18 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

मोबाइल संदेश के जमाने में रास्ता भटक रही हैं चिठ्ठियां

डाक विभाग के कर्नाटक वृत्त को छह माह में हजारों रुपए और कीमती वस्तुएं बेनामी तौर पर मिली हैं। ये ऐसे पत्र, पार्सल के माध्यम से प्राप्त हुई हैं, जिन पर

2 min read
Google source verification
The letters are missing their path in Mobile era

The letters are missing their path in Mobile era

बेंगलूरु . डाक विभाग के कर्नाटक वृत्त को छह माह में हजारों रुपए और कीमती वस्तुएं बेनामी तौर पर मिली हैं। ये ऐसे पत्र, पार्सल के माध्यम से प्राप्त हुई हैं, जिन पर लिखे प्राप्तकर्ता के पते सही नहीं थे अथवा उन पतों पर उन्हें ग्रहण करने वाला कोई नहीं मिला और साथ ही इन पर भेजने वालों के भी नाम, पते नहीं होते। डाक विभाग के हरेक वृत्त में एक ऐसा कार्यालय होता है, जिसे विभागीय भाषा में रिटर्नड लेटर ऑफिस (आरएलओ) नाम दिया गया है। इन कार्यालयों को मृत पत्र कार्यालय (डीएलओ) के नाम से भी जाना जाता है। साल २०१७ के आखिरी छह माह में कर्नाटक वृत्त के आरएलओ में ८००० से अधिक वस्तुएं, ७०० पार्सल और बहुत से साधारण पत्र मिले हैं।
कर्नाटक वृत्त के महा डाकपाल डॉ. चाल्र्स लोबो ने कहा कि डीएलओ में प्राप्त धनराशि ९२२० रुपए है। इसके अतिरिक्त कीमती बर्तन, आभूषण और कुछ मूर्तियां भी हैं। इन चीजों को विधिवत नीलाम किया जाएगा। हालांकि यह नीलामी तभी होगी, जब पर्याप्त संख्या में इनका भंडार हो जाएगा।
वृत्त में बेन्सन टाउन में आरएलओ है, जिसमें ऐसे पत्रों को खोला जाता है। जिसके न तो कोई प्राप्तकर्ता मिले और न ही उनके प्रेषकों का कोई अता-पता था। कई मामलों में गलत पते और अस्पष्ट लेखनी भी डीएलओ में पत्रों के आने की वजह होती है।
१८१ साल पहले की है ये व्यवस्था
आरएलओ की स्थापना आजादी से पहले की है। करीब १८१ वर्ष पूर्व औपनिवेशिक काल में ऐसे पत्रों की खातिर अलग से शाखा बनाई गई थी। यहां पहुंचने वाले पत्रों को कर्मचारी उनकी श्रेणी के आधार पर पृथक करते हैं। डा. लोबो ने बताया कि जब किसी पत्र का कोई प्राप्तकर्ता नहीं मिलता तो स्वभाविक तौर पर उन्हें प्रेषक को वापस भेजने की प्रक्रिया होती है, मगर प्रेषक और प्राप्तकर्ता दोनों की पहचान में असमर्थता के बाद संबंधित पत्रों को डीएलओ पहुंचाया जाता है।
अपंजीकृत पत्रों को एक माह और पंजीकृत पत्रों को ३ माह तक सुरक्षित रखा जाता है, उसके बाद उनका निस्तारण होता है। एक दशक पूर्व आरएलओ में २० कर्मचारी थे, जो कन्नड़, तमिल, तेलुगू, मलयालम, गुजराती, उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी भाषा को पढ़ सकते थे। कर्मचारियों ने एक दिन २००० से भी अधिक पत्रों का निवारण किया था।
१० साल में ३ जगह घूमा आरएलओ
पिछले एक दशक में आरएलओ को तीन स्थानों पर स्थानांतरित किया गया है। पहले यह आरटी नगर में था उसके बाद राजभवन मार्ग पर जीपीओ से बेन्सन टाउन में शुरू किया गया। एक कर्मचारी ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि कार्यालय को आरएलओ की बजाय रोटेटिंग लेटर ऑफिस (आरएलओ) नाम दिया जाना चाहिए।

ये भी पढ़ें

image