टीकमगढ़ जिले में 6 नवंबर को तीन साल बाद रेत खदानों की नीलामी प्रक्रिया पूरी की गई। जिसमें 18 रेत खदानों के ठेके स्वीकृत किए गए। लेकिन स्वीकृत खदानों को छोड़ जिले की अस्वीकृत उर नदी की खदानों से अवैध खनन बेखौफ जारी है। जबकि जिले में ८४ रेत खदाने थी। उसमें से ६६ रेत […]
टीकमगढ़ जिले में 6 नवंबर को तीन साल बाद रेत खदानों की नीलामी प्रक्रिया पूरी की गई। जिसमें 18 रेत खदानों के ठेके स्वीकृत किए गए। लेकिन स्वीकृत खदानों को छोड़ जिले की अस्वीकृत उर नदी की खदानों से अवैध खनन बेखौफ जारी है। जबकि जिले में ८४ रेत खदाने थी। उसमें से ६६ रेत खदानों को बंद कर दिया है, लेकिन कारोबारी उन्ही में से रेत उठा रहे है।
जतारा की उर नदी कपासी घाट, खजरी घाट और पलेरा के बूदौर और संजय नगर गांव के पास से निकली नदी में सफेद पोशों के करीबियों ने पिछले दिनों अस्वीकृत खदानों तक खेतों में से नई कच्ची सडक़ तैयार कर ली है, ताकि ट्रैक्टर और हाइवा वाहन आसानी से रेत भरकर निकल सके। इसके चलते रात के समय इन मार्गों पर भारी वाहनों की आवाजाही बढ़ गई है। जबकि रेत खदानों का एरिया चिन्हित नहीं किया गया है।
रेत खनन वालों द्वारा वैध खदानों की जगह अवैध खदानों से रेत उठाई जा रही है। पर्यावरण मानकों की खुली अनदेखी के चलते खदानों में गहराई तक खुदाई की जा रही है। जिससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होगा, नदी तल लगातार नीचे जा रहा है। भविष्य में जलस्तर गिरने और कटाव बढऩे की आशंका है। स्थानीय लोगों का कहना है कि स्वीकृत खदानों पर निगरानी कड़ी है, लेकिन अस्वीकृत खदानें प्रशासन की आंखों के सामने अवैध खनन का अड्डा बनी हुई है।
राजस्व विभाग और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई के बावजूद जमीनी स्तर पर हालात नहीं बदल सके है। अवैध खनन में शामिल वाहन न तो चेकिंग के दौरान पकड़े जाते है और न ही कार्रवाई की कोई प्रभावी मिसाल सामने आई है।
ग्रामीणों ने बताया कि टोला टपरन से पिछले कुछ हफ्तों में ट्रैक्टर ट्रॉली और हाइवा वाहनों की आवाजाही अचानक बढ़ी है। रेत भरने के लिए बनाई गई नई राह से वाहनों को सीधे अवैध खदानों तक पहुंच मिल गई है। अस्वीकृत खदानों से रेत निकालना पूर्णत: प्रतिबंधित है, लेकिन निगरानी तंत्र की कमी और राजनीतिक संरक्षण के कारण अवैध खनन पर कोई प्रभावी रोक नहीं लग पाई है।
जानकारी के अनुसार जिले में ८४ रेत खदानें संचालित थी। इनमें से ५८ रेत खदानों को बंद कर दिया था और २६ रेत खदानों को चालू कर दिया था। वर्ष २०२१ से यह रेत खदानें बंद थी। वर्ष २०२५ में ६ नवंबर को १८ खदानों का ठेका हो गया। इसमें से ६ रेत खदानें लिधौरा, तीन रेत खदाने जतारा और ९ रेत खदानें पलेरा में दर्ज की गई।
जिले में लिधौरा की वीरपुरा, महेबा चंक्र चार, मडोरी, उपरारा चक्र दो, पचौरा, पचघरा, जतारा में लारखुर्द पराई नदी, टांनगा, हदयनगर और पलेरा में दांतगोरा, खेरा विजयपुर, खेरा विजयपुर, कछौरा उगड़, करौला, कुबरी, सैपुरा, टोरिया ऊगड और गोना रेत खदान को शासन ने स्वीकृति दी है।
संजय नगर उर नदी घाट पर राजस्व विभाग और पुलिस ने छापामार कार्रवाई की थी। इस कार्रवाई में ४० हाइवा रेत जब्त की थी और एक एलएनटी, जेसीबी और हाइवा जब्त किया था। उसके बाद से रेत का अवैध खनन और अधिक बढ़ गया है। स्वीकृत हो छोड़ अस्वीकृत रेत घाटों से रात दिन बड़े पैमाने पर रेत का अवैध खनन किया जा रहा है। हालात यह है कि अब इन कारोबारियों को शासन में बैठे नुमाइंदों का बिल्कुल भी डर नहीं रहा है, ये बेखौफ होकर उर नदी के अस्तित्व को मिटाने में लगे हुए है। बताया गया कि रेत का यह कारोबार सुबह 5 बजे से शुरू हो जाता है, जो शाम 7 बजे तक चलता रहता है।
कुछ दिन पहले रेत के घाट शुरू हो गए है। अगर अस्वीकृत रेत खदानों से रेत उठाई जाएंगी तो कार्रवाई की जाएगी। मंगलवार को पलेरा में चार और जतारा से मजना तक दो रेत के ट्रैक्टर ट्रालियों को जब्त किया गया है।