गठबंधन टूटने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सुभासपा को गहरी चोट पहुंचाई है। सुभासपा अपने गढ़ पूर्वांचल में तीन खेमों में बंट गई। मैनपुरी में ओमप्रकाश का उपचुनाव लड़ने का सपना टूट गया। आइए जानते हैं ओपी की राजनीति पर इसका क्या असर पड़ा है।
सपा सेे गठबंधन कर सुभासपा ने यूपी में सबसे बड़ी जीत हासिल की। अब गठबंधन टूटने के बाद सबसे बड़ी चोट भी ओपी राजभर को सपा से ही मिली है। बार-बार गठबंधन, ओमप्रकाश का बड़बोलापन और माफिया प्रेम सुभासपा पर भारी पड़ रहा है। वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव ने जोे चोट सुभासपा को दी है उससे उनके सामने कहीं न कहीं अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है।
ओपी के गढ़ में ही पार्टी तीन खेमों में बंट गई है। सुुभासपा मुखिया मैनपुरी में डिंपल के खिलाफ प्रत्याशी उतार निकाय चुनाव से पहले अपने वोट बैंक को साधने की कोशिश जरूर किए लेकिन उनका यह दाव भी पर्चा खारिज होने से फेल हो गया। यह अलग बात है कि अब पार्टी इसका भी ठिकरा सपा पर फोेड़ कोर्ट जाने का दावा कर रही है। पर सवाल वही है कि क्या अब भी राजभर समाज पर एक छत्र राज ओपी कर पाएंगे?
शशि प्रताप सिंह ने दिया पहला झटका
जुलाई 2022 में सुभासपा के वरिष्ठ नेता प्रदेश प्रवक्ता शशि प्रताप सिंह ने सबसे पहले ओमप्रकाश राजभर को झटका दिया था। उन्होंने ओमप्रकाश पर विचारधारा से विपरीत काम करने तथा परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए न केवल सुभासपा छोड़ा बल्कि राष्ट्रीय समता पार्टी का गठन किया। उन्होंने 2022 के विधानसभा में हार के लिए ओपी राजभर के बड़बोलेपन को जिम्मेदार बताया।
शशि प्रताप सिंह सुभासपा-सपा का गठबंधन टूटने के बाद खुलकर अखिलेश के साथ खड़े हुए। उनकी कई मुलाकात अखिलेश यादव से हो चुकी है। शशि प्रताप सिंह के अलग होने से वाराणसी में पार्टी काफी कमजोर हुइ हुई।
पूर्व विधायक त्रिवेणी राम खुलकर सपा के साथ
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-सुभासपा गठबंधन में जखनियां सुरक्षित सीट से विधायक चुने गए मुहम्मदाबाद के करमचंदपुर निवासी त्रिवेणी राम भी सुभासपा छोड़ सपा खेमें में खड़े हो चुके है। पूर्व विधायक त्रिवेणी राम का आरोप है कि उन्हें पैसा न देने के कारण 2022 में टिकट नहीं दिया गया। कहीं भी पार्टी ने कार्यकर्ता को मौका नहीं दिया। अब वे सपा में शामिल हो रहे है। अखिलेश से उनकी मुलाकात होे चुकी है। इस बात को खुद पूर्व विधायक ने स्वीकार किया है। यह सुभासपा के लिए बड़ा झटका है।
मोदी के कट्टप्पा महेंद्र राजभर ने भी बना ली पार्टी
ओमप्रकाश राजभर के सबसे खास रहे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महेंद्र राजभर भी ओमप्रकाश के साथ नहीं रहे। वर्ष 2017 में पीएम मोदी ने इन्हें कट्टप्पा नाम दिया था। महेंद्र ने कट्टप्पा के अंदाज में ही ओपी राजभर को सबसे गहरी चोट दी। महेंद्र सुभासपा के 200 बड़े नेेताओं तो तोड़कर सुहेलदेव स्वाभिमान पार्टी का गठन कर चुके है। खुद ओपी ने पार्टी में टूट के लिए सपा के वरिष्ठ नेता राजीव राय और अखिलेश यादव को जिम्मेेदार बताया है।
सुभासपा किसान मोर्चा ने भी छोड़ा साथ
सुभासपा का किसान मोर्चा भी अब ओमप्रकाश के साथ नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष मास्टर राधेश्याम सिंह कुशीनगर के जिलाध्यक्ष, जिला प्रभारी सहित दो दर्जन से अधिक नेताओं के साथ अलग हो गए हैं। राधेश्याम सिंह ने ओम प्रकाश राजभर पर पार्टी चलाने के बजाय रुपये वसूलने की मंडी खोलने का आरोप लगाया है। यह गुट भी महेंद्र राजभर के साथ खड़ा दिख रहा है।
ओपी का मैनपुरी दाव भी हुआ फेल
पूर्वांचल में पार्टी की बिगड़ती स्थिति को देख ओप्रकाश ने मैनपुरी उपचुनाव में प्रत्याशी उतार पश्चिम में अपनी जड़े जमाने की कोशिश की लेकिन उनका यह दाव भी फेल हो गया। कारण कि यहां उनके प्रत्याशी रमाकांत कश्यप का नामाकंन रद्द हो गया है। वैसे पर्चा खारिज होने के लिए वे सपा और अखिलेश यादव यादव को जिम्मदार बताते हुए कोर्ट जानेे की बात कह रहे हैं।
राजभर मतों पर नहीं रहा ओपी का एकमुश्त दावा
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव तक पूर्वांचल के 8 प्रतिशत राजभर मतों पर ओम प्रकाश राजभर का एकमुश्त दावा था। ओपी राजभर की एक आवाज पर हजारों लोग खड़े हो जाते थे। वर्ष 2022 में सपा के साथ गठबंधन कर ओपी ने पूर्वांचल में पहली बार छह सीटें जीती थी। जबकि बीजेपी के साथ गठबंधन में उन्हें वर्ष 2017 में चार सीट पर जीत मिली थी लेकिन अब ओमप्रकाश के लिए यह प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं होगा। कारण कि राजभर वोट खेमें में बंट गया है।
ओप्रकाश के खिलाफ लगे नो इंट्री के पोस्टर
सुभासपा के गठन के बाद यह पहला अवसर है जब मऊ में ओमप्रकाश के राजभर गांवों में नो-इंट्री का पोस्टर लगाया गया। यह अलग बात है कि ओपी ने इसे महेंद्र राजभर की साजिश बताकर मामले से पल्ला झाड़ लिया लेकिन यह साफ है कि अब ओपी के लिए परिस्थितियां पहले जैसी अनकूल नहीं रही।
2024 में आसान नहीं होगी दबाव की राजनीति
पार्टी में बिखराव के बाद बड़े दलों को इस बात का एहसास है कि अब पूर्वांचल में ओपी राजभर की पहली वाली हैसियत नहीं रही। अब उन्हें सुभासपा के वोटबैंक को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसे में पूर्व के चुनावों की तरह अब ओपी के लिए बड़े दलों से सीट समझौते के लिए दबाव बनाना आसान नहीं होगा।
पार्टी टूट पर क्या है पिता-पुत्र का दावा
पार्टी में बिखराव को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओपी राजभर व उनके पुत्र राष्ट्रीय महासचिव अरूण राजभर गलत बताते हैं। इनका कहना है कि कुछ लोगों के जाने से सुभासपा की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा है। राजभर समाज उनके साथ था और आगे भी रहेगा। कारण कि वे लगातार उनके हित की लड़ाई लड़ते रहे है। अरुण ने तो यहां तक कह दिया कि सुभासपा का खौफ ही था कि मैनपुरी में पार्टी प्रत्याशी का पर्चा खारिज कराया गया।