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राम मंदिर के प्रमुख सूत्रधार डॉ. रामविलास वेदांती: 12 साल की उम्र में छोड़ा घर, अचानक बिगड़ी तबीयत; संत से सियासत तक का सफर

राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख संत और पूर्व सांसद डॉ. रामविलास वेदांती का रीवा में इलाज के दौरान निधन हो गया। संत जीवन से संसद तक उनके संघर्ष, राम मंदिर के प्रति समर्पण और राजनीतिक सफर की पूरी कहानी पढ़िए।

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डॉ रामविलास वेदांती फोटो सोर्स X अकाउंट

डॉ रामविलास वेदांती फोटो सोर्स X अकाउंट

राम जन्मभूमि आंदोलन से लंबे समय तक जुड़े रहे संत और पूर्व सांसद डॉ. रामविलास वेदांती का 15 दिसंबर को रीवा में इलाज के दौरान निधन हो गया। उनके जाने से संत समाज, राम भक्तों और राजनीतिक जगत में शोक की लहर है। वे राम मंदिर को जीवन का संकल्प मानते थे।

डॉ. रामविलास वेदांती का नाम उन लोगों में लिया जाता है। जिन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को सिर्फ एक मुद्दा नहीं, बल्कि जीवन का उद्देश्य बना लिया था। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में 7 अक्टूबर 1958 को जन्मे वेदांती साधारण परिवार से थे। लेकिन विचारों में असाधारण थे। शुरुआती पढ़ाई के बाद उन्होंने संस्कृत, वेदांत और धर्मग्रंथों का गंभीर अध्ययन किया। रामायण, महाभारत और पुराणों पर उनकी पकड़ के कारण वे प्रभावशाली वक्ता के रूप में पहचाने जाने लगे।

राम जन्मभूमि आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई

युवावस्था में ही उन्होंने संत जीवन अपनाया। अयोध्या से जुड़कर राम जन्मभूमि आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। वे राम जन्मभूमि न्यास से जुड़े और देशभर में होने वाली धार्मिक सभाओं में राम मंदिर के पक्ष में खुलकर अपनी बात रखते रहे। उनके प्रवचनों में मर्यादा पुरुषोत्तम राम, हिंदू समाज की एकजुटता और सांस्कृतिक चेतना का संदेश साफ दिखता था।

वह हमेशा कहते थे राम मंदिर आस्था और न्याय का प्रतीक

राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान उन्होंने कई बार जेल भी काटी। 6 दिसंबर 1992 के घटनाक्रम में उनका नाम आरोपी के रूप में सामने आया। लेकिन बाद में अदालत से उन्हें राहत मिली। वे हमेशा कहते थे कि राम मंदिर आस्था और न्याय दोनों का प्रतीक है।

संसद में उन्होंने राम मंदिर, धर्म और सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे जोरदार ढंग उठाये

राजनीति में भी वे सक्रिय रहे। भारतीय जनता पार्टी से जुड़े वेदांती 1996 में मछली नगर और 1998 में अयोध्या (फैजाबाद) से लोकसभा पहुंचे। संसद में उन्होंने राम मंदिर, धर्म और सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे जोरदार ढंग से उठाए। उनका मानना था कि मंदिर निर्माण केवल ईंट-पत्थर का काम नहीं, बल्कि समाज की पहचान से जुड़ा सवाल है।

संत समाज में दौड़ी शोक की लहर

सामाजिक जीवन में भी वे लगातार सक्रिय रहे। वे हिंदू समाज को जोड़ने की बात करते थे। राम मंदिर को सांस्कृतिक विरासत बताते थे। 15 दिसंबर 2025 को मध्य प्रदेश के रीवा में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन को राम भक्तों के लिए बड़ी क्षति माना जा रहा है। उनका अंतिम संस्कार अयोध्या में किए जाने की तैयारी है। जहां उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी।


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