Udaipur News: 1989 में पेराफेरी में शामिल गांवों को 35 साल, जबकि 2009 में शामिल गांवों को 16 साल बीत चुके हैं। इन गांवों में आज भी हजारों परिवार पट्टे के इंतजार में हैं। पट्टा नहीं होने से ग्रामीणों की जिंदगी पूरी तरह जकड़ी हुई है।
Udaipur News: राजस्थान के उदयपुर शहर का विस्तार हुआ, नक्शे बदले, पेराफेरी बढ़ती चली गई, पर इस विकास की सबसे बड़ी कीमत गांवों ने चुकाई। यूआइटी से लेकर यूडीए तक पेराफेरी का बार-बार विस्तार हुआ पर 1989, 2009 और अब 2025 में किए इस विस्तार के दौरान बिना सर्वे हजारों बीघा बिलानाम और चारागाह भूमि यूडीए के नाम दर्ज कर दी गई,जबकि इन जमीनों पर दशकों से सघन आबादी बसी हुई है।
ग्रामीणों का कहना था कि जो जमीनें पहले राज्य सरकार के खाता नंबर-1 में दर्ज थी, उन पर पंचायतें पट्टे जारी कर रही थी पर जैसे ही ये गांव पेराफेरी में आए, पंचायतों के हाथ बंध गए और पट्टा प्रक्रिया पूरी तरह ठप हो गई। नतीजा यह कि गांव शहर से जुड़े, पर ग्रामीण कानूनी अधिकारों से कटते चले गए।
1989 में पेराफेरी में शामिल गांवों को 35 साल, जबकि 2009 में शामिल गांवों को 16 साल बीत चुके हैं। इन गांवों में आज भी हजारों परिवार पट्टे के इंतजार में हैं। जमीन का रिकॉर्ड यूआइटी/यूडीए के नाम होने से पंचायतें चाहकर भी पट्टा नहीं दे सकती और वर्षों से बसे लोग कागजों में अतिक्रमणकारी बनते जा रहे हैं।
पट्टा नहीं होने से ग्रामीणों की जिंदगी पूरी तरह जकड़ी हुई है। उन्हेें बैंक लोन नहीं मिल रहा। पीएम आवास और शौचालय की राशि स्वीकृत होने के बावजूद निर्माण नहीं करवा पा रहे। पंचायतें सड़क, सामुदायिक भवन, शौचालय तक नहीं बना सकती है। यूडीए अनापत्ति प्रमाण पत्र देने से इंकार करता है, इससे पंचायतों को काम भी पूरी तरह से ठप पड़ा है।
4 जनवरी 2022 को आदेश जारी हुआ कि आबादी से सटी भूमि पंचायतों को हस्तांतरित की जाए। पहली सूची में 40 पंचायतों को 214 हेक्टेयर, दूसरी सूची में 4 पंचायतों को 139 बीघा भूमि दी गई। पर कई पंचायतों को कुछ भी नहीं मिला, जबकि कई बिलानाम आबादी जानबूझकर छोड़ दी गई। यहीं से ग्रामीणों का आक्रोश और आंदोलन तेज हो गया।
हाल में यूडीए पेराफेरी में 70 नए गांव जोड़ दिए, पर यहां भी बिना सर्वे आदेश जारी कर दिए गए कि बिलानाम और चरागाह भूमि यूडीए के नाम दर्ज कर दी जाए, जबकि इन गांवों में भी पुरानी आबादी और बसावट पहले से मौजूद है।
नगर निगम विस्तार में शामिल 23 गांवों से 2016 के नियमों के तहत आवेदन लिए गए, पर अब निगम 1992 से पहले के दस्तावेज मांग रहा है। नतीजा यह कि सारी प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद पट्टे आज तक अटके हुए हैं।
ग्रामीणों का मानना है कि जिला कलक्टर 4 जनवरी 2022 के आदेश का पूरा पालन कराए। यूडीए आबादी वाली जमीन पंचायतों को सौंपे, नगर निगम पट्टा नियमों में शिथिलता दे और जनता को अवैध नहीं, नागरिक माना जाए।