
बेंगलूरु. तप आध्यात्मिक जीवन की आधारशिला है। तपस्वियों के जीवन की साधारण घटना भी आम आदमी के लिए आश्चर्य व कौतूहल का विषय बन जाती है। तप आधार सब सृष्टि भवानी लिखकर संत तुलसी ने इसे महिमा मंडित किया है।यह विचार आचार्य देवेन्द्रसागर के हैं। वे चैत्रमास की शाश्वत नवपद ओली की नौ दिवसीय तपस्या पारणे के साथ पूरा होने के मौके पर राजाजीनगर के सलोत जैन आराधना भवन में विचार व्यक्त कर रहे थे।अमृतलाल समरथमल परमार परिवार की ओर से आचार्य देवेन्द्रसागर एवं मुनि महापद्मसागर की निश्रा में हुई आराधना में 200 से अधिक तपस्वियों ने नौ दिन तक आयंबिल कर नवपद जाप किया।
आचार्य ने कहा कि तपस्वी अपने जीवन की दशा स्वयं निर्धारित करते हैं, जबकि सामान्य व्यक्तियों का जीवन पूर्णत: परिस्थितियों के अधीन होता है। तपस्वी तप की ऊर्जा से परिस्थिति की प्रतिकूलता को भी अपने अनुकूल बना लेते हैं। सुनिश्चित संकल्प के साथ तपस्या पर अमल गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए। तप से हमारे सुप्त संस्कारों का जागरण होता है और यह जागरण हमारे आध्यात्मिक विकास को गति देता है। तप का उद्देश्य मात्र ऊर्जा का अर्जन ही नहीं, उस ऊर्जा का संरक्षण व सुनियोजन भी है।
इस मौके पर राजाजीनगर शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन संघ की ओर से अध्यक्ष जयंतीलाल भाई, ट्रस्टी प्रवीण भाई, केतन भाई ने भी ओली आराधकों का अभिनंदन किया।
Published on:
07 Apr 2023 07:24 pm
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