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कर्मों का अतिक्रमण दूर करने को प्रतिक्रमण अत्यंत जरूरी

अनंत चतुर्दशी के अवसर पर आयोजित श्रावक युग प्रतिक्रमण में स्वस्ति चारुकीर्ति स्वामी ने प्रतिक्रमण में बैठकर आत्मा का प्रक्षालन किया।

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कर्मों का अतिक्रमण दूर करने को प्रतिक्रमण अत्यंत जरूरी

कर्मों का अतिक्रमण दूर करने को प्रतिक्रमण अत्यंत जरूरी

श्रवणबेलगोला. अनंत चतुर्दशी के अवसर पर आयोजित श्रावक युग प्रतिक्रमण में स्वस्ति चारुकीर्ति स्वामी ने प्रतिक्रमण में बैठकर आत्मा का प्रक्षालन किया। प्रतिक्रमण में प्रज्ञासागर मुनि ने कहा कि प्रतिक्रमण अर्थात आत्मा का प्रक्षालन। वर्षभर में हुई गलतियों के त्रुटियों के हृदय से प्रायश्चित करने का नाम प्रतिक्रमण है। आत्मा में हुए कर्मों के अतिक्रमण को दूर करने के लिए प्रतिक्रमण करना अत्यंत जरुरी है। इसलिए साधु संत तो प्रतिदिन प्रतिक्रमण करते हैं पर श्रावक रोज नहीं कर पाते लेकिन दसलक्षण पर्व के अवसर पर कम से कम एक बार तो ये प्रतिक्रमण करना हर श्रावक का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए।


उन्होंने कहा कि प्रभु महावीर स्वामी ने सत्य के साधकों, श्रमण और श्रावकों के लिए तीन सूत्र प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग दिए हैं। अतीत के पापों के प्रक्षालन के लिए प्रभु ने प्रतिक्रमण नाम का प्रथम सूत्र दिया। दूसरा सूत्र अनागत के पापों से बचने के लिए प्रत्याख्यान का दिया और तीसरा सूत्र आत्मनिरीक्षण के लिए कायोत्सर्ग यानी सामायिक का दिया है। ये तीनों सूत्र ही अपने अपने स्थान पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इनमें भी पापों के बोझ का हल्का करने की सर्वश्रेष्ठ भूमिका प्रतिक्रमण निभाता है।


उन्होंने कहा कि अपने पापों का वमन करने के लिए पापों से मुक्त होने के लिए अपने कुकृत्यों का विमोचन करने के लिए प्रतिक्रमण करना जरुरी है। पापों की स्वीकृति का नाम प्रतिक्रमण है या यू कहें स्वयं के प्रति किए जाने वाले आक्रमण को प्रतिक्रमण कहते हैं।


स्वस्ति चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी ने कहा कि प्रज्ञासागर मुनि ने प्रतिक्रमण के माध्यम से श्रवणबेलगोला में एक नई परम्परा का शुभारंभ किया है जिसे हमेशा याद रखा जाएगा।

वचन से होती है इंसान की पहचान
बेंगलूरु. हनुमंतनर जैन स्थानक में साध्वी सुप्रिया ने सोमवार को प्रवन में नौ प्रकार के पुण्यों में सातवें वचन पुण्य पर आधारित ‘मधुर वाणी परम कल्याणी’ विषय पर कहा कि मधुर वाणी मानव की संपत्ति है। व्यक्ति को हमेशा हित, मित , परिमित, मधुर मीठे वचन बोलने चाहिए। उन्होंने कहा कि जैसे कोयल अपनी मधुर आवाज से आनंदित करते हुए सबको अच्छी लगती है, वहीं कौआ अपने कर्कश आवाज से सर्वत्र तिरस्कार का पात्र बनता है। ठीक वैसे ही मधुर वचन बोलने से सबका आदर पात्र बनकर पूजनीय बनता है।


साध्वी ने कटु वच के दुष्परिणाम बताते हुए आगम में वर्णित महाशतक श्रावक रेवती के जीवन के घटना प्रसंग पर विस्तार से प्रकाश डाला। साध्वी सुमित्रा ने सागर दत्त चरित्र का वांचन करते हुए सबको मंगल पाठ दिया। संचालन संजय कुमार कचोलिया ने किया। तपाराधकों ने ३, ४, ९ आदि तप के पच्चखाण ग्रहण किए। तपस्वी हेमा कंवर कांकरिया का संघ द्वारा अभिनंदन किया गया।