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अयोध्या के राम मंदिर में विराजेंगे ‘कर्नाटक के रामलला’

- राम जन्मभूमि ट्रस्ट ने किया मैसूरु के अरुण योगीराज की बनाई मूर्ति का चयन - पीढ़ी-दर-पीढ़ी निखरती रही पत्थरों में प्राण फूंकने की कला

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बेंगलूरु. अयोध्या के नवनिर्मित श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में 22 जनवरी को कर्नाटक के मूर्तिकार की बनाई मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। राज्य के गौरवशाली मूर्तिकार अरुण योगीराज की बनाई गई भगवान राम की मूर्ति को अयोध्या में भगवान राम मंदिर में स्थापित करने के लिए चुने जाने की खबर से एक बार फिर कर्नाटक की सदियों पुरानी शिल्पकला गौरवान्वित हुई है। प्राण-प्रतिष्ठा से पहले 18 जनवरी को शुभ मुहूर्त में मूर्ति को मंदिर लाकर गर्भगृह में आसन पर

विराजित किया जाएगा।धनुष-बाण पकड़े बाल रूप में राम

रामजन्म भूमि ट्रस्ट के सचिव चंपत राय ने सोमवार को प्राण-प्रतिष्ठा के लिए अरुण की तराशी रामलला की मूर्ति के चयन की घोषणा की। तीन मूर्तिकार नए मंदिर में स्थापित होने वाली मूर्ति को तराशने का काम कर रहे थे। इनमें जयपुर के सत्यनारायण पांडेय, बेंगलूरु के गणेश भट्ट और मैसूरु के अरुण योगीराज शामिल थे। अरुण की तराशी मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम के विग्रह के तौर पर स्थापित होगी तो बाकी दो मूर्तिकाराें की बनाई मूर्ति भी मंदिर परिसर में अलग-अलग स्थानों पर रखी जाएगी। हालांकि, चुनी गई मूर्ति की तस्वीर अभी सामने नहीं आई है मगर मूर्ति पैर से माथे तक 51 इंच लंबी हैं। इसमें भगवान राम पांच साल के बालक के रूप में धनुष और बाण पकड़े हुए हैं। इसका वजन 150 से 200 किलोग्राम के बीच है। बताया जाता है कि राम लला की मूर्तियां मुंबई के प्रसिद्ध कलाकार वासुदेव कामत के स्कैच पर आधारित हैं।

अपने परिवार में पांचवीं पीढ़ी के मूर्तिकार 40 वर्षीय अरुण अब तक 1000 से अधिक मूर्तियां बना चुके हैं। महलों की नगरी मैसूरु के प्रसिद्ध मूर्तिकार घराने के अरुण ने पहले केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की मूर्ति और इंडिया गेट के पास नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति बनाकर यह साबित किया था कि विरासत में मिली कला को वे नई ऊंचाइयों पर ले जाने में सक्षम हैं और वे पत्थरों में प्राण फूंकने की कला में पारंगत हैं। वे पिछले छह माह से रामलला के बाल व धनुर्धारी रूप को तराश रहे थे।

एच.डी. कोटे की कृष्णशिला से निखरे रामलला

रामलला की मूर्ति के निर्माण के लिए मैसूरु जिले के एच.डी. कोटे तालुक के बुज्जेगौदानपुरा गांव से एक बेजोड़ कृष्ण शिला को चुना गया था। मूर्ति के चयन के बाद अरुण योगीराज ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि वह खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें रामलला की मूर्ति बनाने का अवसर मिला।योगीराज ने उन्होंने मूर्ति की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहा कि राम की मूर्ति की आंखें कमल की पंखुड़ियों जैसी और रामलला का चेहरा चंद्रमा की तरह चमकदार है। होठों पर एक शांत मुस्कान है।

पत्थरों का संगीत और दादा का आशीर्वाद

अरुण योगीराज को शिल्पकला विरासत में मिली है। प्रसिद्ध मूर्तिकार योगीराज शिल्पी के पुत्र होने के नाते उन्होंने घर में छेनी और हथौड़े की गूंज सुनी थी। उनके दादा भी एक नामी शिल्पकार थे और माना जाता है कि मैसूरु के शासक राजा वाडियार के महलों को खूबसूरत बनाने में उनका अहम योगदान था। यह परिवार मैसूरु महल के शिल्पकार परिवारों में शामिल है। हालांकि, अरुण पूर्वजों की तरह मूर्तिकार नहीं बनना चाहते थे। उन्होंने वर्ष 2008 से मैसूरु विश्वविद्यालय से एमबीए किया। इसके बाद वो एक प्राइवेट कंपनी के लिए काम करने लगे लेकिन मूर्तिकला की बारीकियां उन्हें अपनी ओर खींचती रहीं। पत्थरों से छेनी के टकराने से गूंजता संगीत उन्हें मंत्रमुग्ध करता रहा। उनके दादा ने भविष्यवाणी की थी कि अरुण बड़े मूर्तिकार बनेंगे। 37 वर्षों बाद दादा का सपना साकार हो रहा है।