
दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर उत्तर पूर्व की तरफ गंगा के किनारे बाएं तट पर महाभारत काल का सबसे प्रसिद्ध एवं चर्चित महानगर हस्तिनापुर अवस्थित था। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास स्थित इस जगह के लिए ही कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध लड़ा गया था।
कौरवों की यह राजधानी, भीष्म पितामह जैसे महावीरों अर्जुन जैसे धर्नुधारियों एवं दुर्योधन जैसे अहंकारियों के क्रिया-कलाप के कारण भारतवर्ष के समस्त राजन्यवर्ण की नीति निर्धारण का केन्द्र रही थी।
पाणिनी ने कहा हस्तिनापुर
महाभारत में इस शब्द का सजीव शाब्दिक चित्रण हुआ है। इस ग्रंथ में इस नगर की विविधता, विशिष्टता एवं सुन्दरता को कई स्थानो पर वर्णित किया हैं। उस काल में गंगा नदी उस महानगर के पाश्र्व में होकर बहती थी, जबकि आज वहां गंगा की घाटी भी देखी जा सकती हैं, जिसे हम इन दिनों स्थानीय लोग बूढी गंगा कहते हैं।
पाणिनी ने इस नगर को हस्तिनापुर कहा है।विष्णु पुराण के लिखे जाने तक गंगा के प्रवाह के कारण नगर का काफी भाग नष्ट हो चुका था। विष्णु पुराण में ही एक अन्य प्रसंग के अनुसार परीक्षित के वंशज को गंगा प्रवाह में इस राजधानी को नष्ट हुआ देख, अपने देश की राजधानी वत्स देश की नगरी कोशाम्बी को बनाना पड़ा था। पुरातत्व विभाग इस नगर की स्थिति एवं स्मृति को ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व की स्वीकारता हैं।
कभी गजपुर कहलाता था
इस नगर का नामकरण हाथियों की अधिकता के कारण हस्तिनापुर पड़ा। इसे कभी गजपुर भी कहा जाता था, किन्तु कालान्तर में पुरूवशी वृहत्क्षत्र के पुत्र हस्तिन के नाम पर यह नगर हस्तिनापुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महाभारत काल के बाद यहां नाग जाति का वैभव फैलने लगा। अत: इस नगरी को नागपुर व नाग सह्रय भी कहा जाने लगा।
कालिदास के 'अभिज्ञान शकुंतलम्' का नायक दुष्यंत भी यहीं का शासक था। अन्य परंपरा के अनुसार राजा वृषभ देव ने अपने संबंधी कुरू को कुरू क्षेत्र का राज्य दिया था इस कुुरू वंश के हस्तिना ने गंगा तट पर हस्तिनापुर की नींव डाली थी।
Published on:
25 Dec 2016 11:22 am
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