
आत्मबल ही मानसिक शक्तियों का आधार है- देवेंद्रसागर
बेंगलूरु. संतोषी महा सुखी, जब आए संतोष धन सब धन धूरि समान। ये कहावतें सुख वास्तविकता के बहुत समीप है। यह बात देवेंद्रसागर सूरी ने अपने चातुर्मास प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि संतोष से सर्वोत्तम सुख प्राप्त होता है। फिर भी यह सत्यता भाषाओं के साथ बदलती है। सुख क्या है? इसके उत्तर के लिए हमें अपने मन को टटोलना होगा, उसको समझना होगा। सामान्य व्यक्ति सुख की इच्छा करता है और यह उसका अधिकार भी है। व्यावहारिक रूप से सुख के लिए किए गए प्रयासों की परिणति दु:ख में ही होती है। जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं में दृष्टिभेद से बहुत बड़ा अंतर हो जाता है। आधा-आधा पानी का गिलास, एक के लिए गिलास आधा खाली है। दूसरे के लिए आधा भरा है। दोनों का तात्पर्य एक था पर जिसका दृष्टिकोण नकारात्मक था, उसका ध्यान अभाव की ओर गया तथा जिसका चिंतन सकारात्मक था उसका भाव की ओर गया। हमें सुखी होने के लिए छोटी-छोटी खुशियों यथा फूलों को खिलते देखना, सूर्य के उगते और अस्त होती लालिमा को देखकर सुखी होना आदि सीखना होगा क्योंकि पर्वत की चोटी पर चढऩे से पहले हमें हमारे घर की सीढिय़ों पर चढऩे का अभ्यास करना चाहिए। धरती को हिलाने के लिए धरती से बाहर खड़े होने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है-आत्मा की शक्ति को जानने-जगाने की।Ó यही शक्ति आत्मबल है जो लौकिक एवं अलौकिक सफलताओं का आधार है। महावीर ने इसी आत्मबल से अध्यात्म और चिंतन की दिशाएं बदल दीं। वास्तव में आत्मबल ही हमारी समस्त शारीरिक और मानसिक शक्तियों का आधार है और इसी से सुख की उत्पत्ति होता है।आत्मबल, आत्मज्ञान और आत्मसंयम केवल यही तीन जीवन को परम शक्तिसंपन्न बना देते हैं।Ó इस प्रकार मानव को सुखी होने के लिए उसे अपने मनपसंद कार्यों यथा एकांत, निस्वार्थ प्रेम, वृद्ध, अपाहिज, जरूरत मंदों की सहायता आदि कार्य अपनी शक्ति व सामथ्र्य से करते रहना चाहिए।
दु:ख को सुख में बदलने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास बहुत जरूरी है। एक ही परिस्थिति और घटना को दो व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार से ग्रहण करते हैं। जिसका चिंतन सकारात्मक होता है, वह अभाव को भी भाव तथा दु:ख को भी सुख में बदलने में सफल हो सकता है। जिसका विचार नकारात्मक होता है, वह सुख को भी दु:ख में परिवर्तित कर देता है।
Published on:
28 Jul 2020 09:42 pm
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