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दीक्षा धारण के बाद प्राप्त हुआ केवल ज्ञान

समवशरण में भगवान आदिनाथ को केवलज्ञान होने के बाद केवलज्ञान की पूजन सौधर्म, इंद्र, कुबेर सहित इंद्र परिवार द्वारा की गई।

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श्रवणबेलगोला. समवशरण में भगवान आदिनाथ को केवलज्ञान होने के बाद केवलज्ञान की पूजन सौधर्म, इंद्र, कुबेर सहित इंद्र परिवार द्वारा की गई। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के पांचवें दिन ज्ञान कल्याणक महोत्सव के जो कल तक राजकुमार आदिनाथ थे वह आज दीक्षा धारण के बाद आहार पर उतरे और दोपहर को उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और उसके बाद समवशरण की रचना हुए जहां ओर तीर्थंकर आदिनाथ की दिव्य ध्वनि खिली, जिसमें सांसारिक दु:खों से निकलने का रास्ता तथा धर्म का स्वरूप, और कैसे धर्म का पालन कर सकते हैं इस प्रकार दिव्य ध्वनि में उपदेश दिया।

समवशरण में महोत्सव के मुख्य सानिध्य कर्ता आचार्य वर्धमान सागर सहित 330 संत उपस्थिति थे। समवशरण की रचना चामुंडराय मंडप में की गई थी। महोत्सव का निर्देशन श्रवणबेलगोला मठ के चारुकीर्ति भट्टराक स्वामी कर रहे थे।
122 किलो ताम्र ग्रंथ का अनावरण आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने किया। जिस प्रकार दर्पण में एक साथ सब वस्तुएं दिखाई देती हैं उसी प्रकार केवज्ञान होने के बाद भगवान को सब एक साथ वर्तमान, भूत और भविष्य एक साथ दिखाई देता है। इसी को केवलज्ञान कहते हैं।


दीक्षा के बाद आत्म साधना करते हुए केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। केवलज्ञान होते ही सौधर्म इंद्र अपने देव परिवार के साथ केवलज्ञान की पूजा करने वन में आते हैं। सौधर्म इंद्र की आज्ञा से कुबेर समवशरण की रचना करते हैं। समवशरण में गणधर की उपस्थिति में तीर्थंकर की दिव्य ध्वनि निखरती है। मोक्ष में जाने से कुछ समय पहले समवशरण का विलय हो जाता है और तीर्थंकर का विहार बन्द हो जाता है।

दु:ख से नहीं, दोष से मुक्ति चाहिए
बेंगलूरु. जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर ने रविवार को धर्मसभा में कहा कि मुझे दु:ख मुक्ति नहीं, दोष मुक्ति चाहिए। सारी दुनिया दुख को खराब कहती है और दु:ख से डरती है, दूर भागती है। जीवन में दु:ख न आए, इसके लिए प्रयत्नशील बनती है। उन्होंने कहा कि है प्रभु, आप और आपका शासन दु:ख को नहीं, दोष (पाप प्रवृत्ति) को भयंकर कहता है। जब तक जीवन में पाप प्रवृत्ति चालू होगी, तब तक भविष्य में दु:ख आने ही वाला है। पाप प्रवृत्ति बंद होगी तो दु:ख स्वत: बंद हो जाएगा।