स्वाध्याय दिवस पर प्रवचन
मैसूरु. मुनि रश्मि कुमार ने पर्युषण पर्व के द्वितीय दिवस पर अग्रहार स्थित तेरापंथ भवन में स्वाध्याय दिवस पर कहा कि भगवान महावीर ने मन को एकाग्र करने के लिए स्वाध्याय को सर्व सुलभ और आत्म शुद्धिकारक तप के 12 अंगों में से एक महत्त्वपूर्ण अंग बतलाया है। वृहत् कल्प के अनुसार स्वाध्याय के समान कोई तप नहीं है। स्वाध्याय की विस्तृत महिमा व प्रचलन के पीछे रहस्य यह है कि पुस्तकों की संगति में बैठकर मनुष्य स्वयं को संवारता सुधारता है,जीने की कला सीखता है और उन कुंजियों को पा लेता है जिनसे अनंत ज्ञान व आनंद रूप रत्नों के बंद खजानों के ताले खुल जाते हैं। श्रेष्ठ पुस्तकों का स्वाध्याय, बहुमूल्य रत्नों से बढ़कर कीमती है। चूंकि रत्न बाहरी रूप को निखारते हैं, जबकि स्वाध्याय अंतःकरण को निर्मल बनाता है।
स्वाध्याय का सहज और सीधा अर्थ है कि स्व का अध्ययन,तदर्थ,उत्तम पुस्तकों, ग्रंथों का पारायण। मनुष्य ने जो कुछ भी पाया है, वह पुस्तकों के जादू भरे पन्नों में बंद है। इसलिए सर्व प्रथम आवश्यकता है,उत्कृष्ट पुस्तकों की। भगवान महावीर स्वामी की जीवन यात्रा में नयसार भव का भी वर्णन आया है। मुनि प्रियांशु कुमार ने विचार व्यक्त किए। मुनि ने श्रावकों को स्वाध्याय का संकल्प दिलाया।