22 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Ayodhya Ram Lalla: 22 दिसंबर 1949: वह ऐतिहासिक रात, जब रामलला के प्राकट्य से बदल गई अयोध्या की तक़दीर

Ayodhya Ram Mandir : 22-23 दिसंबर 1949 की आधी रात अयोध्या के विवादित परिसर में रामलला के प्राकट्य की घटना ने इतिहास की दिशा बदल दी। यह क्षण राम मंदिर आंदोलन का निर्णायक मोड़ बना, जिसने आस्था, संघर्ष और न्यायिक प्रक्रिया को दशकों तक प्रभावित किया।

4 min read
Google source verification
76 वर्ष पहले रामलला का प्राकट्य: 22-23 दिसंबर 1949 की आधी रात की घटना, जिसने राम मंदिर आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया (फोटो सोर्स : राम मंदिर अयोध्या )

76 वर्ष पहले रामलला का प्राकट्य: 22-23 दिसंबर 1949 की आधी रात की घटना, जिसने राम मंदिर आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया (फोटो सोर्स : राम मंदिर अयोध्या )

Ayodhya Historic Midnight: भारतीय इतिहास में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जो समय के साथ केवल स्मृति नहीं रहतीं, बल्कि एक पूरे युग की दिशा तय करती हैं। 22-23 दिसंबर 1949 की आधी रात अयोध्या के तत्कालीन विवादित परिसर में घटित घटना भी ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना थी। ठीक 76 वर्ष पहले, उसी रात भगवान रामलला का प्राकट्य हुआ था,एक ऐसी घटना, जिसने न केवल धार्मिक भावनाओं को गहराई से प्रभावित किया, बल्कि आने वाले दशकों में राम मंदिर आंदोलन का सबसे निर्णायक मोड़ भी साबित हुई। आज जब अयोध्या में भव्य राम मंदिर में रामलला विराजमान हैं, तब उस ऐतिहासिक रात को याद करना स्वाभाविक है, जिसने संघर्ष, आस्था और आंदोलन तीनों को एक नई दिशा दी।

पूस की ठिठुरती रात और इतिहास का आरंभ

22 दिसंबर 1949 की रात पूस महीने की कड़ाके की ठंड लिए हुए थी। सरयू नदी की ठंडी हवाएं अयोध्या की गलियों में सिहरन भर रही थीं। आधी रात के आसपास, लक्ष्मण किला घाट पर पांच साधु पहुंचे। उन्होंने सरयू में डुबकी लगाई और स्नान के बाद बाहर आए। इन साधुओं में से एक के सिर पर बांस की टोकरी थी।

उस टोकरी में भगवान राम के बाल स्वरूप की अष्टधातु की मूर्ति रखी थी। साधुओं की यह टोली चुपचाप उस समय के विवादित परिसर की ओर बढ़ी। परिसर में पहुंचकर उन्होंने चांदी के छोटे सिंहासन पर मंत्रोच्चार के साथ रामलला की स्थापना की। यह क्षण भारतीय इतिहास के सबसे चर्चित अध्यायों में से एक की शुरुआत था।

हवलदार अब्दुल बरकत और “अलौकिक रोशनी” का बयान

उस रात विवादित परिसर में सुरक्षा की जिम्मेदारी हवलदार अब्दुल बरकत की थी। उनकी ड्यूटी रात 12 बजे से शुरू होनी थी, लेकिन वे लगभग डेढ़ बजे पहुंचे। तब तक साधु रामलला की मूर्ति स्थापित कर चुके थे। ड्यूटी में देरी को लेकर जब सवाल उठा, तो अब्दुल बरकत ने जो बयान दिया, वह आगे चलकर राम मंदिर आंदोलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। उन्होंने अपनी एफआईआर में बताया कि रात 12 बजे के आसपास परिसर में अलौकिक रोशनी दिखाई दी। रोशनी कम होने पर उन्होंने देखा कि वहां भगवान की मूर्ति विराजमान है। बरकत के इस बयान को चमत्कार के प्रमाण के रूप में देखा गया। एक मुस्लिम हवलदार द्वारा रामलला के प्राकट्य की पुष्टि करना उस समय सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना गया। यह बयान वर्षों तक चलने वाले विवाद और मुकदमों में भी बार-बार चर्चा का विषय बना।

प्रशासन पर दबाव और सिटी मजिस्ट्रेट की ऐतिहासिक भूमिका

घटना की जानकारी मिलते ही प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई। उस समय अयोध्या के जिलाधिकारी के.के. नैयर थे, जबकि सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह थे। संयोगवश जिलाधिकारी अवकाश पर थे और सिटी मजिस्ट्रेट को कार्यभार सौंपा गया था। दिल्ली से तत्कालीन प्रधानमंत्री की ओर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को विवादित परिसर से मूर्ति हटाने के निर्देश दिए गए। यह आदेश बेहद संवेदनशील था, क्योंकि पूरे क्षेत्र में जनभावनाएं उफान पर थीं।

मूर्ति हटाने से इनकार और इस्तीफा

सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए प्रदेश सरकार को रिपोर्ट भेजी। उन्होंने स्पष्ट लिखा कि इस समय मूर्ति हटाने से कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है और बड़े पैमाने पर दंगे भड़क सकते हैं। राजनीतिक दबाव बढ़ता गया, लेकिन गुरुदत्त सिंह अपने निर्णय पर अडिग रहे। अंततः उन्होंने सिटी मजिस्ट्रेट पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, इस्तीफा देने से पहले उन्होंने दो ऐसे ऐतिहासिक आदेश पारित किए, जो आगे चलकर राम जन्मभूमि की मुक्ति की नींव बने।

दो आदेश, जिन्होंने इतिहास बदल दिया

सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह द्वारा पारित किए गए दो आदेश आज भी ऐतिहासिक माने जाते हैं-

1. पहला आदेश:
विवादित परिसर को धारा 145 (कुर्की) के तहत सुरक्षित किया गया और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए धारा 144 लागू की गई। इसका उद्देश्य था कि किसी भी पक्ष द्वारा हिंसा या अराजकता न फैलाई जाए।

2.दूसरा आदेश:
रामलला की मूर्ति का दैनिक भोग, प्रसाद और पूजन हिंदुओं द्वारा किए जाने का आदेश दिया गया। यह निर्णय आगे चलकर न्यायिक प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण आधार बना। इन आदेशों के कारण रामलला वहीं विराजमान रहे और वर्षों तक चले कानूनी संघर्ष की दिशा तय हुई।

राम जन्मभूमि सेवा समिति और प्राकट्य उत्सव

रामलला के प्राकट्य के उसी वर्ष राम जन्मभूमि सेवा समिति की ओर से प्राकट्य उत्सव मनाने की परंपरा शुरू की गई। तब से लेकर आज तक हर वर्ष 22-23 दिसंबर को यह उत्सव श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष संयोगवश 77वां प्राकट्य उत्सव 23 दिसंबर को ही मनाया जा रहा है, जिससे 1949 की उस ऐतिहासिक घटना की स्मृति और भी प्रासंगिक हो जाती है।

आंदोलन का निर्णायक मोड़

इतिहासकारों और आंदोलन से जुड़े लोगों का मानना है कि यदि 1949 में रामलला का प्राकट्य न हुआ होता, तो राम मंदिर आंदोलन की दिशा और स्वरूप कुछ और हो सकता था। यह घटना ही वह बिंदु बनी, जहां से आंदोलन ने जनमानस में गहरी जड़ें जमाईं। इसके बाद दशकों तक चले आंदोलन, कानूनी लड़ाइयों, सामाजिक संघर्षों और राजनीतिक बहसों ने अंततः 21वीं सदी में जाकर एक नया अध्याय लिखा।

आज के संदर्भ में 1949 की रात

आज, जब अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पूरा हो चुका है और रामलला भव्य गर्भगृह में विराजमान हैं, तब 22-23 दिसंबर 1949 की वह ठंडी रात केवल इतिहास नहीं, बल्कि आस्था, संघर्ष और संकल्प की प्रतीक बन चुकी है। रामलला का प्राकट्य केवल एक धार्मिक घटना नहीं था, बल्कि वह क्षण था, जिसने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आंदोलन, एक विचार और एक लक्ष्य को जन्म दिया।


बड़ी खबरें

View All

अयोध्या

उत्तर प्रदेश

ट्रेंडिंग