
बाजार में कई तरह के मांझे मौजूद हैं।
नई दिल्ली। पतंग और मांझा दोनों का गठजोड़ ही पतंगबाजी का आनंद देता है। पतंगबाजी का मतलब है कि हवा में पेंच लड़ाना। पतंग उड़ाते समय आप मांझे का खास ध्यान रखते हैं, पर क्या आपकों मालूम है कि मांझे की गुणवक्ता में भी फर्क होता है। बाजार में सबसे अधिक बरेली का मांझा बिकता है। यहां पर बड़े पैमाने पर कारीगर मांझे को बनाने में जुटे रहते हैं। बाजार में कई तरह के मांझे मौजूद हैं। ऐसे में आम जनता के लिए मांझा की पहचान करना कठिन हो जाता है।
कच्चा और पक्का मांझा
अधिकतर लोगों के पास बेहतर मांझे को परखने का कोई मापदंड नहीं होता है। हालांकि धागे को खींचकर और तोड़ने की प्रक्रिया में इसका पता किया जा सकता है। पक्का मांझा होने पर इसे तोड़ना मुश्किल होता है। वहीं कच्चा मांझा होने पर यह आसानी से टूट जाता है। दरअसल मांझा बनाने के लिए कांच और कलर का इस्तेमाल होता है। हालांकि चाइनीज मांझे ज्यादा सख्त होते हैं। इन्हें आसानी से तोड़ना कठिन होता है। ये मांझा नायलॉन से बना होता है। ये हाथों पर टिकते नहीं हैं।
चाइनीज मांझे पर रोक
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने देशभर में पतंग उड़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाले नायलॉन और चाइनीज मांझे की खरीद फरोख्त, स्टोरेज और इस्तेमाल पर दिल्ली समेत पूरे देश में 2017 से सख्ती से रोक लगा रखी है। यह रोक ग्लास कोटिंग वाले कॉटन मांझे पर भी लगायी गई है। ये रोक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने यह आदेश इससे घायल होने वाले लोगों के मद्देनजर लिया था। दरअसल पक्षियों के भी इस इस तरह के सिन्थेटिक मांझे में फंसने से घायल होने लगे थे। इस दौरान लोग हादसे का भी शिकार हो रहे थे। एनजीटी ने अपने आदेश में सिर्फ सूती धागे से ही पतंग उड़ाने की इजाजत है।
डिमांड करने पर चाइनीज मांझा आसानी से मुहैया हो रहा
ऐसा अनुमान है कि दिल्ली और बाहरी दिल्ली इलाकों में चाइनीज मांझे लगातार बेचे जा रहे हैं। ज्यादातर दुकानदार चाइनीज मांझा खुलेआम नहीं बेच रहे हैं, लेकिन डिमांड करने पर चाइनीज मांझा आसानी से मुहैया हो रहा है। पाबंदी के बाद भी मौत का सामान बेच रहे दुकानदारों को कानून का कोई खौफ नहीं है। चाइनीज मांझे की चपेट में आने से गर्दन, नाक और चेहरा कटने की घटनाएं लगातार हो रही हैं।
Updated on:
14 Aug 2020 02:17 pm
Published on:
14 Aug 2020 02:14 pm
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