
12 वर्ष बाद भरी सूनी गोद
बेंगलूरु. दुर्लभ रक्त विकार, किमोथेरेपी, दो विफल आइवीएफ और गर्भावस्था के दौरान विभिन्न स्वास्थ्य जटिलताएं भी एक महिला को मां बनने से नहीं रोक सकी। चिकित्सकों की देखरेख में उसने एक शिशु जन्मा, जिसे हृदय में छेद सहित अन्य कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ा। बच्चा अब डेढ़ वर्ष का हो चुका है। मां भी काफी स्वस्थ है।
विक्रम अस्पताल की कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. निति रायजादा (Dr. Niti Raizada) ने बुधवार को अस्पताल में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में मामले की जानकारी देते हुए कहा कि चलने में अस्थिरता, सिर दर्द और नाक जाम की शिकायत के साथ 38 वर्षीय रूपा (परिवर्तित नाम) अस्पताल आई थी। सिर और गर्दन के एमआरआइ (MRI) अथवा साइनस के बायोप्सी में दुर्लभ रक्त विकार इंट्राक्रैनियल रोसाई डोर्फमैन (Intracranial Rosai Dorfman Disease or RDD) के रूप में बीमारी सामने आई। तीन माह तक किमोथेरेपी के बाद फौलोअप के दौरान प्राकृतिक रूप से महिला के गर्भवती होने की पुष्टि हुई। आरडीडी और किमोथेरेपी (chemotherapy) के दौरान ऐसा होना अपने आप में दुर्लभ मामला है। तमाम जोखिमों के बावजूद रूपा ने बच्चे को जन्म देने का निर्णय लिया।
उच्च जोखिम गर्भावस्था का मामला
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शशिकला क्षीरसागर ने बताया कि उच्च जोखिम गर्भावस्था का मामला था। मधुमेह, अनीमिया, हाइपोथायरायडिज्म, डबल विजन और एलर्जिक ब्रोंकाइटिस नौ माह तक चुनौती बनी रही। इस दौरान रूपा के पति ने खूब साथ निभाया। सिजेरियन प्रसव हुआ। प्रसव के करीब ढाई माह बाद रेडिएशन और रेडियोथेरेपी से ट्यूमर का उपचार जारी रहा। जिसके बाद रूपा खुद से बच्चे की देखभाल करने लायक हो गई। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. मोहन डी. महेन्द्रकर और अस्पताल के प्रबंध निदेश व मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. सोमेश मित्तल भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
Published on:
29 Jan 2020 08:48 pm
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