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लिंगायत धर्म का मसला : समय पर उठ रहे सवाल !

कुछ नेता इसे दूसरे नेताओं पर परोक्ष निशाना भी मान रहे हैं।

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लिंगायत धर्म का मसला : समय पर उठ रहे सवाल !

बेंगलूरु. राजनीतिक हलकों मेंं चर्चा है कि लिंगायत धर्म के मसले पर डीके शिवकुमार का यह बयान राजनीति से प्रेरित है। खासकर, बयान के समय को लेकर सवाल उठ रहे हैं। शिवकुमार का बयान तीन लोकसभा और दो विधानसभा उपचुनावों के लिए मतदान ये पहले आया है।

विपक्ष और विपक्ष के नेता शिवकुमार की मंशा को लेकर चर्चाएं कर रहे हैं। कांग्रेस के साथ ही भाजपा के नेता भी शिवकुमार के बयान से आश्चर्यचकित हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हुए नुकसान के बाद पार्टी लिंगायत और वीरशैव समुदाय को फिर से जोडऩे की कोशिश कर रही है और शिवकुमार का बयान पार्टी की इसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

शिवकुमार ने यह बात उस मठ की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कही जो लिंगायत और वीरशैव समुदाय को धर्म के आधार पर बांटने का विरोध करता है। कांग्रेस सरकार ने विधानसभा चुनाव से ऐन पहले लिंगायत मसले पर कदम उठाया था और केंद्र सरकार को सिफारिश भेजी थी। हालांकि, सरकार के मंत्रियों में ही इसे लेकर मतभेद थे।

विधानसभा चुनाव में हार के बाद जब कांग्रेस ने जद-एस के साथ गठबंधन सरकार बनाई तो अलग लिंगायत धर्म के समर्थक रहे नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली, जिसे लेकर भी नाराजगी है।

कुछ नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री बनने के आकांक्षी शिवकुमार अपना कद बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं और सोच-समझकर दिया गया बयान है जबकि कुछ नेताओं का कहना है कि शिवकुमार ने भावुक होकर बयान दे दिया। कुछ नेता इसे दूसरे नेताओं पर परोक्ष निशाना भी मान रहे हैं।

शिवकुमार ने अपने बयान को लोकसभा चुनाव के संदर्भ से जोड़े जाने को खारिज करते हुए कहा कि वे कुछ भी सोच सकते हैं लेकिन मेरे बयान का राजनीति से कोई वास्ता नहीं है। मैंने जो महसूस किया वह कह दिया।

कई बार हम गलितयां करते हैं लेकिन जब हमेशा अहसास होता है कि हमने सही नहीं किया है तब मेरी राय में माफी मांगने के साथ ही खुद को सुधारना सही होता है।