प्रदेश में किडनी ट्रांसप्लांट सुविधा की कमी से सैकड़ों मरीज गुजरात जा रहे हैं। उदयपुर संभाग में सरकारी सुविधा नहीं है। राज्य ने आउट पोर्टेबिलिटी मंजूरी को भेजा गया है।
जयपुर/उदयपुर: पति की जान बचाने के लिए अपने गहने गिरवी रख दिए, पर आयुष्मान कार्ड किसी काम नहीं आया। यह आह सिर्फ उदयपुर की आशा देवी की नहीं, बल्कि प्रदेश के उन सैकड़ों परिवारों की हैं, जो राजस्थान में सुविधा के अभाव और नीति की दीवारों के कारण अन्य राज्यों में जाकर इलाज करवा रहे हैं।
गुजरात से सटे इलाकों में तो किडनी ट्रांसप्लांट के लिए किसी ने घर गिरवी रखा, किसी ने खेत, किसी ने कर्जा लिया तो किसी ने अपनों को बचाने के लिए सब कुछ बेच दिया। दरअसल, राजस्थान में केंद्र सरकार की आयुष्मान बीमा योजना और राज्य की बीमा योजना को आपस में मर्ज कर मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना के रूप में संचालित किया जा रहा है।
पत्रिका पड़ताल में सामने आया कि दूसरे राज्यों से राजस्थान आकर इलाज कराने वाले मरीजों के लिए इनपोर्टेबिलिटी सुविधा तो शुरू कर दी गई है।
उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ में किडनी ट्रांसप्लांट की सरकारी सुविधा नहीं है। डॉक्टरों का कहना कि संभाग में 100 से 125 मरीज ट्रांसप्लांट की स्थिति में हैं, पर उन्हें जयपुर या गुजरात जाना पड़ता है। हर महीने 7 से 10 मरीज गुजरात के अस्पतालों में ट्रांसप्लांट करवाने जाते हैं। कुछ मरीज अब एसएमएस जयपुर का रुख कर रहे हैं, जहां यह सुविधा नि:शुल्क है।
राज्य का आउट बॉंड होना अभी बाकी है। दूसरे राज्यों के मरीजों के लिए हमने सुविधा शुरू कर दी है। आउट पोर्टेबिलिटी की सुविधा के लिए राज्य ने प्रक्रिया पूरी कर दी है। नेशनल हेल्थ ऐजेंसी से इसकी स्वीकृति होनी है। राज्य और केंद्र की योजना में अलग व्यवस्थाएं होने के कारण कुछ देर हो रही है।
-हरजीलाल अटल, सीईओ, राजस्थान स्टेट हेल्थ एश्यारेंस एजेंसी