टीकमगढ़ राजशाही दौर में राजमहल के समीप रौरइया रानी के लिए निर्मित ऐतिहासिक रनवास आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। रनवास से जुड़ी रौरइया की झील जो कभी शहर की पहचान हुआ करती थी। वर्षों तक अतिक्रमण और कचरे का शिकार बनी रही। उसका जीर्णोंद्वार कार्य कराया गया, लोकापर्ण कर नपा को सौंपा […]
टीकमगढ़ राजशाही दौर में राजमहल के समीप रौरइया रानी के लिए निर्मित ऐतिहासिक रनवास आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। रनवास से जुड़ी रौरइया की झील जो कभी शहर की पहचान हुआ करती थी। वर्षों तक अतिक्रमण और कचरे का शिकार बनी रही। उसका जीर्णोंद्वार कार्य कराया गया, लोकापर्ण कर नपा को सौंपा गया, लेकिन २००९ से आज तक ताले में कैद है।
वर्ष 2009 में नगरपालिका द्वारा रौरइया परिसर के जीर्णोद्धार का कार्य कराया गया। इस दौरान झील से हजारों ट्रॉली कचरा निकाला गया और लाखों रुपए की लागत से सौंदर्यीकरण किया गया। शहरवासियों के भ्रमण के लिए चारों ओर सीमेंट की छत, गैलरी का निर्माण कराया गया। दीवारों पर तामिया कलर के आकर्षक संस्कार दर्शन से जुड़े चित्र भी लगाए गए।
योजना के तहत झील में फ व्वारा लगाने और महेंद्र सागर तालाब से पाइप लाइन के माध्यम से पानी भरने की व्यवस्था प्रस्तावित की गई थी। उद्देश्य था कि यह स्थल पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विकसित हो सके।
लेकिन दुर्भाग्यवश देखरेख और सुरक्षा के अभाव में यह पूरी योजना दम तोड़ती नजर आई। गैलरी में लगाए गए तामिया चित्र चोरी हो गए और परिसर वर्ष 2009 के बाद से ही ताले में कैद है। नगरपालिका की लापरवाही के चलते लाखों रुपए की लागत से किया गया कार्य बेकार साबित हो रहा है। मामले को लेकर सीएमओ ओमपाल सिंह भदौरिया से संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने व्यवस्था और सुविधा को लेकर कोई जबाव नहीं दिया।
यदि समय रहते सुरक्षा और नियमित रखरखाव किया गया होता, तो रौरइया आज शहर का प्रमुख सांस्कृतिक और पर्यटन स्थल बन सकता था। अब जरूरत है कि प्रशासन इस ऐतिहासिक धरोहर को पुन: संवारने और जिम्मेदारी तय करने की दिशा में ठोस कदम उठाए।