Japan elections: जापान में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) ने चुनाव में बहुमत खो दिया है, जिससे पीएम शिंगेरू इशिबा की स्थिति संकट में है। पार्टी की सीटें 259 से घट कर 191 रह गई हैं, और गठबंधन को तीसरे दल की आवश्यकता हो सकती है। विपक्षी पार्टी सीडीपी की सीटें बढ़ीं, लेकिन सरकार बनाने में वे संघर्ष कर सकती हैं।
Japan elections : जापान से चुनाव की बड़ी खबर है ( Japan elections)। जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ( LDP) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने संसद में अपना बहुमत खो दिया है, जो 15 सालों में उसका सबसे खराब परिणाम है। एलडीपी और उसके बहुत छोटे गठबंधन (coalition ) सहयोगी कोमिटो ने मिल कर 215 सीटें हासिल की हैं, जो शासन करने के लिए आवश्यक 233 सीटों के बहुमत से कम है। हालांकि, एलडीपी गठबंधन का अपेक्षाकृत कम शक्तिशाली ऊपरी सदन में बहुमत बरकरार है। अब सवाल यह है कि जापान चुनाव के बाद अब पीएम शिंगेरू इशिबा (PM Ishiba) का क्या होगा ? जापान की राजनीति में आए बदलाव पर एक नजर..
पीएम इशिबा की एलडीपी पार्टी की सीटें पिछले चुनाव की 259 सीटों से घटकर इस बार 191 रह गईं, गठबंधन सहयोगी कोमिटो की सीटें भी 32 से घटकर 24 पर आ गईं। घोटालों की झड़ी के चलते पिछले कुछ समय से एलडीपी अपनी लोकप्रियता खो रही है। पिछले साल राजनीतिक चंदे के घोटाले के सामने आने के बाद अक्टूबर में फुमियो किशिदा को पार्टी नेता व पीएम का पद छोड़ना पड़ा, इसके बाद इशिबा पीएम बने थे।
अटकलें हैं कि इशिबा को इस पराजय की जिम्मेदारी लेने के लिए इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा सकता है, ऐसे में वह जापान के युद्धोत्तर इतिहास में सबसे कम समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले व्यक्ति बन जाएंगे। इशिबा ने ऐसा करने से इनकार कर दिचा है। अभी भी एलडीपी संसद में शीर्ष पार्टी है और सरकार में बदलाव की उम्मीद नहीं है। हालांकि, इशिबा के लिए अपनी पार्टी की नीतियों को संसद में पारित कराना मुश्किल हो जाएगा।
इशिबा को सत्ता में आसानी के लिए गठबंधन में तीसरे दल को शामिल करना पड़ सकता है। चुनाव प्रचार में विपक्षी सीडीपी ने एलडीपी के साथ किसी तरह के गठबंधन को 'नामुमकिन' बताया था। जापान इनोवेशन पार्टी व मध्यमार्गी डीपीपी भी गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर चुकी है। हालांकि, डीपीपी से एलडीपी को कुछ उम्मीद है।
विपक्षी पार्टी सीडीपी की सीटें 96 से बढ़कर 148 हो गईं लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि बिखरे हुई विपक्ष के लिए सरकार बनाना मुश्किल है। नीतिगत मतभेद और अतीत की अनबन विपक्षी दलों को विभाजित कर रही है।