
चैट जीपीटी टूल : दुनिया के कई देशों में स्कूलों में प्रतिबंधित
बेंगलूरु. नई तकनीक के विकास से सहूलियत के साथ मुश्किलें भी बढ़ती है। कृत्रिम बुद्धिमता (एआइ) भी इसका अपवाद नहीं है। इंसान की तरह सवालों का जवाब देने वाले एआइ आधारित चैटबॉट ने वैश्विक स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में हलचल बढ़ा दी है। अमरीका और ब्रिटेन सहित पश्चिमी देशों के विश्वविद्यालय एआइ की इस चुनौती से शिक्षा और परीक्षा पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से निपटने के तरीकों को लेकर मंथन कर रहे हैं। न्यूयॉर्क सहित कई विदेशी शहरों में एआइ चैटबॉट चैट जीपीटी को स्कूलों की वेबसाइट या नेटवर्क पर प्रतिबंधित किया जा रहा है। नकल की सामग्री पकड़ने के लिए तकनीक का सहारा लेने पर शिक्षाविद् मंथन कर रहे हैं। देश के शिक्षण संस्थानों के लिए भी यह एक उभरती हुई चुनौती है। एक स्कूल के प्राचार्य ने कहा कि हम शिक्षकों को इस नई चुनौती से निपटने के लिए प्रशिक्षित करेंगे ताकि वे बच्चों को होमवर्क देने का तरीका बदलकर इससे ज्यादा स्मार्ट तरीके से निपट सकें।
इंसान की तरह लेख या सामग्री लिखने में सक्षम यह फ्री चैटबॉट महज डेढ़ महीने पहले ही लॉन्च किया गया था। मगर थोड़े से समय में ही इसने हलचल मचा दी है। सवाल का विस्तार से जवाब लिखने और गलतियों को सुधारने में सक्षम होने के साथ ही यह पूरक सवालों का जवाब भी दे सकता है। सिर्फ 50 दिन पुराने इस चैटबॉट ने भविष्य में शिक्षा, तकनीक और अन्य महत्वपूर्ण पेशों में एआइ के उपयोग को लेकर कई गंभीर सवाल भी उठाए हैं। विद्यार्थियों में पढ़ाई को लेकर इसके दुष्प्रभाव को लेकर शिक्षाविद् चिंतित हैं। चैटजीपीटी का कहना है कि वह इसके दुरुपयोग को कम करने के उपायों पर काम कर रही है। इस तकनीक की चुनौती से निपटने को लेकर शिक्षाविदों की राय अलग-अलग है। कुछ का मानना है कि छात्रों में पढ़ने की घटती प्रवृत्ति के बीच इस तरह की तकनीक शैक्षणिक दृष्टिकोण से घातक साबित हो सकती है जबकि कुछ का कहना है कि किसी नई तकनीक को प्रतिबंधित करना समस्या का समाधान नहीं है।
पढ़ने की घटती क्षमता चिंताजनक
शिक्षाविदों का कहना है कि छात्रों में पढ़ने की क्षमता घटती जा रही है, जो चिंताजनक है। शिक्षा के हालात पर ताजा वार्षिक रिपोर्ट (एएसइआर) के आंकड़ों इस हकीकत को बयां भी करते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में सरकारी और निजी स्कूलों के पांचवी कक्षा के ऐसे विद्यार्थियों की संख्या जो कक्षा दो की पुस्तकें पढ़ सकते हैं, 2018 के 50.5% से घटकर 42.8% रह गई है। गुणा और भाग करने में सक्षम बच्चों के अनुपात में भी गिरावट आई है।
बेंगलूरु सहित देश के कई शहरों में स्कूल एआई चैटबॉट से उपजी समस्या का हल तलाश रहे हैं। कुछ स्कूल अपने नेटवर्क पर इसके उपयोग को प्रतिबंधित कर रहे हैं तो विद्यार्थियों को जागरूक कर रहे हैं कि वे सिर्फ मौलिक जवाब ही लिखें। खासकर, गृह कार्यों या असाइनमेंट में मौलिक तथ्यों को लिखने के लिए शिक्षक छात्रों को प्रेरित कर रहे हैं। एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल प्राचार्य ने कहा कि प्रौद्योगिकी का उपयोग बच्चे के बौद्धिक विकास को बेहतर बनाने के लिए किया जाना चाहिए। यह तकनीक ऐसी होनी चाहिए कि उससे बच्चों की सीखने की प्रक्रिया प्रभावित नहीं हो। यह काम स्कूल और शिक्षकों के साथ अभिभावकों का भी है। कोविड महामारी के कारण तीन साल के दौरान बच्चे मोबाइल और तकनीक पर ज्यादा निर्भर हुए है और इससे उनकी स्वभाविक क्षमताओं पर भी असर पड़ा है।
क्या है चैट जीपीटी
यह एआइ सिस्टम की एक नई पीढ़ी का हिस्सा है जो बातचीत कर सकता है, उपयोगकर्ता की मांग के अनुरूप पठनीय सामग्री उत्पन्न कर सकता है और यहां तक कि डिजिटल पुस्तकों, ऑनलाइन लेखन और मीडिया के अन्य डेटा बेस से जो सीखा है, उसके आधार पर उपन्यास चित्र और वीडियो भी तैयार कर सकता है।
Published on:
27 Jan 2023 12:17 pm
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