
बेलगावी में विधानमंडल के शीतकालीन अधिवेशन में इस बार उत्तर कर्नाटक पर शुरुआत में ही चर्चा कराने की सराहनीय पहल हुई, लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के मुद्दा पूरे सप्ताह हावी रहा। उत्तर कर्नाटक के मुद्दे पर इस सप्ताह भी चर्चा जारी रहने की उम्मीद है और मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या सदन में उसका जवाब भी देंगे। विपक्ष ही नहीं सत्तापक्ष के विधायकों को भी उत्तर कर्नाटक की समस्याओं के समाधान के लिए उठाए गए कदमों के बारे में मुख्यमंत्री से जवाब की उम्मीद है।
अधिवेशन के शुरू होते ही जब यह मुद्दा सदन में आया, तो सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों तरफ के विधायकों के निशाने पर तो सिद्धरामय्या सरकार आ गई। कित्तूर कर्नाटक और कल्याण कर्नाटक क्षेत्र के कांग्रेस विधायकों ने इस मुद्दे पर अपनी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस विधायक राजू कागे ने तो उत्तर कर्नाटक को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग फिर दोहराई। वह प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री को भी इसके लिए पत्र लिख चुके हैं। हालांकि, उनकी मांग को किसी का समर्थन नहीं मिला, लेकिन उत्तर कर्नाटक की समस्याओं को प्रमुखता से उठाने में विधायक जरूर आगे आए।
कांग्रेस विधायक व नीति एवं योजना आयोग के उपाध्यक्ष बीआर पाटिल ने यहां तक कहा कि कुछ मंत्रियों को यह भी नहीं पता कि बेलगावी और कलबुर्गी के बीच की दूरी 450 किलोमीटर है। ऐसे मंत्रियों के साथ विकास कैसे संभव है? मंत्रियों को राज्य के प्रति व्यापक दृष्टिकोण रखना होगा और समग्र विकास के लिए प्रयास करने होंगे। तभी विकास संभव हो पाएगा। पाटिल ने मंत्रियों की उदासीनता, क्षेत्र में सडक़ों की खराब हालत और अधूरे वादों का उल्लेख करते हुए अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने पूछा कि कितने मंत्रियों ने खानपुर, औराद, निप्पाणी, बसवकल्याण या गुरुमिटकल का दौरा किया है। कुछ को तो यह भी नहीं पता कि ऐसी जगहें मौजूद भी हैं। पाटिल और क्षेत्र के अन्य विधायक लोगों की भावनाओं को व्यक्त कर रहे थे, जिन्हें लगता है कि उत्तर कर्नाटक में विकास गति को बढ़ावा देने और इसे राज्य के बाकी हिस्सों के बराबर लाने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए।
विपक्षी दल भाजपा भी उत्तर कर्नाटक के मुद्दे पर सरकार को घेरने में पीछे नहीं रही। विपक्ष के नेता आर अशोक ने कहा कि सरकार के मंत्री केवल नाश्ता और डिनर बैठकों में समय बर्बाद कर रहे हैं। सरकार को पहले नेतृत्व का मुद्दा सुलझाना चाहिए। यह राज्य के लोगों के साथ अन्याय है। शीतकालीन अधिवेशन ेमें अब और 5 दिन बचे हैं और सभी की निगाहें मुख्यमंत्री के जवाब पर है। हालांकि, इस बात की उत्सुकता अधिक है, लेकिन नेतृत्व विवाद के मुद्दे पर क्या मुख्यमंत्री कुछ कहेंगे?
दरअसल, नाश्ता बैठकों के बाद यह समझा जा रहा था कि नेतृत्व विवाद कम से कम शीतकालीन अधिवेशन तक टल गया है, लेकिन नेताओं के बेलगावी पहुंचते ही दूरियां साफ नजर आने लगीं। मुख्यमंत्री के बेटे यतींद्र सिद्धरामय्या की इस टिप्पणी से कि उनके पिता पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे, नेतृत्व विवाद हावी हो गया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यतींद्र की यह टिप्पणी मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या खेमे के अंदर बेचैनी के संकेत हैं। यतींद्र का यह बयान डीके शिवकुमार खेमे को उकसाने के तौर पर भी देखा गया। अगर दोनों तरफ से बयानबाजी होती है और स्थिति बिगड़ती है, तो यह डीके शिवकुमार के खिलाफ जाएगा। पार्टी हाईकमान हालात बिगडऩे पर बदलाव की स्थिति में नहीं होगा। शिवकुमार को अगर मुख्यमंत्री पद मिलता है, तो यह पार्टी हाईकमान के भरोसे ही मिलेगा। पार्टी में चल रहे घटनाक्रम से वाकिफ लोगों का मानना है कि सत्ता संतुलन धीरे-धीरे डीके शिवकुमार के पक्ष में झुक रहा है। हाईकमान की चुप्पी उसकी रणनीतिक चाल है। अगर केंद्रीय नेतृत्व इस बात को लेकर आश्वस्त होता कि सिद्धरामय्या ही 5 साल तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे, तो अब तक यह मामला खत्म हो गया होता।
Published on:
15 Dec 2025 08:02 pm
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