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पापी से पापी व्यक्ति के उद्धार के लिए Premanand Ji Maharaj ने बताई ये 3 बातें

Premanand Ji Satsang: आध्यात्म के मार्ग पर चलना चाह रहे हैं और बार-बार गलतियां हो रहीं हैं, काम क्रोध पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है तो प्रेमानंद महाराज की यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए।

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भारत

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Pravin Pandey

May 31, 2025

Premanand Ji Maharaj Ke Pravachan

Premanand Ji Maharaj Ke Pravachan: प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन (Photo Credit: Bhajan Marg Twitter and Patrika Design)

Premanand Ji Maharaj Ke Pravachan: प्रेमानंद जी महाराज का कहना है कि पापी से पापी व्यक्ति के उद्धार का सबसे आसान मार्ग है शरणागति, लेकिन शरणागति होने के लिए इन 3 बातों की जरूरत पड़ती है, लेकिन भक्त अक्सर ये गलतियां करता रहता है। प्रेमानंद महाराज से जानिए गलतियां दूर करने के लिए क्या करना चाहिए।


विश्वास कर निश्चिंत न होना


प्रेमानंद जी महाराज का कहना है कि शरणागति के लिए सबसे पहले अहंकार (मैं) को छोड़ना होगा। इसके लिए खुद को गुण दोषों समेत ईश्वर को समर्पित करना होगा कि मैं उनका हूं, और जो उनको ठीक लगे वही करेंगे, वही उद्धार करेंगे। इस दौरान भक्त को गुरु के बताए अनुसार सिर्फ भगवान का चिंतन करना है। लेकिन न वह अहंकार छोड़ पाता है और न निश्चंत हो पाता है।


कहां रहेंगे, कैसे जीवन निर्वाह करेंगे और कैसी गति होगी, ये सब सोचता रहता है। लेकिन भक्त जब खुद को भगवान को समर्पित कर देता है तो ये सब जिम्मेदारी भी भगवान की होती है।


इसमें मन शुद्ध नहीं है, बुद्धि में गड़बड़ी है या इंद्रिया वश में नहीं है, इसे करना है सोचना शरणागति में कमजोरी है। अपने दोषों की चिंता वास्तव में भगवान पर भरोसा न होने का संकेत है।


साथ ही अपने बल का अभिमान होने का संकेत है, और व्यक्ति यही गलती करता रहता है क्योंकि व्यक्ति में दोषों को मिटाने में अपना सामर्थ्य होने का अभिमान होता है कि अमुक काम कर लूंगा, इसीलिए वह परेशान होता है। जब कि दोष भी वह तभी हटा सकता है जब परमात्मा की इच्छा हो।


दोषों के न मिटने की चिंता भक्त को नहीं करना चाहिए, हालांकि दुख होना चाहिए कि आप मुझे इस हालत में रख रहे हो। यही गलती व्यक्ति बार-बार करती है, जबकि उसे रोना चाहिए कि मेरा उद्धार करो, उसके चरण में मन लगाना चाहिए। लेकिन इसकी जगह वह चिंता करता है कि मेरा क्या होगा।


उदाहरण के लिए किसी बालक के पास कुत्ता आ जाता है तो बालक रोने लगता है और मां आके उसे हटा देती है। क्योंकि बालक को पता है कि वह कुत्ते को हटा नहीं पाएगा और उसे ये मालूम है कि रोकर मां को बता दिया तो मां उसका कल्याण जरूर करेगी। यही काम भक्त का होना चाहिए कि काम रूपी कुत्ता आया और उसमें हटाने की सामर्थ्य नहीं है। उसे भगवान से रोना चाहिए तो निश्चित रूप से हटा देंगे।

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निर्भय न होना

कई भक्त निर्भय नहीं हो पाते, वो सोचते हैं कि उनके भाव, वृत्ति, आचरण शुद्ध नहीं हैं, मैं अपवित्र हूं, मेरा क्या होगा, मेरा कल्याण नहीं होगा। इसलिए उनका उद्धार नहीं हो पाएगा। इस भय को भी दूर करना होगा, यह भय विश्वास की कमी से होता है, क्योंकि परमात्मा के भृकुटि विलास मात्र से संसार का निर्माण और विलय हो सकता है तो किसी व्यक्ति का कौन सा दोष है जो वो दूर न कर पाएं, लेकिन इसके लिए ईश्वर पर भरोसा कर इसकी चिंता छोड़नी होगी। यदि जीव को परमात्मा पर यह विश्वास हो जाए और वह खुद को समर्पित कर दे तो वह कोई चिंता या भय क्यों करे।

भगवान कहते हैं सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज, अहं त्वां सर्व पापेभ्यो मोक्षयिश्यामि मा शुचः यानी कोई चिंता करो, सिर्फ मेरी शरण में आ जाओ, तुम्हारे सभी दोष और पाप का भार उठाकर मैं तुम्हें मुक्ति प्रदान करूंगा। ये सब छोड़ देना होगा ये समझना होगा, मेरा कोई दोष नहीं दूर हो रहा है तो वो जानें। अजामिल का उदाहरण देकर बताया कि पाप के बावजूद सिर्फ मृत्यु के समय नारायण नाम से उसका उद्धार हो गया।

सत्संग न करना

प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि सभी तीर्थों से बढ़कर होता है सत्संग क्योंकि यह समय भगवान के चरण में मन लगाने के अनुकूल होता है। भगवान कहते हैं कि तुम मेरी शरण आ जाओ तुम्हारे दोषों को सुधारने, तुम्हारा भार उठाने की जिम्मेदारी मेरी है, क्योंकि अब तू मेरा हो गया है।

इस तरह सिर्फ भगवान पर विश्वास हो जाए और भक्त उसके आश्रय में चला जाए तो वह भगवतप्राप्ति के योग्य हो जाएगा। क्योंकि दोषों का आधार ही अहंकार है और शरणागति में अहंकार समर्पित होता है।

बस जो भी घटता है अच्छा या बुरा सब परमात्मा का समझकर सुख दुखे समेकृत्वा लाभालाभौजयाजयो..के भाव से बिना प्रभावति हुए सभी व्यथाओं को सहकर आगे बढ़ने वाला भगवान को प्राप्त कर लेता है। वह महात्मा बन जाता है। इसमें सत्संग मददगार होता है, लेकिन लोग इसके लिए समय कम निकाल पाते हैं।