- कर्नाटक उच्च न्यायालय का आदेश
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि निर्धारित अवधि के भीतर जन्म प्रमाण पत्र में बच्चे का नाम शामिल करने में विफल रहने वाले माता-पिता की गलती के लिए किसी बच्चे को पीड़ित नहीं किया जा सकता। अदालत ने अधिकारियों को 23 साल की उस युवती को संशोधित जन्म प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया है क्योंकि उसके माता-पिता ने उसके जन्म के समय उसका नाम नहीं भरा था।
अदालत ने बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रार को कर्नाटक जन्म और मृत्यु पंजीकरण नियम, 1999 के नियम 10 के तहत जन्म प्रमाण पत्र में बच्चे का नाम शामिल करने की निर्धारित समय सीमा शामिल करने का निर्देश भी दिया। ऐसे प्रमाणपत्र मूल रूप से केवल बच्चे के लिंग, जन्म तिथि और जन्म स्थान, माता-पिता के नाम के साथ जारी किए जाते हैं लेकिन बच्चे का नाम खाली छोड़ दिया जाता है। न्यायाधीश सूरज गोविंदराज ने केरल के एर्नाकुलम की मूल निवासी और वर्तमान में स्पेन में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम कर रही फातिमा रिचेल माथेर द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्देश जारी किए। उसने साल 2000 में अपने माता-पिता को जारी किए गए जन्म प्रमाण पत्र में अपना नाम लिखने के लिए बीबीएमपी अधिकारियों के समक्ष एक आवेदन दिया था क्योंकि प्रमाणपत्र में उसका नाम नहीं था। हालाँकि, अधिकारियों ने जुलाई 2023 में उसके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि बच्चे का नाम शामिल करने के लिए नियमों में निर्दिष्ट अवधि तीन साल पहले समाप्त हो गई थी।