ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिकी रक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर 'डिपार्टमेंट ऑफ़ वॉर' करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है! क्या ये सिर्फ़ नाम का बदलाव है या अमेरिका की आक्रामक विदेश नीति का संकेत? इस कदम से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव और कांग्रेस की प्रतिक्रिया जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर। क्या ये द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व के युग की याद दिलाता है?
अमेरिका के टैरिफ वॉर के खिलाफ दुनिया की ‘एकजुटता’ के बीच अमरीकी रक्षा मंत्रालय का नाम ‘डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस’ से बदलकर ‘डिपार्टमेंट ऑफ वॉर’ कर दिया गया है।
यह शब्दों का बदलाव नहीं है, बल्कि विदेश नीति और सैन्य रणनीति की छवि बदलने की कोशिश मानी जा रही है। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का तर्क है कि ‘डिफेंस’ रक्षात्मक लगता है, जबकि ‘वॉर’ से ताकत का संकेत मिलता है। जानिए, नाम बदलने के निहितार्थ…
5 सितंबर 2025 को ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें ’डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस’ से बदलकर ’डिपार्टमेंट ऑफ वॉर’ के नाम से पुकारने का निर्देश दिया गया। फिलहाल यह नाम ’सहायक शीर्षक’ के रूप में इस्तेमाल होगा, जबकि कांग्रेस से स्थायी अनुमति लेने की प्रक्रिया जारी रहेगी। आदेश के तहत पेंटागन की वेबसाइट भी वॉर।गॉव में बदल दी गई है।
वॉर डिपार्टमेंट 1789 में बनाया गया था और यह नाम 1947 तक चला। उस समय सेना और नौसेना अलग-अलग विभागों के तहत थीं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इसे डिफेंस डिपार्टमेंट में बदल दिया ताकि सेना, नौसेना व वायु सेना की योजनाओं का समावेश हो सके। उद्देश्य पर्ल हार्बर हमले में हुई चूक से बचना था। अब फिर पुराना नाम लौट आया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नाम बदलने का असर प्रतीकात्मक नहीं है। यह युद्ध के प्रति अमेरिका के आक्रामक दृष्टिकोण का संकेत देता है। इससे अमेरिका की विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर दबाव पड़ सकता है। हाल में अपनी सैन्य क्षमताओं का प्रदर्शन कर चुके चीन जैसे देश इसे अमेरिका की चेतावनी के रूप में भी देख सकते हैं।
कई लोगों ने इस बदलाव का विरोध किया है, उनका मानना है कि यह बदलाव अनावश्यक और महंगा साबित होगा। ऐसा भी मानना है कि नाम बदलने से अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर प्रभाव पड़ सकता है।
अन्य देश इसे अमेरिका की आक्रामक नीतियों के रूप में देख सकते हैं। वहीं, नाम बदलने के लिए कांग्रेस (अमेरिकी संसद) की मंजूरी आवश्यक होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस बदलाव पर कैसे प्रतिक्रिया करती है।