सोमवार के प्रथम सोमवार को बाबा के जलाभिषेक के लिए देर रात से ही खड़े भक्त मंदिर का पट खुलने का इंतजार कर रहे थे। पट खुलने की घोषणा होते ही भक्त दर्शन के लिए तैयार हो गए। मंदिर के मुख्य द्वार पर कमिश्नर कौशल राज शर्मा भी पहुंच गए थे। भक्तों के मंदिर प्रवेश से पूर्व उन पर पुष्पा वर्षा भी की गई। जिला प्रशासन के निर्देशानुसार काशी विश्वनाथ परिसर में पहली बार मात्र 21 यादव बंधुओं ने बाबा का जलाभिषेक के किया। यादव बंधु ललिता घाट से गंगा जल लेकर बाबा के दरबार में हर-हर महादेव का उद्घोष करते हुए पहुंचे। पूरी सुरक्षा के साथ उन्होंने बाबा का जलाभिषेक किया।
आज सावन का पहला सोमवार है, वाराणसी में सैकड़ों साल पुरानी परम्परा का निर्वाहन किया गया। केदार घाट से जल लेकर यादव बन्धुओं ने बाबा विश्वनाथ को जलाभिषेक किया। मंदिर में 21 यादव बन्धुओं को जलाभिषेक की अनुमति दी गई इसपर कुछ लोगों ने विरोध भी दर्ज कराया।जलाभिषेक की यह परम्परा सन 1932 से चली आ रही हैं।
काशी में आज हजारों की भीड़ है। इन सबके बीच चंद्रवंशी गौ सेवा समिति की तरफ से अति प्राचीन ऐतिहासिक जलाभिषेक कलश यात्रा का आयोजन आज वाराणसी में किया गया। इसमें हजारों की संख्या में यादव समुदाय के लोगों ने गौरी केदारेश्वर से कलश में जल भरकर अपने परंपरागत मार्गों से होते हुए रास्ते में पड़ने वाले तिलभांडेश्वर, शीतला माता समेत अन्य अलग-अलग मंदिरों में जलाभिषेक करने के बाद बाबा विश्वनाथ का भी जलाभिषेक किया।
चंद्रवंशी गौ सेवा समिति के अध्यक्ष लालजी यादव ने बताया कि 1932 में पूरे देश में जबरदस्त सूखा और अकाल पड़ा था। उस वक्त एक साधु के द्वारा यह बताया गया कि काशी में बाबा विश्वनाथ और अन्य शिवालयों में यादव समुदाय की तरफ से जलाभिषेक किया जाए तो इस सूखे से निजात मिल सकती है।जिसके बाद पूरे काशी समेत आसपास के यादव बंधुओं ने इकट्ठा होकर सावन के प्रथम सोमवार पर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। इसके बाद अकाल से मुक्ति मिली थी तभी से यह परंपरा चली आ रही है और हर साल सावन के पावन मौके पर प्रथम सोमवार के दिन सारे यादव बंधु एकजुट होकर हाथों में बड़े-बड़े कलश लेकर भोलेनाथ के जलाभिषेक करने के लिए निकलते हैं।