
फेयरवेल प्रोग्राम में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'जस्टिस नजीर आम आदमी के जज हैं जो लॉ की सभी ब्रांचेज के एक्सपर्ट हैं, खासकर दीवानी कानून यानी सिविल लॉ में।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. अब्दुल नजीर बुधवार को रिटायर हो गए। उन्होंने अपने फेयरवेल स्पीच में दिल को छू लेने वाली बात कही जिसने सबका दिल जीत लिया।
जस्टिस नजीर ने कहा कि अयोध्या कंट्रोवर्सी पर 9 नवंबर, 2019 को आए फैसले में अगर उन्होंने बाकी जजों से अपनी अलग राय रखी होती तो वो आज अपने कम्युनिटी के हीरो बन गए होते, लेकिन उन्होंने कम्युनिटी का नहीं, देशहित का सोचा।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, 'देश के लिए तो जान हाजिर है।' जस्टिस नजीर अयोध्या राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद केस पर फैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच मेंबर वाली बेंच में शामिल थे।
सर्वोच्च न्यायालय की इस बेंच के सभी पांच जजों ने राम मंदिर के पक्ष में सर्वसम्मति से फैसला दिया था। फेयरवेल स्पीच में जस्टिस नजीर ने कहा कि वो चाहते तो चार साथी जजों की राय से अलग होकर अपना फैसला दे सकते थे।
उनके ऐसा करने पर भी फैसला राम मंदिर के पक्ष में ही रहता, लेकिन वो खुद मुस्लिम कम्युनिटी की नजरों में हीरो बन जाते। जस्टिस नजीर ने कहा, 'लेकिन देश के लिए सर्वस्व न्योछावर है।'
नवंबर 2019 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने विवादित स्थल को हिंदू पक्ष को सौंपकर मुस्लिमों को अलग से 5 एकड़ जमीन दे दी।
थिएटर के शौकीन, टीचर के बात को बनाया सोर्स ऑफ इंस्पिरेशन
एस. अब्दुल नजीर कर्नाटक में दक्षिण कन्नड़ डिस्ट्रिक्ट में मौजूद दूर-दराज के एक गांव में पैदा हुए थे। जब वो स्कूल में थे, तभी उनके पिता की डेथ हो गई। जिससे उनके ऊपर परिवार की पूरी जिम्मेदारी आ गई।
लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में नहीं छोड़ी। अब्दुल नजीर ने ग्रैजुएशन पूरा करके लॉ कॉलेज में एडमिशन ले लिया। उन्होंने वहां अपने एक टीचर की बात को अपने लिए सोर्स ऑफ इंस्पिरेशन बना लिया। लॉ टीचर ने कहा था, 'अगर कोई कानून के पेशे में फिट नहीं बैठता है तो वो किसी पेशे में फिट नहीं बैठ सकता।'
उन्होंने इसी फॉर्मूले को अपने जेहन में बिठा लिया और कर्नाटक की अलग-अलग अदालतों में प्रैक्टिस करते रहे। लेकिन नजीर का एक और पैशन था- थिएटर। उन्होंने अपने प्रोफेशन को कभी पैशन के आड़े नहीं आने दिया।
उन्होंने नाटक यानी प्ले लिखे, डायलॉग्स लिखे और अपने ही डायरेक्शन में खेले गए एक प्ले में मेन वीमेन सिंगर का रोले भी निभाया था। दरअसल, उस दौर में फीमेल सिंगर की भारी कमी होती थी।
नजीर ने इस कमी को अपनी टैलेंट से पूरा किया। जब वो जज बन गए, तो उन्हें पता चला कि महिला जजों की भी भारी कमी है।
साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट जज बने थे जस्टिस नजीर, बचपन के फॉर्मूले से सच हुए सपने
सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन की ओर से ऑर्गनाइज फेयरवेल प्रोग्राम में जस्टिस नजीर ने कहा, 'भारतीय न्यायपालिका लैंगिक असमानता से पीड़ित है। यानी जेंडर इनइक्वलिटी से पीड़ित है।
जुडिशरी में महिलाओं का पार्टिसिपेशन बहुत कम है। जैसा कि यूनाइटेड नेशन के पूर्व जनरल सेक्रेटरी कॉफी अन्नान ने कहा कि डेवलपमेंट के लिए वीमेन एम्पावरमेंट से बड़ा कोई और वेपन नहीं हो सकता।'
जस्टिस नजीर वकालत शुरू करने के ठीक 20 साल बाद साल 2003 में कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस अपॉइंट हुए थे। साल 2017 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के रूप में अपॉइंट किया गया।
फेयरवेल प्रोग्राम में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'जस्टिस नजीर आम आदमी के जज हैं जो लॉ की सभी ब्रांचेज के एक्सपर्ट हैं, खासकर दीवानी कानून यानी सिविल लॉ में। एक जज के रूप में जस्टिस नजीर का व्यवहार एक्सीलेंट रहा।'
'धर्मो रक्षति रक्षित:।' श्लोक से बताया धर्म का मीनिंग, इस दुनिया में सब कुछ धर्म से ही इस्टेब्लिश हुआ है
जस्टिस नजीर ने अपने फेयरवेल स्पीच का एंड एक संस्कृत श्लोक के साथ किया। उन्होंने कहा, 'धर्मो रक्षति रक्षित:।' मतलब, धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म आपकी रक्षा करेगा। उन्होंने कहा कि यह श्लोक एक जज के रूप में उनके करियर का मूल मंत्र रहा है।
जस्टिस नजीर बोले, 'इस दुनिया में सब कुछ धर्म से ही इस्टेब्लिश हुआ है। धर्म उसका विनाश कर देता है जो धर्म की हानि करते हैं। उसी तरह, धर्म उसका बचाव करता है जो धर्म को पालते हैं।'
Updated on:
05 Jan 2023 05:46 pm
Published on:
05 Jan 2023 05:30 pm
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