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प्रवचन : जीवन में परिवर्तन लाना जरूरी

प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि मेरा जीवन मधुमय बने, मैं सबका प्रिय बनूं, सभी मुझे चाहें

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प्रवचन : जीवन में परिवर्तन लाना जरूरी

मैसूरु. समीपवर्ती मुगुरु गांव में डॉ. समकित मुनि ने बुधवार को धर्मसभा में कहा कि जीवन का कलाकार बनना है तो जीवन में परिवर्तन लाना बहुत जरुरी है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में व्यक्ति के रहन सहन, पहनावा , खान पान आदि सब चीजों में परिवर्तन हो गया लेकिन जीवन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि मेरा जीवन मधुमय बने, मैं सबका प्रिय बनूं, सभी मुझे चाहें। मुनि ने कहा कि सबसे पहले जरुरत है कि हम अपने परिवार वालों के प्रिय बनें। जब हम अपने परिवार के ही प्रिय नहीं बनते तब तक दुनिया या परमात्मा के प्रिय कैसे बन सकते हैं? सबके प्रिय बनने के लिए हमारे जीवन में मन में और वाणी में आम जैसी मिठास का होना जरुरी है। मुनि चामराजनगर से विहार से टी नरसीपुर पहुंचे थे। विहार में चामराजनगर और नरसीपुर संघ के सदस्य साथ रहे।

पेट की प्रकृति है अंतहीन भूख

बेंगलूरु. महावीर भवन अलसूर में जयधुरन्धर मुनि ने धर्मसभा में कहा कि सागर, श्मशान, तृष्णा और पेट का खड्ढा कभी भी नहीं भरता है। पेट की अंतहीन भूख पेट की प्रकृति है। उन्होंने कहा कि साधक मात्र भूख मिटाने के लिए आहार करें। स्वाद के लिए आसक्त होकर भोजन करना उचित नहीं है। हमारे शरीर के लिए सात्विक आहार श्रेष्ठ आहार है। भूख से कुछ कम आहार करने से हमारी पाचन शक्ति सही रुप से कार्य कर सकती है। भूख से कम भोजन करने से सभी इन्द्रियां नियंत्रण में भी रह सकती हैं। हम यह जरुर ध्यान रखें कि हम कभी विजातीय भोजन नहीं करें। साथ ही शरीर के योग्य परहेज का भी पूरा ध्यान रखें। अवांछित भोजन करने से परेशानियां व रोग बढ़ सकते हैं। स्वस्थ और दीर्घायु होना है तो रात्रिभोज से बचना चाहिए।

कर्म बंध से बचना चाहिए
बेंगलूरु. श्रीरामपुरम जैन स्थानक में साध्वी सुमित्राश्री ने प्रवचन में कहा कि हमें कर्म बंध से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्मों के फल का भुगतान किए बिना कोई छूट नहीं सकता। स्वयं कर्म करता है स्वयं भोगता है। पाप कर्म आने के मार्ग को अश्रव कहते हैं। जैन धर्म में 18 पाप आने के 20 रास्ते बताए हैं। ज्ञानी पुरुष पाप आने के रास्तों को 20 उपायों से बंद भी रख सकते हैं। पापों को बंद करने को सेंवर कहते हैं। कर्मों के बंध को तोडऩा या मुक्त होना निर्जरा कहलाता है।