टीकमगढ़

छत पर लगे फव्वारों से बरसता था रंग, मंदिरों में भी खास व्यवस्था

टीकमगढ़. राजशाही दौर में होली खेलने के लिए शाही व्यवस्थाएं की गई थी। मऊचुंगी रोड पर बना जुगल निवास खास कर होली के लिए ही बनाया गया है। यहां पर होली खेलने के लिए जिले भर से आम और खास लोग पहुंचते थे। यहां पर रंग डालने के लिए उस समय छतों पर विशेष फव्वारे लगाए गए थे। यह व्यवस्था शहर के प्रमुख मंदिरों में भी की गई थी।

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Mar 19, 2025
टीकमगढ़. जुगल निवास का प्रवेश द्वार।

राजशाही दौर की होली: जुगल निवास में होता था सामूहिक आयोजन, गाई जाती थी फाग

टीकमगढ़. राजशाही दौर में होली खेलने के लिए शाही व्यवस्थाएं की गई थी। मऊचुंगी रोड पर बना जुगल निवास खास कर होली के लिए ही बनाया गया है। यहां पर होली खेलने के लिए जिले भर से आम और खास लोग पहुंचते थे। यहां पर रंग डालने के लिए उस समय छतों पर विशेष फव्वारे लगाए गए थे। यह व्यवस्था शहर के प्रमुख मंदिरों में भी की गई थी। राजशाही दौर की अनेक प्रमुख इमारतें शहर में मौजूद हैं। इसमें से अधिकांश अब खंडहर में तब्दील होती जा रही है। यह इमारतें क्यों बनाई गई थी, इसके पीछे भी हर कोई की अपनी कहानी है। ऐसी ही एक कहानी मऊचुंगी रोड पर स्थित जुगल निवास भवन की सामने आई है।

यह विशाल भवन आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। क्षत्रीय महासभा के जिलाध्यक्ष पुष्पेंद्र ङ्क्षसह बताते हैं कि यह भवन उस समय खास होली जैसे पर्व के लिए बनाया गया है। उनका कहना है कि उस समय तीन से चार हजार लोगों के कार्यक्रम के हिसाब से इस भवन में व्यवस्था की गई थी। इस भवन की छत पर विशाल हौदी का निर्माण किया गया था और छत पर नीचे की ओर फव्वारे लगाए गए थे।

पुष्पेंद्र ङ्क्षसह बताते हैं कि होली के पूर्व इन हौदी में टेसू सहित रंग बनाने वाले अन्य फूलों को भिगो दिया जाता था और उसका रंग तैयार किया जाता था। वहीं होली पर होने वाले आयोजन में इसी रंग को भवन के अंदर छतों के नीचे लगे फव्वारों से लोगों पर डाला जाता है। उन्होंने बताया कि यहां पर पूरे दिन आयोजन चलता था और फाग गायन की टोलियां अपनी प्रस्तुति देती थी।

मंदिरों में भी इंतजाम

इसी प्रकार रंग उड़ाने की व्यवस्था मंदिरों में थी। शहर के नजरबाग मंदिर के साथ ही जानकी बाग मंदिर की छतों पर भी फव्वारे लगे थे। समय के साथ यह व्यवस्था अब नहीं रही, लेकिन इन फव्वारों के अंश अब भी मौजूद हैं। नजरबाग मंदिर के पुजारी सुरेंद्र मोहन द्विवेदी बताते हैं कि मंदिर की छत पर यह फव्वारे अब भी हैं। एक बार बारिश के समय में छत से पानी रिसने पर जब उसकी मरम्मत के लिए काम किया गया तब फव्वारों के लिए बिछाई गई लाइन सामने आई थी। यहां पर भी छत पर पहले हौदी थी।

Updated on:
19 Mar 2025 05:08 pm
Published on:
19 Mar 2025 05:07 pm
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