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Temple Tax: कर्नाटक में मंदिरों की आमदनी में सरकार की हिस्सेदारी पर सियासी घमासान

विधेयक को लेकर विपक्ष ने सरकार को घेरा

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बेंगलूरु. राज्य में देवस्थानम विभाग के अधीन आने वाले अमीर मंदिरों में सरकार की हिस्सेदारी में बदलाव और मंदिरों की प्रबंधन समिति में दूसरे समुदायों के लोगों को भी शामिल करने के प्रस्ताव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है। विपक्ष ने इसे लेकर सरकार पर निशाना साधा। हालांकि,देवस्थानम मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने गुरुवार को दस लाख रुपए से अधिक की वार्षिक सकल आय वाले मंदिरों से धन इकट्ठा करने के राज्य सरकार के कदम का बचाव करते हुए कहा कि यह प्रावधान काफी पुराना है और सरकार ने सिर्फ मंदिरों की कमाई में राज्य धार्मिक परिषद की हिस्सेदारी का स्लैब ही बदला है। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने आरोप लगाया कि कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक-2024 के सहारे कांग्रेस सरकार मंदिर के पैसे से अपना खाली खजाना भरना चाहती है।

सरकार ने कहा कि बुधवार को विधानसभा में पारित विधेयक सामान्य पूल फंड (सीपीएफ) की राशि बढ़ाने, अधिसूचित संस्थानों की प्रबंधन समिति में विश्व हिंदू मंदिर वास्तुकला और मूर्तिकला में कुशल एक व्यक्ति को शामिल करने के लिए आवश्यक था। साथ ही तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए मंदिरों और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए जिला और राज्य स्तरीय समितियां बनाई जाएगी।दो दशक से लागू है व्यवस्था: मंत्री

रेड्डी ने कहा कि यह प्रावधान नया नहीं है बल्कि 2003 से अस्तित्व में है। राज्य में पांच लाख रुपए से कम की आय वाले 34 हजार सी-ग्रेड मंदिर हैं, जहां से राज्य धार्मिक परिषद को कोई पैसा नहीं मिलता है। धार्मिक परिषद देवस्थानम विभाग के मंदिरों के प्रबंधन और तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाओं की व्यवस्था देखती है। रेड्डी ने कहा कि नए प्रावधान में यदि आय 10 लाख रुपए तक है तो मंदिर को धार्मिक परिषद को भुगतान करने से मुक्त कर दिया गया है।

पुजारियों को बीमा, बच्चों को छात्रवृत्ति देने का प्रस्ताव

मंत्री ने कहा, अगर पैसा धार्मिक परिषद तक पहुंचता है तो हम पुजारियों बीमा कवर, मृत्यु पर परिजनों को आर्थिक मदद प्रदान कर सकते हैं। कम से कम पांच लाख रुपए के बीमा प्रीमियम का भुगतान करने के लिए हमें 7 से 8 करोड़ रुपए की आवश्यकता है। मंत्री ने कहा कि सरकार मंदिर के पुजारियों के बच्चों को छात्रवृत्ति प्रदान करना चाहती है, जिसके लिए सालाना 5 से 6 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी। इस पूरी राशि से केवल मंदिर के पुजारियों को लाभ होगा, जिनमें से कई की हालत खराब है।क्या करेगी समितियां

सरकारी सूत्रों ने कहा कि विधेयक के पीछे का उद्देश्य समूह ए मंदिरों के अधिकार क्षेत्र में तीर्थयात्रियों को सुविधाएं और सुरक्षा प्रदान करना है। भवनों आदि के निर्माण और रखरखाव, बिजली आपूर्ति और रखरखाव, जल आपूर्ति और स्वच्छता, मनोरंजन केंद्रों और पुस्तकालयों के निर्माण के संबंध में प्रस्तावों की जांच, समीक्षा और प्रस्तुत करने के लिए एक जिला स्तरीय और राज्य उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा।

कितना हिस्सा पहले

राजस्व- राशि

0-5 लाख : शून्य

5-25 लाख : 5%

25 लाख : 10 %

कितना हिस्सा अब

0-10 लाख : शून्य

10 लाख- 1 करोड़ : 5%

1 करोड़ : 10 %

विरोध क्यों

1. धारा 19(ए) में उल्लिखित है कि सीपीएफ में एकत्रित धन का उपयोग गरीब और जरूरतमंद संगठनों के लाभ के लिए किया जा सकता है। आलोचकों का तर्क है कि अस्पष्ट शब्दावली मंदिर के धन के संभावित दुरुपयोग का द्वार खोलती है।

2. धारा 25 में समग्र संस्थानों की प्रबंधन समिति में हिंदू और अन्य धार्मिक समुदायों, दोनों के सदस्यों की नियुक्ति की अनुमति देता है। आलोचक इसे मंदिरों की स्वायत्तता और पारंपरिक प्रबंधन संरचनाओं का उल्लंघन बता रहे हैं।

सरकार का तर्क

1. नए विधेयक से देवस्थानम विभाग के मंदिरों के प्रबंधन और वित्तीय मामलों का बेहतर नियमन हो सकेगा। एकत्रित धन का उपयोग धार्मिक परिषद इन मंदिरों की व्यवस्थाओं, तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाओं के विस्तार और पुजारियों के कल्याण के लिए करेगा। ।

2. पुजारियों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के साथ पुजारियों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए छात्रवृत्ति दी जाएगी। साथ ही कम सुविधा और राजस्व वाले सी-ग्रेड मंदिरों की स्थिति में सुधार का लक्ष्य।

फैक्ट फाइल

35,000 मंदिर हैं देवस्थानम विभाग के अधीन

-205 मंदिर समूह ए में ( वार्षिक आय: 25 लाख रुपए से अधिक)-193 मंदिर समूह बी में ( वार्षिक आय: 5से 25 लाख रुपए के बीच )

-34,000 मंदिर समूह सी में ( वार्षिक आय: 5 लाख से रुपए से कम*)- 40 हजार पुजारी कार्यरत हैं मंदिरों में

* इन मंदिरों से सरकार को राजस्व में हिस्सेदारी नहीं मिलती है

भाजपा हमलावर, कांग्रेस ने किया पलटवार

इस मामले को लेकर जहां भाजपा जहां कांग्रेस सरकार के खिलाफ आक्रामक रही वहीं, कांग्रेस ने भी पलटवार किया। मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने भाजपा पर जनता को गुमराह करने और राजनीतिक फायदे के लिए ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया। सिद्धू ने सोशल मीडिया पोस्ट में किसी भी तरह के गलत आवंटन से इनकार किया और हिंदू धार्मिक संस्थान कानून में संशोधन के बारे में बताया।