तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने एक बार फिर कश्मीर मुद्दा उठाया है। यूएनजीए के 80वे सत्र में उन्होंने इस मुद्दे को उठाते हुए भारत और पाकिस्तान को बातचीत के ज़रिए इसे सुलझाने की सलाह दी।
अमेरिका (United States Of America) के न्यूयॉर्क (New York) शहर में संयुक्त राष्ट्र महासभा - यूएनजीए (United Nations General Assembly - UNGA) का 80वां सत्र चल रहा है। 9-29 सितंबर तक चलने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र में 23-27 सितंबर के दौरान अहम मुद्दों पर चर्चा शुरू हो चुकी है। मंगलवार को सत्र को संबोधित करते हुए तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन (Recep Tayyip Erdogan) ने भारत (India) और पाकिस्तान (Pakistan) से जुड़ा एक मुद्दा उठाया।
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वे सत्र में मंगलवार को संबोधन देते हुए एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाया। एर्दोगन ने कहा, "हम भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बाद हुए युद्ध-विराम से खुश हैं। दोनों देशों के बीच तनाव संघर्ष में बदल गया था। हम उम्मीद करते हैं कि कश्मीर के मुद्दे का समाधान भारत और पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के आधार पर, कश्मीर में हमारे बहनों और भाइयों के सर्वोत्तम हित में, बातचीत के माध्यम से करना चाहिए। इसके लिए अगर ज़रूरी हो, तो बातचीत में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मदद भी लेनी चाहिए।"
यह पहला मौका नहीं है, जब एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का राग अलापा है। 2019 से 2015 तक तुर्की के राष्ट्रपति 6 मौकों पर (2024 के सत्र को छोड़कर) कश्मीर का राग अलाप चुके हैं। गौरतलब है कि तुर्की और पाकिस्तान के बीच काफी अच्छे संबंध हैं और भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' (Operation Sindoor) के बाद तुर्की ने खुलेआम इसका विरोध करते हुए पाकिस्तान का समर्थन किया था। इतना ही नहीं, भारत से बदला लेने के लिए जब पाकिस्तान ने हमले किए, तो उसमें तुर्की के ड्रोन्स का भी इस्तेमाल किया, जो तुर्की ने खास तौर पर भारत पर हमले के लिए ही भेजे थे। हालांकि भारतीय सेना ने तुर्की के सभी ड्रोन्स को मार गिराया था।
जम्मू-कश्मीर पर भारत का रुख हमेशा से साफ रहा है। अलग-अलग मंचों पर भारत के प्रतिनिधियों, चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) या उनकी सरकार का कोई मंत्री या फिर कोई भारतीय राजदूत, ने हमेशा एक ही बात कही है कि यह देश का आंतरिक मामला है और इसमें बाहरी हस्तक्षेप की कोई ज़रूरत नहीं है।