आरबीएसई 12वीं बोर्ड परीक्षा में ग्रामीण प्रतिभाओं ने रचा इतिहास: संघर्ष की राह से सफलता की उड़ान तक का सफर
शुभम कड़ेला/उदयपुर. राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से हाल ही में कक्षा 12 के सभी संकायों का परिणाम घोषित किया गया। जिसमें उदयपुर जिले की ग्रामीण क्षेत्र की प्रतिभाओं ने एक ओर जहां उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वहीं, कई प्रतिभाओं ने विपरीत हालात में भी अपने हौसले को टूटने नहीं दिया। जहां सीमित संसाधन और आर्थिक तंगी जैसी चुनौतियों ने राह में कांटे बिछाए, वहीं बेटियों और बेटों ने इन बाधाओं को पार करते हुए सफलता की ऊंची उड़ान भरी। चाहे मां की सिलाई मशीन हो, पिता का अधूरा सपना या बेटियों का मजबूत हौसला, इन सभी ने यह साबित किया कि अगर इरादे बुलंद हो तो हालात चाहे जैसे भी हो, मंजिल मिल ही जाती है।
धरियावद कस्बे की तंग गलियों में एक घर है, जहां हर धड़कन एक सपना बुन रही थी, सपना था एक उज्ज्वल भविष्य का। इसी घर से निकला यशराज सोनी, जिसने 12वीं विज्ञान संकाय में 90 प्रतिशत अंक हासिल कर महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय का टॉपर बनकर पूरे क्षेत्र का नाम रोशन किया। यह कहानी है एक मां के संघर्ष की, जिसने सिलाई मशीन के धागों में अपने बच्चों के सपनों को सील दिया। बताया कि यशराज की मां मनीषा सोनी के जीवन में अंधेरा उस दिन छा गया, जब उनके पति कमलेश सोनी की अचानक मौत हो गई। उस समय यशराज दूसरी कक्षा में था, और घर में दो और छोटे बच्चे थे। जीवन जैसे थम-सा गया था, लेकिन माता मनीषा टूटी नहीं और अपने बच्चों को शिक्षित करने की ठान ली। मां ने सिलाई मशीन संभाली, और उसी से तीन बच्चों की पढ़ाई, पालन-पोषण और जिंदगी की गाड़ी चलाई। कई बार उन्होंने यशराज को गोद में बैठाकर एक हाथ से मशीन चलाई और दूसरे हाथ से उसे पढ़ाया। दिन के 6-7 घंटे कपड़े सिलते-सिलते उन्होंने अपने बच्चों में आत्मविश्वास और अनुशासन का बीज बोया। जब यशराज के 90 प्रतिशत अंक आने की खबर मिली, उस समय मनीषा सिलाई मशीन पर काम कर रही थीं। खबर सुनते ही उनकी आंखें भर आईं। यशराज ने अपनी सफलता का श्रेय मां का त्याग व भाई-बहन के आपसी सहयोग को दिया।
मावली तहसील के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय वासनी कलां की कक्षा 12वीं की छात्रा सुगना भील ने अपनी मेहनत और लगन से कला संकाय में 94.40 प्रतिशत अंक प्राप्त कर परिवार और विद्यालय दोनों को गर्वित किया है। बताया कि सुगना के पिता मजदूरी करते है। शुरुआत में घरवाले चाहते थे कि वह डॉक्टर बने और इसलिए उन्हें विज्ञान विषय दिलवाया गया। लेकिन सुगना का रुझान खेलों की ओर था। जब उन्होंने हॉस्टल में रहकर पीटीआई बनने की इच्छा जताई, तो परिवार ने विरोध किया। लेकिन बाद में विकल्प के सहयोग और अपनी मेहनत से सुगना ने वॉलीबॉल में स्टेट और नेशनल स्तर तक का प्रतिनिधित्व किया। अपनी टीम के साथ मिलकर मैच जीतकर ट्रॉफी गांव लाई। वहीं, अब कक्षा 12 बोर्ड में भी 94.40 प्रतिशत हासिल किए तो परिवार ने भी पीटीआई की पढ़ाई के लिए हामी भर दी। सुगना ने बताया कि वह पढ़ाई पूरी कर पीटीआई बनेगी और हर जरूरतमंद की मदद करेंगी।
भींडर की चारवी चौबीसा ने परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति और सीमित संसाधनों के बावजूद अपने हौसले और मेहनत के दम पर 12वीं बोर्ड (विज्ञान संकाय) में 96.80 प्रतिशत अंक प्राप्त कर उपखंड स्तर पर टॉप किया। क्रिएटिव पब्लिक स्कूल, भींडर की छात्रा चारवी एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती है। उनके पिता स्टेशनरी की दुकान चलाते है और मां गृहिणी है। आर्थिक चुनौतियों के बावजूद परिवार ने कभी भी चारवी की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। उनके समर्थन और चारवी के आत्मविश्वास व परिश्रम ने मिलकर इस सफलता की कहानी लिखी। चारवी ने बताया कि बेटियां अगर ठान लें, तो हर मुश्किल राह को भी आसान बना सकती है। चारवी की यह सफलता महिला सशक्तीकरण की एक प्रेरणादायक मिसाल है, जो दर्शाती है कि अवसर मिलने पर बेटियां न केवल अपने, बल्कि पूरे समाज का भविष्य बदल सकती है।
नयागांव उपखंड की ग्राम पंचायत छाणी की बेटी ईशा पटेल की आंखें नम है, लेकिन उनमें उम्मीद की चमक बाकी है। राजस्थान बोर्ड की 12वीं कक्षा में उसने 93.40 प्रतिशत अंक अर्जित किए है। उसके पिता बंशीलाल पटेल उसे एक दिन आईएएस अधिकारी के रूप में देखना चाहते थे। मगर अफसोस... यह परिणाम उसके पिता देख नहीं सके। परिणाम आने से एक दिन पहले ही ईशा ने अपने पिता को खो दिया। ईशा का परिणाम जैसे ही घोषित हुआ, पूरे घर वाले उसकी सफलता पर गर्व कर रहे थे। वहीं, ईशा बस एक ही बात कहती रही कि पापा, आपके सपने को पूरा करने की ओर पहला कदम रख दिया है...। बता दें कि उसके पिता का सपना था कि उनकी बेटी एक दिन कलक्टर बने, देश की सेवा करे, और अपने गांव-समाज का नाम रोशन करे। उन्होंने हमेशा ईशा को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया, उसका हौसला बढ़ाया, और उसकी मेहनत पर विश्वास जताया। ईशा ने बताया कि मैं देश की सेवा करूं, यही उनका सपना था, और यही अब मेरा लक्ष्य है।