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मुहम्मद से महिंद्रा, Escort का औंधे मुंह गिरना और फिर Scorpio का जन्म! पढ़े Anand Mahindra की सक्सेज़ स्टोरी

देखते ही देखते 2009 तक, Mahindra and Mahindra भारतीय घरों में प्रसिद्ध हो गई थी। और एक अरब डॉलर का कारोबार भी कर लिया। इन्होंने साबित कर दिया कि भारतीय किसी से पीछे नहीं हैं। लेकिन कंपनी का मानना था कि उसे खुद को रीब्रांड करने की जरूरत है।

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Anand Mahindra

आप में से ज्यादातर लोगों ने आनंद महिंद्रा के बारे में सुना होगा। आज ये दिग्गज बिजनेसमैन अपना 67वां जन्मदिन मना रहे हैं। किसी को भी सफलता घर बैठे नहीं मिलती, ठीक इसी तरह इनकी सफलता के पीछे भी सफर लंबा है। 1955 में मुंबई में जन्मे आनंद महिंद्रा उद्योगपति परिवार की तीसरी पीढ़ी थे। उनका जन्म हरीश और इंदिरा महिंद्रा से हुआ था। उनके दादा जगदीश महिंद्रा थे, जो महिंद्रा एंड महिंद्रा (एम एंड एम) के साम्राज्य के को-फाउंडर थे। इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा लवडेल के लॉरेंस स्कूल से पूरी की। वहीं बाद में वे फिल्म निर्माण और वास्तुकला का अध्ययन करने में लग गए। लेकिन बाद में उन्होंने 1981 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए पूरा किया।


जीप निर्माण का मिला मौका

आपको जानकर हैरानी होगी कि आनंद महिंद्रा और बिल गेट्स सहपाठी थे। उन्होंने MBA पूरा करने के तुरंत बाद महिंद्रा यूजीन स्टील कंपनी लिमिटेड (मुस्को) में एक कार्यकारी सहायक (फाइनेंस) के रूप में अपना करियर शुरू किया। आठ साल बाद उन्हें अध्यक्ष और उप प्रबंध निदेशक के पद पर तैनात किया गया। शुरुआत में इस कंपनी को मुहम्मद एंड महिंद्रा के नाम से जाना जाता था। 1945 में इसका प्राथमिक व्यवसाय स्टील व्यापार था, और भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद उनके साथी मुहम्मद पाकिस्तान चले गए। जिसके बाद में, हरिकृष्ण और जयकृष्ण महिंद्रा ने इसका नाम बदलकर महिंद्रा एंड महिंद्रा कर दिया। जिसके बाद कंपनी को द्वितीय विश्व युद्ध के लिए जीप निर्माता के रूप में काम करने का मौका मिला।


1991 में शुरू हुआ आनंद महिंद्रा का सफर


इन सब के बीच 4 अप्रैल 1991 को कंपनी के लिए एक नई शुरुआत थी, जब आनंद महिंद्रा एम एंड एम लिमिटेड के Deputy Managing Director बने। आनंद महिंद्रा को जब 1991 में कांदिवली फैक्ट्री का काम सौंपा गया था। तो उस समय श्रमिक संघ की हड़ताल थी। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आनंद महिंद्रा ने उनकी मांगों को पूरा किया। आखिरकार, कर्मचारी कंपनी की सबसे मूल्यवान संपत्ति हैं। लेकिन उन्होंने जो किया उस पर आपको विश्वास नहीं होगा। उन्होंने मांगों को छोड़ने के बजाय स्मार्ट तरीका अपनाया। आनंद महिंद्रा ने घोषणा की कि अगर कर्मचारी काम पर नहीं लौटे तो दिवाली बोनस नहीं दिया जाएगा। किसने सोचा होगा कि इस तरह के कदम से हड़तालों पर अंकुश लग सकता है? लेकिन इस घोषणा के साथ कंपनी की उत्पादकता लाभ को 50% से बढ़ाकर 150% हो गई।



Mahindra Scorpio का जन्म


इस गंभीर चुनौती के बाद महिंद्रा समूह को एक और समस्या का भी सामना करना पड़ा। कंपनी के पास तकनीक की कमी थी, इसलिए, उन्होंने फोर्ड के साथ एक संयुक्त उद्यम में प्रवेश किया। दुर्भाग्य से इस समझौते के तहत तैयार की गई एस्कॉर्ट कार बाजार में लॉन्च होने पर विफल रही। लेकिन आनंद महिंद्रा ने उम्मीद नहीं खोई। बाद में, उन्होंने एक वाहन का उत्पादन किया। फोर्ड जैसे बहुराष्ट्रीय वाहन निर्माता के साथ काम करने के बाद भी, कोई भी तर्कसंगत व्यक्ति ऐसा करने का विकल्प नहीं चुनता। क्योंकि उनका पुराने मॉडल देश में विफल हो गया था। लेकिन उन्होंने सभी बाधाओं को तोड़ दिया। सभी चुनौतियों के बावजूद स्कॉर्पियो का जन्म हुआ। जो बाजारों में एक तूफान थी। खास बात यह रही कि स्कोर्पियो उत्पादन की परियोजना लागत सिर्फ 550 करोड़ रुपये थी। जो अन्य ऑटो निर्माताओं के लिए लागत का दसवां हिस्सा था!



Mahindra Rise की शुरुआत



देखते ही देखते 2009 तक, Mahindra and Mahindra भारतीय घरों में प्रसिद्ध हो गई थी। और एक अरब डॉलर का कारोबार भी कर लिया। इन्होंने साबित कर दिया कि भारतीय किसी से पीछे नहीं हैं। लेकिन कंपनी का मानना था कि उसे खुद को रीब्रांड करने की जरूरत है। इसलिए, उन्होंने नाम के बाद "राइज" का नारा लगाया। इससे 'महिंद्रा राइज' का जन्म हुआ। कंपनी के पास अब अधिग्रहण कंपनियों की लंबी सूची थी, और इसका पहला अधिग्रहण गुजरात सरकार की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी गुजरात ट्रैक्टर्स लिमिटेड में 100% हिस्सेदारी थी। जो 1999 में पूरा हुआ था।

आठ साल बाद, एमएंडएम ने पंजाब ट्रैक्टर लिमिटेड का अधिग्रहण किया, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा ट्रैक्टर निर्माता बन गई। आनंद महिंद्रा के हजारों प्रयासों के कारण महिंद्रा एंड महिंद्रा ट्रैक्टर और हल्के वाणिज्यिक वाहन खंड में बाजार की अग्रणी कंपनी बन गई है। ऑटोमोबाइल के अलावा, यह आईटी, वित्तीय सेवाओं में भी अग्रणी है, और इसकी पहुंच अंतरराष्ट्रीय लेवल पर है, जो 72 देशों में काम कर रही है।