India–US military exercise 2025: भारत पर टैरिफ बढ़ाकर अमेरिका ने सख्ती दिखाई, लेकिन सैन्य अभ्यास के जरिए नजदीकी बनाए रखी। पेश इस विषय पर एम.आई. ज़ाहिर की स्पेशल रिपोर्ट:
India–US military exercise 2025: एक ओर अमेरिका ने भारत पर भारी टैरिफ (US India trade war) लगा कर व्यापारिक संबंधों में सख्ती दिखाई है, तो दूसरी ओर अब वही अमेरिका भारतीय सेना के साथ अलास्का की बर्फीली वादियों में संयुक्त'युद्ध अभ्यास' (India–US military exercise 2025) कर रहा है। ध्यान रहे कि भारत और यूस की फौज के बीच 1 सितंबर से 14 सितंबर तक अलास्का में संयुक्त'युद्ध अभ्यास' (Pentagon India relations) कर रही है। इस अभ्यास में 450 भारतीय सैनिक हिस्सा ले रहे हैं, जिनका मद्रास रेजिमेंट की एक बटालियन नेतृत्व कर रही है। यूएस की इस दोहरी नीति को लेकर अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सवाल उठने लगे हैं।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के कई उत्पादों पर आयात शुल्क यानी टैरिफ बढ़ाया। हाल में इसे 50% तक कर दिया गया, जिससे भारतीय व्यापारियों और उद्योगों पर सीधा असर पड़ा। इसके कारण रूस से भारत की ओर से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदना बताया गया। जबकि चीन के साथ ऐसा नहीं किया गया।
कुछ समय पहले चीन में आयोजित बैठक में पीएम मोदी, राष्ट्रपति पुतिन और शी जिनपिंग एक साथ नजर आए। इस तस्वीर ने ट्रंप प्रशासन को नाराज कर दिया। इसके तुरंत बाद उन्होंने यह महसूस भी किया कि शायद उन्होंने भारत को खो दिया है।
सवाल यही है,जब व्यापार में संबंध इतने बिगड़ चुके हैं, तो अमेरिका भारतीय सेना के साथ सैन्य अभ्यास क्यों कर रहा है? असल में अमेरिका भारत को रणनीतिक रूप से अपने पक्ष में रखना चाहता है, खासकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन को टक्कर देने के लिए वह भारत के साथ दिख कर चीन को चिढ़ाना चाहता है।
– अमेरिका ने भारत से आयात पर टैरिफ तो बढ़ा दिए लेकिन अपने रक्षा सौदों और सैन्य अभ्यासों में कोई कटौती नहीं की।
अमेरिका चाहता है कि भारत रूस और चीन से दूरी बनाए, लेकिन खुद पाकिस्तान से कूटनीतिक और राहत संबंध मजबूत करता जा रहा है।
– अमेरिका के इस विरोधाभासी व्यवहार पर पश्चिमी मीडिया ने चुप्पी साध रखी है, जबकि भारतीय मीडिया में यह मसला उठाया जा रहा है।
अमेरिका ने हाल में पाकिस्तान में राहत सामग्री भेजने के लिए अपना C-17 विमान तैनात किया, लेकिन भारत के पंजाब, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में बाढ़ और आपदा के बावजूद ऐसी कोई मदद नहीं दी। इसके बावजूद भारत और अमेरिका की सेनाएं साथ में युद्ध की रिहर्सल कर रही हैं। यह स्थिति अमेरिका की रणनीति पर सवालिया निशान खड़े करती है।
क्या भारत सरकार अमेरिका से इस मुद्दे पर औपचारिक बातचीत करेगी?
भारत में अगले महीनों में और कौन-कौन से द्विपक्षीय अभ्यास प्रस्तावित हैं?
क्या अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ एक मोहरा बनाना चाहता है?
इन सवालों पर आने वाले दिनों में विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय की प्रतिक्रियाएं अहम होंगी।
राजनीतिक विश्लेषकों और रणनीतिक मामलों के जानकारों ने अमेरिका की इस "दोहरे रवैये" वाली नीति पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ ब्रिगेडियर (रि.) अरविंद बहल ने कहा,"जब अमेरिका भारत को आर्थिक मोर्चे पर कमजोर करने की कोशिश कर रहा है, उसी समय सामरिक मोर्चे पर हाथ मिलाना रणनीतिक पाखंड का उदाहरण है। भारत को अब स्पष्ट और सख्त नीति बनानी चाहिए।"
बहरहाल अमेरिका की यह नीति—जहां एक ओर वो व्यापारिक दबाव बना रहा है और दूसरी ओर सैन्य दोस्ती निभा रहा है—कूटनीतिक तौर पर विरोधाभासी दिख रही है। ये दोहरा रवैया भारत के लिए भी एक कूटनीतिक चुनौती है।