
Suryaputra Shanidev
Suryaputra Shanidev: नौ ग्रहों में सबसे गुस्सैल शनिदेव को हिंदू धर्म में अधिक प्रतापी माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जिस पर शनि अपनी कृपा बरसाते हैं उस व्यक्ति को कभी भी धन की कमी नहीं होती है। तो आइए जानते हैं क्या है सूर्यपुत्र शनिदेव की कथा।
सूर्यपुत्र के पुत्र शनिदेव को न्याय और कर्म का देवता का माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्मों का फल शनिदेव के हाथ में होता है। जिस पर शनिदेव जी अपनी कृपा बरसाते हैं उस व्यक्ति को कभी भी धन की कमी नहीं होती हैं। इसके साथ ही जिस व्यक्ति की कुडंली में शनिदेव बैठ जाते हैं उस व्यक्ति का जीवन कष्टों से भर जाता है। आइए जानते हैं क्या है सूर्यपुत्र शनिदेव की पापों से मुक्ति दिलाने वाली कथा..
पौराणिक कथा के अनुसार, कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्यनारायण की पत्नी छाया की कठोर तपस्या से ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि का जन्म हुआ। सूर्यदेव और संज्ञा को तीन पुत्र वैस्वत मन, यमराज और यमुना का जन्म हुआ। सूर्यदेव का तेज काफी अधिक था, जिसे लेकर संज्ञा काफी परेशान रहती थी। वे सूर्यदेव की अग्नि को कम करने का उपाय सोचती रहती थी। एक दिन सोचते-सोचते उन्हें एक उपाय मिला और उन्होंने अपनी एक परछाई बनाई, जिसका नाम उन्होंने स्वर्णा रखा। स्वर्णा के कंधों पर अपने तीन बच्चों की जिम्मेदारी डालकर संज्ञा जंगल में कठिन तपस्या के लिए चली गई।
संज्ञा की छाया होने के कारण सूर्यदेव को कभी स्वर्णा पर शक नहीं हुआ। स्वर्णा एक छाया होने के कारण उसे भी सूर्यदेव के तेज से कोई परेशानी नहीं हुई थी। इसके साथ ही संज्ञा तपस्या में लीन थीं, वहीं सूर्यदेव और स्वर्णा से तीन बच्चे मनु, शनिदेव और भद्रा का जन्म हुआ। ऐसा भी कहा जाता है कि जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया भगवान शिव का कठोर तप कर रही थीं। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान यानी शनिदेव पर भी पड़ा। इसके कारण ही शनिदेव का रंग काला हो गया। रंग देखकर सूर्यदेव को लगा कि यह तो उनका पुत्र नहीं हो सकता।
एक बार सूर्यपुत्र अपनी पत्नी स्वर्णा से मिलने आए। सूर्यदेव के तप और तेज के आगे शनिदेव की आंखें बंद हो गई। वे उन्हें देख भी नहीं पाए। वही शनिदेव की वर्ण को देख भगवान सूर्य ने पत्नी स्वर्णा पर शक करते हुए कहा कि ये मेरा पुत्र नहीं हो सकता। यह बात सुनते ही शनिदेव के मन में सूर्यदेव के लिए शत्रुभाव पैदा हो गया। जिसके बाद उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या करनी शुरू कर दी। शनिदेव की कठिन तपस्या के बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा। इस बात पर शनिदेव ने शिवजी से कहा कि सूर्यदेव मेरी मां का अनादर और प्रताड़ित करते हैं।
जिस वजह से उनकी माता को हमेशा अपमानित होना पड़ता है। उन्होंने सूर्यदेव से ज्यादा शक्तिशाली और पूज्यनीय होने का वरदान मांगा। शनिदेव की इस मांग पर उन्होंने शनिदेव को नौ ग्रहों का स्वामी होने का वरदान दिया। उन्हें सबसे श्रेष्ठ स्थान की प्राप्ति भी हुई। इतना ही नहीं, उन्हें ये वरदान भी दिया गया कि सिर्फ मानव जगत का ही नहीं बल्कि देवता, असुर, गंधर्व, नाग और जगत के सभी प्राणी उनसे भयभीत रहेंगे।
Updated on:
15 Nov 2024 06:29 pm
Published on:
15 Nov 2024 05:12 pm
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