बता दें कि 23 नवंबर 2007 को वाराणसी, फैजाबाद, लखनऊ की कचहरी में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे। इस ब्लास्ट के बाद आजमगढ़ में एक लावारिश कार मिली थी। कुछ दिन बाद ही सरायमीर के पास इज्तेमा था। इसी दौरान तारिक काजमी की बाराबंकी से गिरफ्तारी हुई। उस समय उलेमा कौंसिल का उदय नहीं हुआ था और नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी ने गिरफ्तारी को बड़ा मुद्दा बनाया था।
उस समय नेलोपा के लोगों ने एसटीएफ पर आरोप लगाया था कि तारिक की गिरफ्तारी चेकपोस्ट आजमगढ़ के पास से उस समय की गई जब वह इस्तेमा में शामिल होने जा रहा था। इसे लेकर पार्टी ने लगातार धरना प्रदर्शन किया। इसके बाद वर्ष 2008 में बीनापारा के अबू बसर की गिरफ्तारी हुई। फिर बटला एनकाउंटर जिसमें जिले के दो युवक मारे गए। फिर आतंकी वारदातों में यहां के लोगों के शामिल होने का खुलासा होना शुरू हो गया। बटला एनकाउंटर के बाद उलेमा कौंसिल का जन्म हुआ।
वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो उलेमा कौंसिल ने खुद को आतंकी वारदातों में शामिल लोगों को बेगुनाह बताते हुए चुनाव मैदान में कूदने का फैसला किया और आजमगढ़ से इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी के पिता डा. जावेद अख्तर को प्रत्याशी बनाया।
वहीं दूसरी तरफ नेलोपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मो. अरशद खान ने लखनऊ में स्थित पार्टी कार्यालय पर पत्रकार वार्ता में हकीम तारिक को पार्टी का प्रत्याशी घोषित किया और कहा कि 24 मार्च को कोर्ट का परमीशन मिलने पर 25 मार्च को नामांकन किया जायेगा लेकिन तारिक का नामांकन नहीं हो सका। उस समय नेलोपा ने दावा किया था कि उसने तारिक से बातचीत के बाद उसे प्रत्याशी घोषित किया है। बाद नेलोपा बिखर गयी। अब तारिक को उम्रकैद की सजा सुनाई जा चुकी है लेकिन इस मामले में इनमें से कोई भी संगठन आगे नहीं आया है और ना ही कोई कुछ बोलने को तैयार है।
By Ran Vijay singh