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क्या रेगिस्तान बनने की ओर बढ़ रहा राजस्थान? आगे कैसा होगा अरावली का भविष्य, विशेषज्ञ बोले- यह ‘डेथ वारंट’ पर हस्ताक्षर जैसा

राजस्थान की लाइफलाइन कही जाने वाली अरावली पर्वत शृंखला को लेकर हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से पर्यावरण विशेषज्ञ चिंतित हैं। इस निर्णय के मुताबिक, 100 मीटर तक ऊंचाई वाले पहाड़ों पर खनन की अनुमति मिल गई है। आशंका है कि इसके लागू होते ही अरावली पर्वत शृंखला का पूरा क्षेत्र रेगिस्तान हो जाएगा।

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जयपुर

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Arvind Rao

Dec 12, 2025

Rajasthan Heading Toward Desert

अरावली पर्वत (फोटो- पत्रिका)

जयपुर: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय की वह परिभाषा मान ली, जिसमें अरावली पहाड़ियों को सिर्फ भू-भाग माना गया है, जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से ज्यादा है। इसका मतलब है कि अरावली का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा, जो 100 मीटर से कम है अब पहाड़ी नहीं माना जाएगा।

भविष्य में वहां खनन के रास्ते खुल सकते हैं। कोर्ट ने कहा है कि वैज्ञानिक मैपिंग से पहले कोई नई खनन लीज जारी नहीं होगी। देखने में यह आदेश सुरक्षात्मक लगता है, लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों के सामने बड़ा सवाल है, जो अरावली 100 मीटर से नीचे है, उसका क्या होगा?

राजस्थान में अरावली का बड़ा हिस्सा 30 से 80 मीटर ऊंचाई में है। तो क्या नई परिभाषा के चलते दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक को खनन लॉबी के हवाले कर दिया जाएगा? और अगर इन्हें पहाड़ी नहीं माना जाएगा तो संरक्षण कैसे होगा?

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर लक्ष्मीकांत शर्मा ने ने बताया कि एक सिंगल नंबर 100 मीटर पूरी अरावली के भविष्य का फैसला कर सकता है। अभी आपत्ति क्या है? कोर्ट तो कह रहा है कि सर्वे होने तक नई खनन लीज रोकें। समस्या 100 मीटर वाली शर्त है। सरकार कह रही है कि 100 मीटर से ऊपर ही अरावली मानी जाएगी। इससे 90 प्रतिशत अरावली स्वतः बाहर हो जाएगी। राजस्थान में अधिकांश अरावली 30-80 मीटर है, यानी सीधा खतरे में।

अरावली की क्या अहमियत है?

ऊपरी अरावली : दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा। दिल्ली का रायसीना हिल भी अरावली का हिस्सा था।
मध्य अरावली : दिल्ली से नीचे राजस्थान तक, उदयपुर क्षेत्र तक फैला हिस्सा।
निचला अरावली : गुजरात तक बढ़ने वाला हिस्सा।
पूरी अरावली का 80% राजस्थान में है। सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर (1,727 मीटर) माउंट आबू में है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्या खतरा दिख रहा है?

गुरुग्राम और राजस्थान में अधिकतर अरावली 30 मीटर से भी कम है। खनन माफिया पहले से ही 100 मीटर से थोड़ी ऊपर की पहाड़ियों को काटकर 100 मीटर से नीचे ला रहे हैं, ताकि आगे पूरी तरह नष्ट कर सकें। क्योंकि अब 100 मीटर से कम अरावली नहीं मानी जाएगी।

सस्टेनेबल माइनिंग? कोर्ट तो यही कह रहा

सस्टेनेबल माइनिंग सिर्फ रणनीतिक या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए होनी चाहिए, न कि व्यावसायिक कमाई के लिए। हजारों साल पुरानी 2.6 अरब वर्ष पुरानी अरावली सिर्फ मुनाफे के लिए नहीं हटाई जा सकती। यही पर्वतमाला उत्तर भारत के मौसम, नदियों, जैव विविधता और संस्कृति को आकार देती है।

पर्यावरण मंत्रालय क्या कर रहा है?

मंत्रालय हमेशा से मौजूद है, लेकिन 30 प्रतिशत अरावली पहले ही गायब हो चुकी है। रायसीना हिल भी ब्रिटिशकाल में समतल कर दिया गया था। आजादी के बाद भी खनन कभी नहीं रुका। तीन लॉबी जिम्मेदार बताई जाती हैं, एनसीआर में रियल एस्टेट माफिया, राजस्थान में खनन माफिया और उदयपुर-गुजरात क्षेत्र में पर्यटन माफिया।

इस पर्वतमाला को ‘महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी क्षेत्र’ घोषित करे सरकार

जयपुर में बापू नगर स्थित विनोबा ज्ञान मंदिर से ‘अरावली विरासत जन अभियान’ की शुरुआत हुई। इसमें पीपल यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के नेतृत्व वाली एक समिति की ओर से दी गई अरावली की एकसमान परिभाषा को रद्द करे, ताकि भारत की पारिस्थितिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की जा सके।

साथ ही गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में फैली अरावली पर्वतमाला को ‘महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी क्षेत्र’ घोषित किया जाए। अरावली की पहाड़ियों से खनन किए गए कच्चे पत्थरों का उपयोग बंद हो। पीपल फॉर अरावली की संस्थापक सदस्य नीलम अहलूवालिया ने कहा कि कोर्ट के हालिया निर्णय के मुताबिक, 90 प्रतिशत से अधिक अरावली अब संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी और खनन के लिए खोल दी जाएंगी।

हरियाणा और गुजरात में यह पहाड़ियां कम ऊंची हैं और 100 मीटर के मानक को पूरा नहीं करतीं। कार्यक्रम में दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा और प्रदेश के विभिन्न जिलों के संगठनों और पर्यावरण प्रेमियों ने शिरकत की।

सांस्कृतिक पहचान आजीविका इसी पर निर्भर

सिरोही स्थित भाखर भित्रोत विकास मंच के लक्ष्मी और बाबू गरासिया ने कहा कि गरासिया जनजाति की सांस्कृतिक पहचान, आजीविका और जीवन निर्वाह सीधे तौर पर अरावली पहाड़ियों, जंगलों और इसके प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। ऐसे में अरावली का पूरी तरह से संरक्षण सुनिश्चत होना चाहिए।

अरावली हमारी लाइफलाइन, खनन का निर्णय डेथ वारंट पर हस्ताक्षर जैसा

देश की सबसे पुरानी करीब 700 किमी. लंबी अरावली पर्वत शृंखला पर खनन को यदि नहीं रोका गया तो 90 प्रतिशत अरावली पर्वत शृंखला देखने को नहीं मिलेगी। इसके दुष्परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ियों को भोगने पड़ेंगे। प्राकृत भारती समिति के तत्वावधान में मालवीय नगर में हुए सेमिनार में विभिन्न व€क्ताओं ने ये विचार साझा किए।

आयोजन से कई व€क्ता ऑनलाइन भी जुड़े। सभी ने अरावली पर्वत पर खनन से जुड़े सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय पर चर्चा की। इसके मुताबिक 100 मीटर तक ऊंचाई वाले पहाड़ों पर खनन की अनुमति मिल गई है। इस निर्णय को व€क्ताओं ने अरावली के डेथ वारंट पर हस्ताक्षर जैसा बताया।

साथ ही कहा कि सरकार ने न्यायालय के समक्ष जनता का पक्ष सही तरीके से नहीं रखा, ऐसे में एक कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर आया फैसला उचित नहीं है। सचिव गिरधारी सिंह बापना ने कहा कि अरावली को 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियां मानने वाली पर्यावरण मंत्रालय की परिभाषा को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकार किए जाने से पर्यावरण विशेषज्ञों में चिंता बढ़ गई है। फॉरेस्ट कंजरवेशन ए€क्ट की तरह माउंट कंजरवेशन ए€क्ट बने।

निर्णय लागू होने पर 8 फीसदी अरावली ही बचेगी

जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि पहले सरकार प्रकृति, पानी और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को बहुत गंभीरता से लेती थी। यदि यह निर्णय लागू हो गया तो 7 से 8 प्रतिशत अरावली ही बचेगी। विधानसभा में विपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने कहा कि यह अरावली नहीं बची तो कुछ नहीं बचेगा। जयेश जोशी ने कहा कि इस निर्णय से आदिवासियों को नुकसान होगा, जीव-जंतु और अभ्यारण्य सब समाप्त हो जाएंगे।