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अरावली नहीं बची तो देश का भविष्य संकट में

- सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पद्मश्री भांभू की चेतावनी, जनजागरण से लेकर आंदोलन करेंगे - पहाड़ खत्म हुए तो थार बनेगा मौत का मैदान, जरूरत पड़ी तो न्यायालय की लेंगे शरण

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If the Aravalli range is not saved, the future of the country will be in danger.

If the Aravalli range is not saved, the future of the country will be in danger.

अरावली पर्वतमाला को बचाने के लिए अब देश और प्रदेश में बड़े स्तर पर जनजागरण अभियान छेड़ने की जरूरत है। यदि इसके लिए संघर्ष और आंदोलन की राह भी अपनानी पड़ी, तो पीछे नहीं हटेंगे। यह चेतावनी पद्मश्री पर्यावरणविद् व किसान हिम्मताराम भांभू ने दी। अरावली से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। अरावली की पहाड़ियों नहीं बचाया तो आने वाला समय देश के लिए भयावह होगा। खनन माफिया अरावली को पर्वत शृंखला को खोखला कर देंगे। इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम थार मरुस्थल, राजस्थान और पश्चिमी भारत को भुगतना पड़ेगा।

पहाड़ रेगिस्तान में बदल जाएंगे

गुरुवार को मेवाड़ चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री भवन में राजस्थान पत्रिका से विशेष बातचीत में भांभू ने कहा कि अरावली की अधिकांश पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंचाई की हैं। यदि इन्हें खोदना शुरू कर दिया गया तो पहाड़ पठार में बदल जाएंगे और चारों ओर सिर्फ कंकर ही कंकर दिखाई देंगे। इससे पर्यावरण को ऐसा नुकसान होगा, जिससे बच पाना असंभव होगा। उन्होंने बताया कि हाल ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात के दौरान भी उन्होंने यही सवाल उठाया था कि जब हमने पहाड़ बनाए ही नहीं, तो उन्हें नष्ट करने का अधिकार हमें किसने दिया।

जाएंगे न्यायालय, सरकार को देंगे ज्ञापन

भांभू ने स्पष्ट किया कि अरावली को बचाने के लिए पुनः न्यायालय की शरण ली जाएगी। केंद्र और राज्य सरकार को ज्ञापन सौंपे जाएंगे। जरूरत पड़ी तो धरना, प्रदर्शन और आंदोलन किए जाएंगे। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अरावली को बचाए, क्योंकि यदि अरावली नहीं बचेगी तो हम भी नहीं बचेंगे।

2030 तक पांच लाख बच्चों को जागरूक करने का लक्ष्य

भांभू ने कहा कि वर्ष 2030 तक कम से कम पांच लाख बच्चों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक किया जाएगा। स्कूलों और कॉलेजों में कार्यशालाओं के माध्यम से बच्चों को यह संदेश दिया जाएगा कि वे जीवन में कम से कम 50 पौधे लगाकर उन्हें वृक्ष बनने तक संरक्षित करें।

साढ़े सात लाख पौधे, साढ़े पांच लाख बने पेड़

भांभू अब तक साढ़े सात लाख पौधे लगा चुके हैं, जिनमें से साढ़े पांच लाख पेड़ बन चुके हैं। छह हेक्टेयर भूमि पर 11 हजार वृक्षों का जंगल विकसित किया गया है, जो हर वर्ष प्राणवायु (ऑक्सीजन) प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि बढ़ते प्रदूषण और अंधाधुंध विकास के कारण अब पेड़ भी कम पड़ने लगे हैं। यदि जल नहीं बचा तो आने वाले समय में युद्ध जैसी स्थिति भी बन सकती है।