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चुनावी फिजा में फिर उठेगा पूर्वांचल राज्य का मुद्दा

छोटे दल दे सकते हैं इस मुद्दे को हवा, अमर सिेंह ने पूर्वांचल राज्य के लिए की थी पदयात्रा 

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Ashish Kumar Shukla

Apr 03, 2016

separate state

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आजमगढ़. मिशन-2017 फतह की तैयारी में जुटे राजनीतिक दल भले ही एक दूसरे पर कीचड़ उछालकर अथवा दूसरों की कमजोरियों को भुनाकर सत्ता का सुख की पाने की मंशा पाले हो लेकिन छोटे दल उनकी राह में कांटा बोने के लिए तैयार है। आजमगढ़ में बटला कांड को फिर भुनाने की अगर तैयारी हो रही है तो पूर्वांचल राज्य के मुद्दे को भी हवा मिलना तय माना जा रहा है। जिसके लिए कम से कम सत्ताधारी दल सपा और मुख्य विपक्षी दल बसपा कहीं से भी तैयार नहीं है।

वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव या फिर 2012 का विधानसभा चुनाव दोनों में ही आतंकी घटनाओं में फंसे युवकों की रिहाई का मामला मुद्दा बना था। सपा ने तो इनकी रिहाई का वादा भी किया था जिसका उसे काफी फायदा मिला था। यह अलग बात है कि सरकार अपना वादा पूरा करने में असफल रही थी। ऐसे में उलेमा कौंसिल इस मामले को भुनाने के लिए पूरी तरह तैयार है। यहीं नहीं अब रिहाई मंच भी चुनावी मैदान में कूदने की मंशा रखता है। इसके लिए पार्टी लगातार कैंपेन कर लोगों को चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित कर ही है। रहा सवाल उलेमा कौंसिल का तो वह आज भी मामले के न्यायिक जांच की मांग को लेकर संघर्ष कर रही है।

बटला इनकाउंटर की बरसी पर पार्टी एक बार फिर इस मुद्दे को हवा देने के तैयारी है तब तक चुनाव भी नजदीक होगा। वहीं दूसरी तरफ भासपा चुनाव से पूर्व पूर्वांचल राज्य के गठन के मुद्दे को हवा में उछाल सकती है। सूत्रों की माने तो पार्टी इसके लिए पूरी तैयारी कर चुकी है। यह दोनों ही मुद्दे सपा और बसपा को असहज करने वाले है। यही नहीं अगर सपा अमर सिंह को पूर्वांचल में प्रचार के लिए अमर सिंह का उपयोग करती है तो ये छोटे दल पार्टी को उसी के दाव में फंसाने का प्रयास करेंगे। कारण कि अमर सिंह ने सपा से अलग होने के बाद पूर्वांचल राज्य के लिए पद यात्रा की थी। इसके बाद ही उन्होंने पार्टी का गठन किया था। सपा ने कभी भी पूर्वांचल राज्य के मुद्दे को तरजीह नहीं दी है।

वहीं राजनीति के जानकारों की मानें तो मुलायम सिंह यादव और मायावती दोनों पश्चिम से है ऐसे में पूर्वांचल राज्य का गठन उनके लिए राजनीति की दृष्टि से घाटे का सौदा है। कारण कि यूपी की सत्ता में ये जब भी काबिज हुए है उसमें पूर्वांचल का सबसे अधिक योगदान रहा है। ऐसे में इन दोनों दलों को छोटी पार्टियों के साथ ही इन दोनों मुद्दों की भी काट खोजनी होगी। सवाल छोटे दलों का वे अभी अपनी जुबान नहीं खोल रहे लेकिन भीतर ही भीतर इन दोनों मुद्दों को लेकर उनकी तैयारी साफ दिख रही है।

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