उदयपुर

राजस्थान: 35 साल से बसे गांव आज भी अवैध, हजारों परिवार को पट्टे मिलने का इंतजार

Udaipur News: 1989 में पेराफेरी में शामिल गांवों को 35 साल, जबकि 2009 में शामिल गांवों को 16 साल बीत चुके हैं। इन गांवों में आज भी हजारों परिवार पट्टे के इंतजार में हैं। पट्टा नहीं होने से ग्रामीणों की जिंदगी पूरी तरह जकड़ी हुई है।

2 min read
Dec 21, 2025
प्रतीकात्मक तस्वीर- Photo: patrika

Udaipur News: राजस्थान के उदयपुर शहर का विस्तार हुआ, नक्शे बदले, पेराफेरी बढ़ती चली गई, पर इस विकास की सबसे बड़ी कीमत गांवों ने चुकाई। यूआइटी से लेकर यूडीए तक पेराफेरी का बार-बार विस्तार हुआ पर 1989, 2009 और अब 2025 में किए इस विस्तार के दौरान बिना सर्वे हजारों बीघा बिलानाम और चारागाह भूमि यूडीए के नाम दर्ज कर दी गई,जबकि इन जमीनों पर दशकों से सघन आबादी बसी हुई है।

ग्रामीणों का कहना था कि जो जमीनें पहले राज्य सरकार के खाता नंबर-1 में दर्ज थी, उन पर पंचायतें पट्टे जारी कर रही थी पर जैसे ही ये गांव पेराफेरी में आए, पंचायतों के हाथ बंध गए और पट्टा प्रक्रिया पूरी तरह ठप हो गई। नतीजा यह कि गांव शहर से जुड़े, पर ग्रामीण कानूनी अधिकारों से कटते चले गए।

ये भी पढ़ें

2.5 अरब साल पुरानी अरावली पर्वतमाला के साथ छेड़छाड़ करना मनुष्य के लिए हो सकता है घातक, क्या बोले विशेषज्ञ?

पेराफेरी में आते ही रुक गए पट्टे, पंचायतें बेबस

1989 में पेराफेरी में शामिल गांवों को 35 साल, जबकि 2009 में शामिल गांवों को 16 साल बीत चुके हैं। इन गांवों में आज भी हजारों परिवार पट्टे के इंतजार में हैं। जमीन का रिकॉर्ड यूआइटी/यूडीए के नाम होने से पंचायतें चाहकर भी पट्टा नहीं दे सकती और वर्षों से बसे लोग कागजों में अतिक्रमणकारी बनते जा रहे हैं।

घर है लेकिन सुरक्षा नहीं, योजना है, लेकिन निर्माण नहीं

पट्टा नहीं होने से ग्रामीणों की जिंदगी पूरी तरह जकड़ी हुई है। उन्हेें बैंक लोन नहीं मिल रहा। पीएम आवास और शौचालय की राशि स्वीकृत होने के बावजूद निर्माण नहीं करवा पा रहे। पंचायतें सड़क, सामुदायिक भवन, शौचालय तक नहीं बना सकती है। यूडीए अनापत्ति प्रमाण पत्र देने से इंकार करता है, इससे पंचायतों को काम भी पूरी तरह से ठप पड़ा है।

2022 का फैसला कागजों तक सिमटा, जमीन पर नहीं उतरा

4 जनवरी 2022 को आदेश जारी हुआ कि आबादी से सटी भूमि पंचायतों को हस्तांतरित की जाए। पहली सूची में 40 पंचायतों को 214 हेक्टेयर, दूसरी सूची में 4 पंचायतों को 139 बीघा भूमि दी गई। पर कई पंचायतों को कुछ भी नहीं मिला, जबकि कई बिलानाम आबादी जानबूझकर छोड़ दी गई। यहीं से ग्रामीणों का आक्रोश और आंदोलन तेज हो गया।

UDA: 70 नए गांव, वही पुरानी गलती

हाल में यूडीए पेराफेरी में 70 नए गांव जोड़ दिए, पर यहां भी बिना सर्वे आदेश जारी कर दिए गए कि बिलानाम और चरागाह भूमि यूडीए के नाम दर्ज कर दी जाए, जबकि इन गांवों में भी पुरानी आबादी और बसावट पहले से मौजूद है।

Udaipur: नगर निगम में भी अटके पट्टे

नगर निगम विस्तार में शामिल 23 गांवों से 2016 के नियमों के तहत आवेदन लिए गए, पर अब निगम 1992 से पहले के दस्तावेज मांग रहा है। नतीजा यह कि सारी प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद पट्टे आज तक अटके हुए हैं।

ग्रामीणों की प्रमुख मांगें

  • नगर निगम में शामिल 23 गांवों को धारा 69 ए में 31 दिसंबर 2024 तक की बसावट मानते हुए पट्टे दिए जाए। जिन पंचायतों में पहले आपत्तियां जारी हो चुकी, वहां विशेष राहत मिले।
  • यूडीए पेराफेरी में आबादी से सटी भूमि पंचायतों को ट्रांसफर करे। बिना नोटिस तोड़े गए मकानों का मुआवजा दिया जाए। भविष्य में पूरी सुनवाई के बिना कार्रवाई नहीं की जाए।
  • पहाड़ी क्षेत्रों के गांवों को पेराफेरी से बाहर किया जाए।
  • घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू जातियों को पट्टे और यूडीए की अनापत्ति जारी की जाए।

ग्रामीणों का मानना है कि जिला कलक्टर 4 जनवरी 2022 के आदेश का पूरा पालन कराए। यूडीए आबादी वाली जमीन पंचायतों को सौंपे, नगर निगम पट्टा नियमों में शिथिलता दे और जनता को अवैध नहीं, नागरिक माना जाए।

  • चंदनसिंह देवड़ा, संघर्ष समिति संयोजक

ये भी पढ़ें

महिलाएं गोबर से हर माह कमा सकती हैं लाखों रुपए, जानिए कैसे

Published on:
21 Dec 2025 09:42 am
Also Read
View All

अगली खबर