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दीक्षा अपनी वृत्तियों को अन्तर्मुखी बनाने का नाम-आचार्य महेन्द्र सागर

धर्मसभा का आयोजन

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दीक्षा अपनी वृत्तियों को अन्तर्मुखी बनाने का नाम-आचार्य महेन्द्र सागर

दीक्षा अपनी वृत्तियों को अन्तर्मुखी बनाने का नाम-आचार्य महेन्द्र सागर

भद्रावती. पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्ती पूजक संघ भद्रावती में आचार्य महेन्द्रसागर सूरी का 41 वां दीक्षा दीवस मनाया गया। आचार्य ने कहा कि जिस दिन लोगों को त्याग-वैराग्य और संयम की प्रेरणा मिलती है वह दिन पावनकारी दिन होता है। किसी भी साधक के जीवन में दीक्षा महत्वपूर्ण घटना होती है। साधना की वास्तविक शुरुआत दीक्षा से ही होती है। लेकिन सिर्फ दीक्षा लेना ही पर्याप्त नहीं है। केवल वेष परिवर्तन का नाम दीक्षा नहीं है) दीक्षा अपनी वृत्तियों को अन्तर्मुखी बनाने का नाम है। अपनी समस्त वृत्तियों को अन्तर्मुखी बनाते हैं तब हमारे अंदर दीक्षा होती है। दीक्षा का मतलब है अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प / जो अपने परम लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है, सच्चे अर्थों में वही दीक्षित होता है। ऊपर की दीक्षा बहुत सरल है। भीतर की दीक्षा बहुत कठिन है। ऊपर की दीक्षा सबके देखने में आती है। भीतर की दीक्षा साधक खुद देख पाच है और कोई नहीं देख पाता। दीक्षा सिर्फ एक रस्म नहीं है, दीक्षा एक चित्त की वृत्ति को मोड़ने की। जिसके हृदय में अपने आपको पाने की इच्छा होती है वही दीक्षा ले पाता है। अगर अपने आपको पाना है, तो अन्तर्मुखी बनना होगा। जब हम खुद से नाता जोडेंगे तब हमारे भीतर दीक्षा की घटना होगी। वही दीक्षा हमारे जीवन की परिस्कृत करती है। मुनि राजपद्मसागर, मुनि मेरुपद्म सागर, मुनि अर्हपद्मसागर एवं मुनि देवपद्मसागर को संयम दिवस पर मंगल कामनाएं दीं। हासन से पधारे नरेन्द्र धोका, महावीर कोठारी, एवं स्थानीय ट्रस्टी दिनेश जैन ने संयम दिवस की शुभ भावनाएं व्यक्त कीं।