतु का यह प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडु के कीझापेरुमपल्लम गांव में स्थित हैं, जिसे नागनाथस्वामी मंदिर या केति स्थल के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो इस मंदिर के मुख्य देव भगवान शिव है। लेकिन यहां केतु को सांप के सिर और असुर के शरीर के साथ स्थापित किया गया है। इस स्थान को वनगिरी भी कहा जाता है और यह दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध केतु मंदिरों में से एक है।
नागनाथस्वामी मंदिर का निर्माण चोल राजाओं ने कराया था। इस केतु मंदिर में, भगवान केतु उत्तर प्रहरम में पश्चिम की ओर मुख करके खड़े हैं। भगवान केतु दिव्य शरीर, पांच सिर वाले सांप के सिर और भगवान शिव की पूजा करते हुए हाथ जोड़कर दिखाई देते हैं। यह एक महत्वपूर्ण मंदिर है जहां पूजा करने से भक्तों को उनकी कुंडली में केतु दोष के बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि केतु देव के इस मंदिर में राहु देव के ऊपर दूध चढ़ाया जाता है और केतु दोष से पीड़ित व्यक्ति द्वारा चढ़ाया गया दूध नीला हो जाता है। हालांकि यह कैसे होता है यह अभी तक रहस्य है।
पौराणिक कथा के अनुसार ऋषि के श्राप से मुक्ति पाने के लिए केतु ने इसी मंदिर में भगवान शिव की आराधना की थी और तब शिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने यहां केतु को दर्शन दिए थे।