
हर विशेष मौको पर बड़ी संख्या में पहुंचते हैं पर्यटन
वर्ष 2025 की विदाई और नए वर्ष के आगमन को अब 2 दिन ही शेष रह गए हैं। ऐसे में पर्यटन प्रेमियों और सैलानियों ने विभिन्न स्थानों पर पहुंचकर अलग-अलग तरह से नए वर्ष को सेलिब्रेट करने का मन बनाया है। जिले के प्रमुख पिकनिक व पर्यटन स्पॉट भी पर्यटकों को लेकर पूरी तरह से तैयार है। यहां हर विशेष मौको पर बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। प्रकृति के बीच परिवार और दोस्तों के साथ मौज मस्ती व पिकनिक मनाकर अपने दिन को खास मनाते हैं। मप्र टूरिज्म बोर्ड भी पर्यटको को हर तरह की सुविधाएं और स्पॉट का लुत्फ सभी ले सकें इसके लिए तैयार कर रहा है।
जिला प्राकृतिक धरोहरो के बलबूते एक अलग पहचान रखता है। ऐसा ही एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल गांगुलपारा जलाशय इको पर्यटन क्षेत्र है। यह जिला मुख्यालय से महज 15 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां जिले का बहुचर्चित जलाशय और वॉटरफाल है। यह जलाशय पहाडिय़ों और घने जंगलों के बीच मौजूद है। यहां का नजारा पर्यटको के दिल तक छू जाता है। यहां पहाडिय़ों और जंगलों के बीच प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है। यहां पहाडिय़ों से कलकल ध्वनि से बहते झरने का नजारा व बोटिंग करने लोग पहुंचते हैं।
वर्षों से जिलेवासियों के लिए सैर सपाटे व मनोरंजन का प्रमुख स्थान रहा वनस्पति उद्यान एक बार फिर नए वर्ष में गुलजार नजर आएगा। इस उद्यान में आने वाले लोग मनोरंजन, पिकनिक के साथ मॉ वैनगंगा नदी किनारे प्रकृति का रोमांच पाने पहुंचते हैं। 47 हेक्टेयर में फैले आरक्षित वन कक्ष क्रमांक 513 दक्षिण वन मंडल सामान्य वनस्पति उद्यान गर्रा को पर्यटकों के लिए तैयार किया गया है। मुख्याल से पांच किमी दूरी पर स्थिति इस उद्यान में सडक़ व रेल मार्ग दोनों से पर्यटक पहुंचते हैं।
जिला मुख्यालय से 25-30 किमी दूर स्थित रमरमा वाटर फाल पर्यटन स्थल के साथ ही आस्था का अटूट केंद्र बना हुआ है। यहां का अद्भुत झरना 24 घंटे महादेव का अभिषेक करता है। कहते हैं कि घूमते हुए शिव जी को यह स्थान पसंद आया था, वो यहीं रम गए इसलिए इसका नाम रमरमा रखा गया। यहां की पहाडिय़ों में कई गुफाएं बनी हुई हैं। इन गुफाओं में मूर्तियां विराजमान है। इन मूर्तियों से लाखों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है। पहाड़ों के बीच बनी ऐसी ही एक गुफा में शिवलिंग, माता पार्वती और भगवान गणेश की मूर्तियां अलग-अलग स्थानों में विराजमान है।
जिले के नाम को चार चांद लगाने वाली हट्टा की बावली किसी अजूबे से कम नहीं है। राजा हटेसिंह के कार्यकाल में बनाई गई तीन मंजिला इस बावली में दो मंजिल तक हमेशा पानी भरा होता है। इस बावली में हर साल एक जनवरी को तीन दिन का मेला लगता है। इस दौरान हजारों की संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। राज्य शासन ने इसे अपने अधीन कर लिया है। यहां भी नए वर्ष को सेलिब्रेट करने लोग पहुंचा करते हैं।
कल्चुरीवंश वंश के गोंड राजाओं के जमाने में लांजी के किले का निर्माण हुआ था। किले में पुरातन काल के अवशेष, महामाया का मंदिर पर्यटकों को अपनी ओर लुभाता है। कारण यहीं है कि किला पूरे देश में जाना-जाता है। वर्तमान में भौगोलिक दृष्टि से देखे तो किला चारों ओर खाई से घिरा हुआ है। किले में प्रवेश के लिए चार रास्ते इनमें एक बड़ा प्रवेश द्वार है। केन्द्र सरकार ने इस किले को अपने अधीन कर इसकी सुरक्षा और देखरेख के लिए चौकीदार और कर्मचारियों की तैनाती भी की गई है।
जिले के उक्त पर्यटन स्थलों के अलावा मुख्यालय के समीप लगे जागपुर घाट, शंकरघाट, बजरंग घाट, डूटी घाट, सोनेवानी वन्य प्राणी अनुभूति स्थल, किरनापुर डोंगरगांव, गढ़दा, नरसिंगा पहाड़ी, नहलेसरा बांध सहित दर्जनों क्षेत्र ऐसे हैं जहां सालभर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। वहीं विशेष मौको पर यहां मेला जैसी स्थिति रहती है।
Published on:
29 Dec 2025 04:02 pm
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