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वाणी को बाण नहीं वीणा बनाएं-मुनि अर्हतकुमार

धर्मसभा का आयोजन

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वाणी को बाण नहीं वीणा बनाएं-मुनि अर्हतकुमार

वाणी को बाण नहीं वीणा बनाएं-मुनि अर्हतकुमार

बेंगलूरु. मुनि अर्हतकुमार के सान्निध्य में तेरापंथ सभा भवन गांधीनगर में पर्वधिराज पर्युषण महापर्व के चौथे दिन वाणी संयम दिवस के रूप में आयोजित हुआ। मुनि ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा वाणी को बाण नहीं वीणा बनाएं जिसकी वाणी में मिठास है, सभी उसके पास आते है। जुबान व्यक्ति को प्रिय और अप्रिय दोनों बना सकती है। वाणी से हर समस्या का समाधान है। जहां क्रोध, झगड़ा और आवेग का माहौल हो, उस वक्त मौन रहें तथा जुबान पर नियंत्रण रखो। मीठे वचन बोलिए क्योंकि अल्फाजों में जान होती है। इनसे ही आरती, अरदास होती है। ये समन्दर के वे मोती हैं जिसने अच्छे इंसानों की पहचान होती है। आम तौर पर कुण्डली में शनि, दिमाग में मनी और जीवन में दुश्मनी-तीनों खतरनाक होते। यदि हम सॉरी कहदे तो जीवन से शनि, मनी व दुश्मनी तीनों का प्रकोप खत्म हो जाता पानी मर्यादा तोड़ता है तो विनाश होता है, पर वाणी मर्यादा तोडे तो सर्वनाश होता है। तोता तीखी मिर्ची खाकर भी मीठा बोलता, जबकि इंसान मिश्री खाकर भी तीखा और कड़वा बोलता। खुद को तोते से तो ज्यादा न गिरने दें। बोलने वाली की मिर्ची बिक जाती, कड़वा बोलने पर मिश्री रह जाती है।

मुनि ने कहा मीठे रिश्ते तभी निभ सकते हैं जब भले ही एक रूठने में एक्सपर्ट हो, पर दूसरे को मनाने में परफेक्ट होना चाहिए। यदि बोलने व मनाने की कला आजाए तो दुनियां मे न तो कोई तलाक लेगा न आत्म हत्या करेगा। वाणी को तीन स्वभाव में डाले इष्ट-यानि प्रिय, शिष्ट यानी शालीन, मिष्ट यानी मधु। मुनि भरतकुमार ने कालचक्र का वर्णन करते हुए भगवान ऋषभ की जीवनी को सरस ढंग से प्रस्तुत किया। मुनि जयदीपकुमार ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन किया। यशवंतपुर महिला मंडल की ओर से मंगलाचरण किया गया। टीपीएफ अध्यक्ष लक्ष्मीपति मालू ने स्वागत किया। ट्रस्ट अध्यक्ष प्रकाश बाबेल, मदन बरडिय़ा, हस्तीमल हिरण ने विचार व्यक्त किए। रवि बोथरा ने अठाई के प्रत्याखान किए। संचालन मंत्री गौतम मांडोत ने किया।