अचानक दिगंबर अखाड़े की तरफ से गोलियां चलने की आवाज आने लगी। पत्रकारों के आगे बढ़ने पर रोक लगा दी गई। तभी दो-तीन घरों की महिलाएं अपने बेटों से कहने लगीं, जाओ कारसेवकों की मदद करो। अपने बेटों को मौत के मुंह में भेजना आसान नहीं था। पत्रिका राम मंदिर कथा अभियान के 50 वें अंक में आइए उस दिन की कहानी जिस दिन कारसेवकों पर गोली चली थी।
Ram Mandir Katha: कारसेवा के लिए जाओ, लेकिन वापस लौटते समय मेरे गांव होकर आना। मिलते हुए जाना। जब गांव में शरण लिए कारसेवक सूर्योदय होते ही अयोध्या की तरफ जाने को तैयार होते तो विदा करते महिलाएं पुरुष सभी यही कहते। गांव के बाहर तक छोड़ने आते। देश भर से आए कारसेवक जब घायल होकर अस्पताल पहुंचे तो इन्हीं ग्राम वासियों ने उनकी देखभाल किया।
मातृत्व और पुत्रत्व का यह उदाहरण दुर्लभ था। बहरहाल हम चर्चा शुरू करते हैं सरयू पुल के दूसरी तरफ खड़े पत्रकारों की जो आगे आना चाहते थे। लेकिन पुलिस ने रोक दिया। अब क्या करें तो रास्ता बदल कर आना पड़ा। डर के उस माहौल में एक बहन घर से बाहर आकर काफी दूर तक रास्ता बताने साथ आई।
उसी दौरान अचानक दिगंबर अखाड़े की तरफ से गोलियां चलने की आवाज आई। पत्रकार उधर जाना चाहते थे, लेकिन उनको रोक दिया गया। इसी बीच कुछ महिलाएं अपने घर के बेटों को ललकारने लगी कि जाओ कारसेवकों की मदद करो, उनपर गोलियां चल रही हैं। अपने बेटों को मौत के मुंह में भेजना इतना आसान नहीं होता।
कारसेवक गलियों से गुजरते तो छत से महिलाएं पानी फेंककर उनको गीला करती। जिससे आंसू गैस के गोले उन पर बेअसर हो जाएं। एक महिला लगातार अपने घर की छत से कारसेवकों पर पानी फेंक रही थी। तभी सीता रसोई की छत पर सामने मोर्चा लगाए पुलिस वालों ने रायफल की नाल महिला की तरफ कर दिया और बोले पानी फेंकना बंद करो, वर्ना गोली मार दूंगा। गोपाल शर्मा अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि
यह सुनते ही महिला छाती ठोककर चिल्लाई- नहीं जाऊंगी, चला गोली।
2 नवंबर 1990, समय करीब 11.40 बजे...
सरयू पुल से शास्त्री नगर जाने वाली सडक़ कारसेवक आगे बढ़ना चाहते थे। लेकिन आंसू गैस से लेकर लाठी चार्ज भी उनको रोक नहीं पा रहे थे। आंख में मिर्ची लगती, आंख से आंसू निकलते और आंखे बंद हो जाती तो भी कारसेवक जन्मभूमि की तरफ ही भागते। ऐसी स्थिति में अयोध्या की घरों की महिलाओं ने आगे आकर मोर्चा संभाला। वह कारसेवकों पर पानी फेंकना शुरू कर देती। उनको चूना और अन्य सामग्री जो आंसू गैस बेअसर कर सके पकड़ाने लगती।
दो दिन पहले जब 30 अक्टूबर को कारसेवा हो चुकी थी उसके बाद भी हजारों कारसेवक जन्मभूमि के पास मौजूद थे। उन्हें खदेड़ने के लिए मानस भवन के पास पुलिस ने बेरहमी से लाठी चार्ज किया। अयोध्या की 50-60 महिलाएं कारसेवकों और पुलिस के बीच आकर खड़ी हो गई। इन महिलाओं के आगे पुलिस के जवानों का साहस जबाव दे गया। लाठी चार्ज रोकना पड़ा।
3 नवंबर 1990, दोपहर करीब 12 बजे...
एक दिन पहले दो नवंबर के गोली कांड में अनेक कारसेवक मारे गए। सैकड़ों की तादात ऐसी थी जो गंभीर घायल थे और फैजाबाद जिला अस्पताल में इलाज करा रहे थे। कारसेवक अपना दुख-दर्द भूलकर देशभक्ति के गीत गाते थे। उस समय अस्पताल में अयोध्या-फैजाबाद की महिलाएं ही मौजूद थी। जो देश के दूर-दराज से आए कारसेवकों को अपने बेटे की तरह सेवा कर रही थी। उनकी मरहम-पट्टी से लेकर उनके कपड़े बदलवाने और दवा खिलाने तक अस्पताल में वह ऐसे ही थी जैसे उनका बेटा ही घायल हो।
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लखनऊ का बलरामपुर अस्पताल
लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल में कुछ महिलाएं जोर-जोर से चिल्ला कर आसमान सिर पर उठा रखी हैं। हल्ला करके पुलिस वालों को कोस रही थीं। पता किया गया मामला क्या है। तो पता चला कि सीतापुर जिला जेल में प्रशासन और सजायाफ्ता कैदियों की मार से घायल कारसेवकों को इलाज के लिए बलरामपुर अस्पताल लाया गया है। पुलिस उन्हें वापस सीतापुर ले जाना चाहती है लेकिन न तो कारसेवक जाना चाहते हैं। ना ही महिलाएं उन्हें वापस सीतापुर ले जाने दे रही हैं।
सुरक्षा बलों में असंतोष
इधर, अयोध्या में सशस्त्र बलों के भीतर भी असंतोष की आग सुलगने लगी। 30 अक्टूबर और दो नवंबर के नरसंहार के बाद सशस्त्र बलों में चर्चा थी कि निशाना लगाकर हत्या के लिए गोलियां चलाई गई हैं। कुछ खास तरह के जवानों और अधिकारियों ने ही गोलियां चलाई हैं।
निहत्थों को गोलियों से क्यों भूना गया। आदि सवाल पर सुरक्षा बल के जवान आपस में मंथन कर रहे थे। भीतर ही भीतर असंतोष और विद्रोह पनपने लगा था। कई बार आपसी संघर्ष तक की नौबत आ गई लेकिन सुरक्षा बलों के कठोर अनुशासन से ऐसी अप्रिय घटना टल गई।
घटना को कवर कर रहे राजस्थान पत्रिका के पत्रकार ने जब सरयू घाट पर तैनात एक जवान से पूछा तो उसने गुस्से में कहा कि कौन चलाता है अपने भाईयों पर गोलियां? मैने तो एक भी फायर नहीं किया अब तक। 30 अक्टूबर को सरयू पुल पर पता नहीं कितने मार डाले गए लेकिन एक भी नहीं मरता। वह तो 61 वीं बटालियन का कमांडेंट था जिसने स्वचालित एसएलआर से गोलियां चलाईं। उसके पास खुद पिस्तौल था लेकिन उसने दूसरे एक जवान से एसएलआर छीनकर बेतहाशा फायर कर दिया।
पास में खड़े दूसरे पुलिसकर्मी ने याद करके कहा फायर करने वाला 61 वीं बटालियन का उपअधीक्षक था। जैसे दुश्मनी निकाल रहा हो, ऐसे फायर कर रहा था। इस वार्ता के दौरान सरयू घाट पर ही तैनात चार-पांच जवान और आ जाते हैं। उनमें से एक बताता है कि उस समय जवानों ने अपने ही अधिकारियों पर रायफल तान दिया था। लेकिन बीच-बचाव करके मामला शांत कराया गया। विजयराजे सिंधिया की गिरफ्तारी के दौरान ही एक जवान ने घोषित कर दिया कि नौकरी भले चली जाए, वह गोली नहीं चलाएगा। 30 अक्टूबर को भी कुछ जवान कारसेवकों में शामिल हो गए।
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भारत-तिब्बत सीमा पुलिस पर गुस्सा
सरयू पुल के पास ही टेंट में एक आईपीएस बैठे थे। वहां वायरलेस सेट लगातार बज रहा था। वायरलेस सेट पर आवाज आई- दिंगबर अखाड़े से निकलकर कारसेवक हनुमान गढ़ी की तरफ जा रहे हैं ओवर दूसरी तरफ से कहा गया इतने जवान थे तो रोक क्यों नहीं पाएं? आईपीएस ने कहा सही है कोतवाली से ही भगा देते।
वायरलेस पर भारत तिब्बत सीमा पुलिस के अधिकारी की आवाज आई- मैंने तो 30 तारीख को ही बोला था कि मारो तो सौ-दो सौ मारो।
कल के अंक में हम आपको बताएंगे कि 30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 के नरसंहार के बाद क्या हुआ। किस प्रकार जगह-जगह लोग सत्याग्रह के लिए बैठे। लाखों गिरफ्तार हुए। कारसेवा के लिए अयोध्या आई राजस्थान की महिलाओं का संघर्ष। यहां आप वीडियो देख सकते हैं जिसमें दिखाया गया है अयोध्या में शुरू हुए सत्याग्रह के दौर के बारे में।