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धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देना कांग्रेस की हार का कारण नहीं

वैश्विक लिंगायत महासभा का अभिमत

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धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देना कांग्रेस की हार का कारण नहीं

बेंगलूरु. कर्नाटक के चुनाव को लेकर वैश्विक लिंगायत महासभा का मानना है कि कांग्रेस की हार का कारण विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने की घोषणा नहीं है। महासभा ने शनिवार को यहां जारी एक बयान में कहा, हकीकत यह है कि लिंगायत आंदोलन जहां-जहां सघन हुआ, वहां कांग्रेस को लाभ हुआ है।

चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के लिए लिंगायत आंदोलन को प्रमुख कारण बताने वाले कांग्रेस नेताओं व राजनीतिक विश्लेषकों के दावे को बेबुनियाद बताते हुए महासभा ने कहा कि कांग्रेस ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि लिंगायत मसला पार्टी के लिए कोई चुनावी मुद्दा नहीं है।

उन्होंने कहा कि 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने लिंगायत बहुल जिलों की 96 में से 29 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके बाद हुए 2013 के चुनावों में पार्टी ने 29 सीटों की बढ़त के साथ 57 सीटें जीती जिसका प्रमुख कारण भाजपा का विभाजन व येड्डियूरप्पा पृथक पार्टी बनाकर चुनाव लडऩा रहा था।

2013 में कांग्रेस ने 22 सीटों पर बहुत कम अंतर से जीत हासिल की। इन चुनावों में पार्टी ने 2008 के चुनाव की तुलना में 11 सीटें ज्यादा जीतकर कुल 40 सीटों पर जीत दर्ज की है। भाजपा के येड्डियूरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने व एकजुट होकर चुनाव लडऩे के बावजूद कांग्रेस ने इतना दमदार प्रदर्शन किया है।

उन्होंने कहा कि वास्तव में लिंगायतों ने कांग्रेस को मोदी की लहर में सूपड़ा साफ होने से एक हद तक बचाया और उत्तर कर्नाटक के अधिकतर लिंगायतों ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया है।

कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩे वाले 47 लिंगायत उम्मीदवारों में से 17 ने जीत हासिल की है। बयान में यह भी कहा गया कि इन चुनावों में कांग्रेस का मतदान प्रतिशत अब तक का सबसे अधिक यानी 38 फीसदी रहा है और भाजपा का 36 .2 फीसदी व जनतादल-एस का 18.3 फीसदी रहा है। पार्टी ने पिछले दो चुनावों की तुलना में अपने मतदान प्रतिशत में सुधार किया है।2008 में पार्टी को 35.13 फीसदी वोट मिले थे जबकि 2013 में उसे 36.76 फीसदी वोट मिले थे।