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मळमास में 14 जनवरी तक रहेंगे विवाह व मांगलिक कार्य निषेध

- दान-पुण्य, सेवा और विष्णु-सूर्य उपासना से मिलेगा अक्षय पुण्य -पशु-पक्षियों की सेवा का विशेष महत्व

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Marriages and auspicious ceremonies will remain prohibited during Malmas until January 14th.

Marriages and auspicious ceremonies will remain prohibited during Malmas until January 14th.

सनातन धर्म में विशेष महत्व रखने वाले मळमास का शुभारंभ हो गया है। मळमास को आत्मिक शुद्धि, संयम और पुण्य अर्जन का श्रेष्ठ काल माना गया है। इस अवधि में भगवान विष्णु और भगवान सूर्य की उपासना, धार्मिक ग्रंथों के पठन-पाठन, जप, तप, हवन और दान-पुण्य को अत्यंत फलदायी बताया गया है। मळमास 16 दिसंबर से शुरू हो गया है। पूर्णाहुति 14 जनवरी को होगी। इसके बाद एक बार फिर विवाह व अन्य मांगलिक कार्यक्रमों की शुरुआत होगी।

पंडित अशोक व्यास ने बताया कि मळमास के दौरान विवाह, गृह प्रवेश, नींव पूजन, नव प्रतिष्ठान शुभारंभ, यज्ञोपवीत संस्कार सहित सभी मांगलिक कार्य निषेध रहते हैं। हालांकि इस अवधि में नामकरण संस्कार और नक्षत्र शांति जैसे कार्यक्रम किए जा सकते हैं।

पशु-पक्षियों और जरूरतमंदों की सेवा का विशेष महत्व

मळमास के दौरान श्रद्धालु पशु-पक्षियों और जरूरतमंद, असहाय लोगों की सेवा में जुटेंगे। घरों में गुलगुले बनाकर श्वान और पक्षियों को खिलाने की परंपरा निभाई जाएगी। मान्यता है कि मळमास में चील को गुलगुले खिलाना विशेष पुण्यदायी होता है। इसके साथ ही गरीब, निराश्रित और जरूरतमंद लोगों को अन्न, वस्त्र, कंबल और गर्म कपड़ों का दान किया जाएगा। पशुओं के लिए गुड़, चारा, घास और सर्दी से बचाव की व्यवस्था भी की जाएगी।

विष्णु-सूर्य उपासना और धार्मिक अनुष्ठानों का महत्व

पंडित व्यास के अनुसार मळमास में भगवान विष्णु का पूजन, विष्णु सहस्त्रनाम पाठ, विष्णु अथर्वशीर्ष पाठ, विष्णु पुराण और श्रीमद् भागवत कथा के पठन-पाठन का विशेष महत्व है। वहीं भगवान सूर्य की उपासना, आदित्य हृदय स्तोत्र और सूर्य अथर्वशीर्ष पाठ से भी विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

तिल-तेल और गर्म वस्त्रों के दान की मान्यता

मळमास में तिल व तेल से बनी खाद्य वस्तुओं का दान विशेष फलदायी माना गया है। इसके अलावा अन्न, वस्त्र, कंबल और गर्म कपड़ों का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होने की मान्यता है।