
फोटो- जय माखीजा
Aravalli Mountain Range: अरावली पर्वतमाला संसार की सबसे प्राचीन और सर्वाधिक संवेदनशील पर्वत प्रणालियों में से एक है। इसकी उत्पत्ति लगभग 2.5 अरब साल पुरानी मानी जाती है। अरावली पर्वतमाला की कुल लंबाई करीब 692 किलोमीटर है, जिसमें से 550 किलोमीटर हिस्सा राजस्थान से होकर गुजरता है। इसकी सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर है, जो राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित है। जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 1,727 मीटर है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इसके स्वरूप से किसी भी तरह की छेड़छाड़ भविष्य में गंभीर पर्यावरणीय संकट को जन्म दे सकती है। इसका दुष्प्रभाव केवल राजस्थान या उत्तर भारत तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और पूर्वी एशिया के इको-सिस्टम पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अरावली की पहाड़ियों को परिभाषित करने के लिए 100 मीटर की ऊंचाई के मापदंड को स्वीकार किया है। जिसके अनुसार किसी पहाड़ी को तभी अरावली माना जाएगा, जब वह अपने स्थानीय धरातल से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची हो।
विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले भूभाग को ही पर्वत माना गया, तो अरावली का लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र खनन और व्यावसायिक गतिविधियों के लिए खुल जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो पहाड़ रेगिस्तान में बदल जाएंगे।
पर्यावरण कार्यकर्ता और शोधकर्ता डॉ. हिमांशु ठक्कर का कहना है कि अरावली केवल एक पर्वतमाला नहीं, बल्कि जीवन देने वाली संजीवनी के समान है। इसके संरक्षण में नदियां, पहाड़, वन्यजीव, वनस्पतियां, हरियाली और यहां तक कि हमारी सांसें भी सुरक्षित हैं। ऐसे में इस अमूल्य प्राकृतिक विरासत को केवल ऊंचाई के पैमाने में बांधना उचित नहीं है। ऐसा करना भविष्य के लिए गंभीर और घातक परिणामों को दावत देने जैसा होगा।
पर्यावरण चिंतक और लेखक अभिषेक शर्मा का कहना है कि करीब आधे राजस्थान में फैली अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान की जलवायु, वर्षा, भू-जल, जैव विविधता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है। इसे ऊंचाई के सीमित पैमाने में बांधना वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत खतरनाक है। इसके दुष्परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ियों को भोगने पड़ेंगे। अरावली का पूरी तरह से संरक्षण सुनिश्चत होना चाहिए। नहीं तो आने वाले वर्षों में राजस्थान को गंभीर जल और पर्यावरण संकट का सामना करना पड़ सकता है।
कैम्बियन युगीन अरावली पर्वत माला राजस्थान सहित उत्तर पश्चिमी भारत की मुख्य पर्वत श्रृंखला व प्राकृतिक धरोहर है। इसे राजस्थान की लाइफ लाइन माना जाता है। यह प्रदेश के पर्यावरण, जल संसाधनों और जीवन प्रणाली की रीढ़ है।
शुष्क प्रदेश राजस्थान में अरावली पर्वतमाला प्राकृतिक जल संचय और भूजल रिचार्ज का सबसे बड़ा आधार है। इसी पर्वतमाला के क्षेत्र में प्रदेश के कई प्रमुख बांध, झीलें और जलाशय स्थित हैं, जो पेयजल, सिंचाई और पर्यावरण संतुलन के लिए अहम भूमिका निभाते हैं।
अरावली पर्वतमाला थार के मरुस्थल के विस्तार को रोकने वाली एक प्राकृतिक दीवार के रूप में कार्य करती है। यदि यह पर्वतमाला कमजोर हुई तो रेगिस्तान का प्रसार तेजी से फैल सकता है। जिससे उपजाऊ भूमि के बंजर में बदलने का खतरा बढ़ जाएगा।
प्रदेश में बंगाल की खाड़ी से आने वाला मानसून कमजोर हो जाएगा। इसके अलावा अरावली पर्वत माला से राजस्थान जैव विविधता, स्थानीय लोगों के रोजगार, कृषि और पर्यटन समेत अनेक गतिविधियां नियंत्रित होती हैं। इसलिए अरावली का संरक्षण अति आवश्यक है।
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि अरावली नहीं बची तो कुछ नहीं बचेगा। अरावली पवर्तमाला की छोटी पहाड़ियां भी उतनी ही अहम है जितनी बड़ी चोटियां। अगर दीवार में एक भी ईंट कम हुई, तो सुरक्षा टूट जाएगी।
गहलोत खुद 'अरावली बचाओ मुहिम' के समर्थन में उतरे हैं। उन्होंने #SaveAravalli अभियान का समर्थन करते हुए अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल पिक्चर बदली है। गहलोत ने कहा कि यह महज एक फोटो बदलना नहीं, बल्कि उस नई परिभाषा के खिलाफ एक सांकेतिक विरोध है।
अशोक गहलोत ने कहा कि अगर 100 मीटर से ऊपरी भाग को ही पर्वत माना जाएगा तो लगभग 80 प्रतिशत अरावली में खनन और अनेक व्यावसायिक गतिविधि होने से अरावली पर्वतमाला नष्ट हो जाएगी।
अरावली पवर्तमाला और यहां के जंगल एनसीआर और आस-पास के शहरों के लिए 'फेफड़ों' का काम करते हैं। ये धूल भरी आंधियों को रोकते हैं और प्रदूषण कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
जब अरावली के रहते हुए स्थिति इतनी गंभीर है तो अरावली के बिना स्थिति कितनी वीभत्स होगी, इसकी कल्पना भी डरावनी है। गहलोत ने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट भावी पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए 100 मीटर की ऊंचाई वाली परिभाषा पर पुनर्विचार करने की अपील की है।
इनका कहना है
अरावली पर्वत माला वर्तमान में दोराहे पर खड़ी है। इसके पारिस्थिति की, जलविज्ञान और आर्थिक लाभ अत्यधिक हैं, परन्तु ये अनसस्टेनेबल मानव गतिविधियों से तेजी से खतरे में है। खनन नियमों की कठोर अनुपालन, क्षतिग्रस्त भूमि की पुनस्थापना और समुदाय आधारित जल प्रबंधन को बढ़ावा देकर विकास और संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करना इस प्राचीन पर्वत प्रणाली को भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने के लिए अनिवार्य है। अगर 100 मीटर से ऊपरी भाग को ही पर्वत माना जाएगा तो लगभग 80 प्रतिशत अरावली में खनन और अनेक व्यावसायिक गतिविधि होने से अरावली पर्वतमाला नष्ट हो जाएगी।
पहाड़ मौसम को प्रभावित करते हैं और वर्षा के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाते हैं। पूर्वी राजस्थान में अपेक्षाकृत ज्यादा वर्षा होने का एक प्रमुख कारण अरावली पर्वतमाला है। यह मानसूनी हवाओं को रोक लेती है, जिससे पूर्वी राजस्थान में वर्षा की मात्रा बढ़ जाती है। इसके विपरीत, पश्चिमी राजस्थान में अरावली पर्वतमाला का प्रभाव कम होने के कारण वहां बारिश नहीं के बराबर होती है, जो क्षेत्र के मरुस्थलीय स्वरूप का एक बड़ा कारण है। हालांकि, इसमें पर्वतों की ऊंचाई की भी अहम भूमिका होती है।
अरावली की अधिकांश पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंचाई की हैं। यदि इन्हें खोदना शुरू कर दिया गया तो पहाड़ पठार में बदल जाएंगे और चारों ओर कंकर ही कंकर दिखाई देंगे। इससे पर्यावरण को भारी नुकसान होगा। अरावली को बचाने के लिए अब देश और राजस्थान में बड़े स्तर पर जनजागरण अभियान छेड़ने की जरूरत है। अरावली की पहाड़ियों को नहीं बचाया तो आने वाला समय देश के लिए भयावह होगा।
Updated on:
19 Dec 2025 07:04 pm
Published on:
19 Dec 2025 06:22 pm
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