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क्यों मनाया जाता है करवाचौथ, जानें किस तरह शुरू हुई इस व्रत को करने की परंपरा

Karwa Chauth 2020 का व्रत 4 नवंबर को रखा जाएगा ब्रह्मदेव ने देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत रखने की दी थी सलाह

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Karvachauth started

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नई दिल्ली। पूरे भारत देश में करवा चौथ का व्रत बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है इस दिन सभी सुहाग‍न महिलांए अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला उपवास रखती है। और भक्ति भाव के साथ इस व्रत को निभाते हुए पूरे नियमों का पालन करते हुए चंद्रमा की पूजा कर व्रत को तोड़ती है। यह पंरपरा आज की नही बल्कि सदियों से चलती आ रही है। कहा तो यह भी जाता है कि यह व्रत देवताओं के समय से ही शुरू हुआ था। तभी तो इसका वर्णन महाभारत काल में भी देखने को मिला है। यह बात हर कोई जानना चाहता है कि इस व्रत की शुरूआत कैसे और कब हुई? और सबसे पहले यह व्रत किसने रखा था?

देवी पार्वती ने की थी करवा चौथ की शुरुआत

पौराणिक कथाओँ के अनुसार कहा जाता है कि सबसे पहले इस व्रत को करने की शुरूआत देवी पार्वती ने भोलेनाथ के लिए की थी। इसी व्रत को करने से उन्‍हें अखंड सौभाग्‍य की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए सुहागिनें अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना से यह व्रत करती हैं।

ब्रह्मदेव ने देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत रखने की दी थी सलाह

पौराणिक कथा के अनुसार यह बात भी कही जाती है कि एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ा था। जिसमें दानव देवताओं पर हावी हुए जा रहे थे। तभी ब्रह्मदेव ने आकर सभी देवियों को करवा चौथ का व्रत करने को कहा। इस व्रत को करने से दानवों की हार हुई । और इसके बाद से ही कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई।

महाभारत काल में भी मिलती है इस व्रत का

करवा चौथ व्रत की एक और कथा महाभारत काल की मिलती है जिसमें बताया गया है कि एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्‍या करने गए थे। उसी दौरान पांडवों के सामने एक बड़ा संकट आ गया। तब द्रोपदी ने श्रीकृष्‍ण से पांडवों के संकट से उबरने का उपाय पूछा। इसपर श्रीकृष्‍ण ने उन्‍हें कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन करवा का व्रत करने को कहा। इसके बाद द्रोपदी ने यह व्रत किया और पांडवों को संकटों से मुक्ति मिल गई।

इसी तरह से पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्‍त्री थी। जो अपने पति से बेहद प्रेम करती थी एक बार उसका पति जब नदी में स्‍नान करने गया था।तभी उसके पैर को मगर ने पकड़ लिया। उसने मदद के लिए अपनी पत्नि करवा को पुकारा। तब करवा ने अपनी सतीत्‍व के प्रताप से मगरमच्‍छ को एक कच्‍चे धागे से बांध दिया और यमराज के पास ले गई। करवा ने यमराज से विनती की उसके पति के प्राण बचाने के साथ मगर को मृत्‍युदंड की सजा दे। लेकिन यमराज इसके लिए तैयार नही हुए उन्होंने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी शेष है, समय से पहले उसे मृत्‍यु नहीं दे सकता। इस पर करवा ने यमराज से कहा कि अगर उन्‍होंने करवा के पति को चिरायु होने का वरदान नहीं दिया तो वह अपने तपोबल से उन्‍हें नष्‍ट होने का शाप दे देगी। इसके बाद करवा के पति को जीवनदान मिला और मगरमच्‍छ को मृत्‍युदंड।