मुलायम सरकार डाल-डाल चल रही थी तो कारसेवक भी पात-पात चलने लगे। अशोक सिंहल को गिरफ्तार करने के लिए केंद्र सरकार से लेकर यूपी सरकार तक की खुफिया एजेंसियां जाल बिछाई थी। लेकिन वह पकड़ में नहीं आए और अचानक अयोध्या में कारसेवा के दिन कारसेवकों के हूजूम में प्रगट हो गए। आइए उस समय की कहानी बताते हैं, जब ये सब हो रहा था।
चारों तरफ सन्नाटा, कर्फ्यू लेकिन इसी में दूर से कहीं आवाज आ रही थी। श्रीराम जय राम जयजय राम लेकिन इस आवाज को दबा दे रही थी, सुरक्षा बलों की चहल-कदमी। विवादित ढांचे के दांई ओर बने पुलिस नियंत्रण कक्ष के पास तीन तरफ से मजबूत इस्पात के बैरियर लगे हुए थे। इसमें लगे लोहे के सरिए बिल्ली तक को अंदर न घुसने देने के लिए पर्याप्त थे। मंदिर के गलियारे में दो सींखचे लगाए गए थे। जो पूरी सड़क को रोक देते थे। उन पर ताला लगा दिया गया। इस गलियारे के दोनों तरफ संगीने तैनात, जवान मानव दीवार बनाकर खड़े थे। जगह-जगह मेटल डिटेक्टर लगाए गए। जवान हो या पुलिस का अधिकारी सबको इस मेटल डिटैक्टर से तलाशी देकर ही आगे जाना होगा। पत्रकारों का प्रवेश वर्जित हो गया। जहां लोहे की रेलिंग और कंटीले लोहे के तारों से घेर दिया गया था।
हमने पहले ही बताया कि लखनऊ से अयोध्या के रास्ते में जगह-जगह चेकिंग, तलाशी, मेटल डिटेक्टर, बैरिकेड और बैरियर लगा दिया गया था। आवागमन प्रतिबंधित था। आसपास के जिलों में कर्फ्यू था। वाहनों के आवागमन पर रोक थी। अयोध्या से करीब आठ से दस किलोमीटर पहले ही हर रास्ते पर पुलिस की मानव दीवार बना दी गई थी। इसके अलावा सीसीटीवी कैमरे, क्लोज सर्किट, कंट्रोल रूम कुछ भी बाकी नहीं रखा था मुलायम सिंह यादव सरकार ने। तभी तो मुख्यमंत्री मुलायम ने कहा-परिंदा भी पर नहीं मार सकता...
तू डाल-डाल, तो मैं पात-पात की योजना पर रामभक्त काम कर रहे थे। सरकार से दो कदम आगे जाकर रामभक्तों ने अपनी योजना बनानी शुरू कर दी थी। उत्तर प्रदेश में जगह-जगह रामभक्तों और विहिप, बजरंग दल, आरएसएस के कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों की गिरफ्तारी हो रही थी। विहिप के नेता अशोक सिंहल को पकड़ने के लिए प्रदेश ही नहीं केंद्र सरकार की खुफिया एजेसिंयों ने जाल बिछाया था। लेकिन उनकी छाया तक का सुराग गुप्तचर नहीं पता लगा सके। बल्कि अशोक सिंहल दो दिन पहले ही अयोध्या पहुंचकर कारसेवा की रणनीति को अंतिम रुप दे रहे थे। पुलिस और गुप्तचरों के अभेद्य चक्रव्यूह को भेद कर वह अयोध्या पहुंच चुके थे।
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अशोक सिंघल कैसे पहुंचे अयोध्या
पुलिस और गुप्तचरों की इतनी तगड़ी घेरेबंदी की परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। वहां अशोक सिंहल पहुंच गए। एक संवाददाता को बताया कि जिस रास्ते से वह गए उस रास्ते पर कोई बाधा नहीं थी। वह पूरे इलाके के चप्पे -चप्पे से परिचित हैं तो कोई दिक्कत का सवाल ही नहीं था। हांलाकि पुलिस अधिकारी कहते रहे कि उनके साथ पूर्व पुलिस महानिदेशक और विहिप के पदाधिकारी श्रीश चंद्र दीक्षित थे। इसके अलावा अशोक सिंहल ने पुलिस की वर्दी पहन ली थी, जिससे कोई पहचान नहीं पाया। कारसेवा 30 अक्टूबर 1990 को होनी थी। अशोक सिंहल 28 को ही अयोध्या पहुंच चुके थे। अयोध्या के प्रमुख संत परमहंस रामचंद्र दास महाराज और महंत नृत्य गोपाल दास महाराज को पुलिस और गुप्तचर खोज-खोज कर परेशान हो चुके थे। अब यह लगभग तय हो चुका था कि देवोत्थान एकादशी 30 अक्टूबर को हर हाल में कारसेवा होगी। सरकार चाहे कितना भी जुल्म कर ले।
हजारों कारसेवकों ने गांवों में डाला डेरा
देश के विभिन्न राज्यों के कारसेवकों ने अयोध्या और आसपास के जिलों में गांव-गांव में डेरा डाल दिया। ग्रामीणों ने भी उनकी खूब आवभगत की और घर-घर कारसेवक रोके गए। जहां उनके रहने, खाने-पीने सब तरह की व्यवस्था ग्रामीणों ने खुद ही किया। पुलिस अधिकारी गांव में पहुंचते तो ग्रामीण कह देते हमारे रिश्तेदार आए हैं। अगली स्टोरी में हम इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे। बहरहाल, अयोध्या से सटे गोंडा जिले के मांझा और कटरा क्षेत्र में कारसेवकों का भारी जमावड़ा पहुंच चुका था। जिसे जो भी साधन मिला चल पड़ा था। गांव-गांव, खेत-पगडंडी जो भी रास्ता मिला, पैदल, साईकिल या बैलगाड़ी जो भी साधन मिला कारसेवक अयोध्या की तरफ बढ़ते ही रहे।
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पुलिस को भनक तक नहीं नहीं मिली
अयोध्या से सटे मांझा और कटरा गांवों करीब 25 हजार कारसेवक जमा हो चुके थे। लेकिन पुलिस और खुफिया विभाग को भनक तक नहीं मिली। आसपास के गांवों का भी यही हाल था। कुछ गांवों में कारसेवकों के होने की सूचना पर जब पुलिस पहुंची तो गांव वालों ने तगड़ा विरोध करके पुलिस को वापस लौटने पर मजबूर कर दिया।
अयोध्या और आसपास लोगों ने दरवाजे खोल दिए
अयोध्या और आसपास के गांवों में हालत यह थी कि कारसेवक गांवों में, खेतों में छिपते-छिपाते आगे बढ़ रह थे। जैसे ही पुलिस की गश्ती टोली आगे बढ़ती, साईरन बजाते गाड़िया आगे जाती। पीछे से भागकर दस-पांच कारसेवकों की टोली रास्ता पार कर लेती और किसी भी घर में घुसकर परिवार के सदस्यों में मिल जाती। लोग भी अपने घरों का दरवाजा हर समय खोले रखते कि किसी भी समय कोई भी कारसेवक आ सकता है। दरवाजा बंद होने से उसे परेशानी होती। यह संवाददाता स्वयं भी एक ऐसे ही जगह छिपा था। जहां पुलिस का छापा पड़ने पर बच्चों ने कहना शुरू किया मौसा जी आए हैं। कहीं बच्चे कहते ग्वालियर वाले चाचा आए हैं। ग्रामीण इकट्ठा हो जाते और पुलिस का विरोध करते। जिनके विरोध के चलते पुलिस को खाली हाथ वापस जाना पड़ता।
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उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव सरकार के कारसेवकों पर जुल्म की कथा कल भी जारी रखेंगे। हम आपको बताएंगे कारसेवकों की वह मार्मिक कथा जिसमें वह बेइंतहा जुल्म और पुलिस का अपमान सहते किस प्रकार अयोध्या की तरफ आगे बढ़ते रहे। स्थानीय जनता ने किस प्रकार उन्हें अपने घरों में छिपाया और आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। विस्तार से जारी रखेंगे।