कोर्ट का कहना था कि यह मामला बहुत ही गंभीर है और आरोपी किशनलाल को सुधारने या उसे फिर से समाज में शामिल करने का कोई मतलब नहीं है।
मावली (उदयपुर)। अपर जिला एवं सेशन न्यायालय मावली ने शनिवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पत्नी की निर्मम हत्या करने वाले पति को फांसी की सजा दी। अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश राहुल चौधरी ने वल्लभनगर क्षेत्र के नवानिया निवासी किशनलाल उर्फ किशनदास पुत्र सीताराम को मृत्युदंड, 50 हजार रुपए के आर्थिक दंड और एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
आदेश में कहा कि आरोपी को तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए। अभियोजक पक्ष की ओर से अपर लोक अभियोजक दिनेश चंद्र पालीवाल ने सुनवाई के दौरान 27 गवाहों के बयान और 36 प्रदर्श न्यायालय में पेश किए।
न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि आरोपी ने जो कृत्य किया, वह न केवल पत्नी लक्ष्मी के साथ अन्याय है बल्कि मानवता पर भी प्रहार है। ऐसा अमानवीय अपराध किसी भी सभ्य समाज में कल्पना से परे है। मृत्युदंड की सजा की पुष्टि के लिए उच्च न्यायालय जोधपुर को पत्रावली प्रेषित की गई।
वल्लभनगर थाना क्षेत्र के नवानिया गांव का किशनलाल उर्फ किशनदास अक्सर पत्नी लक्ष्मी को अपमानित करता था। वह उसे काली और मोटी कहकर ताना मारता और योग्य नहीं बताता था। 24 जून 2017 की रात आरोपी एक तथाकथित दवा लाया और पत्नी से कहा कि इसे लगाने से वह गोरी हो जाएगी।
दवा की गंध से ही लक्ष्मी को संदेह हुआ कि यह कोई एसिड जैसा है, लेकिन पति के कहने पर उसने विश्वास कर शरीर पर दवा लगाई। इसके बाद आरोपी ने अगरबत्ती से आग लगाई और फिर बचा हुआ केमिकल भी उड़ेल दिया। देखते ही देखते उसका शरीर जलने लगा। बाद में घर के अन्य सदस्यों ने पानी डालकर आग बुझाई। गंभीर झुलसी पत्नी लक्ष्मी ने मृत्यु से पहले कार्यपालक मजिस्ट्रेट तहसीलदार बड़गांव को बयान देकर पूरी घटना बताई थी।
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न्यायाधीश राहुल चौधरी ने कहा कि किशनलाल का कृत्य नृशंस, घृणित मानसिकता, निष्ठुर एवं अपकरुण मनः स्थिति को दर्शाता है। यह अपराध न केवल पत्नी के विरुद्ध था, बल्कि मानवता की चेतना को भी गहरा आघात पहुंचाने वाला है। ऐसे कृत्य की कल्पना एक स्वस्थ और सभ्य समाज में नहीं की जा सकती।
अदालत ने कहा कि यह घटना समाज को झकझोर देने वाली है और किसी भी परिस्थिति में माफ नहीं की जा सकती। अपराध इतना गंभीर है कि आरोपी के सुधार की कोई संभावना नहीं है। इसे बढ़ाने वाले कई कारण हैं, पर नरमी बरतने का एक भी कारण नहीं है। इसलिए आरोपी को मृत्युदंड ही एकमात्र विकल्प है, ताकि समाज का न्याय व्यवस्था पर विश्वास बना रहे और ऐसे कृत्यों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।