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मतभेद होने पर भी मनभेद नहीं होना चाहिए-मुनि सुधाकर

नवान्हिक अनुष्ठान

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मतभेद होने पर भी मनभेद नहीं होना चाहिए-मुनि सुधाकर

मतभेद होने पर भी मनभेद नहीं होना चाहिए-मुनि सुधाकर

बेंगलूरु. मुनि सुधाकर ने हनुमंतनगर स्थित तेरापंथ भवन में नवान्हिक आध्यात्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत पांचवे दिन श्रद्धालुओं से धर्मचर्चा करते हुए कहा हमारा जीवन विरोधी पदार्थों विचारों व घटनाओं का संगम है। हमारे शरीर में अग्नि, पानी, वायु आदि विरोधी द्रव्य हैं। स्वास्थ्य के लिए इनका संतुलन जरूरी है, अग्नि का मंद होना या कुपित होना बीमारी है। इसी प्रकार जीवन में हमें अनेकता में एकता विषमता में क्षमता से जीने का अभ्यास करना चाहिए। मनुष्य विचारशील प्राणी हैं, वह मशीन का उत्पादन नहीं है उस में मतभेद होना स्वभाविक है। अनेकांतवाद के अनुसार मतभेद होने पर भी मनभेद नहीं होना चाहिए। अपने विचारों के प्रति वफादार और समर्पित रहना चाहिए। इसके साथ ही दूसरों के विचारों और अधिकारों के प्रति भी उदार और सहनशील होना चाहिए। हमें संसार में जितने भी जड़ और चेतन पदार्थ हैं उनके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए। सच्चा ज्ञानी वह जो आत्म तुला की चेतना को जगाता है। सब के प्रति समता और समानता की भावना का विकास करता है। बाहर की बातों के आधार पर किसी को छोटा बड़ा समझना भूल है। मुनि सुधाकर ने कहा अहिंसा की साधना के लिए जीवन में गुण ग्राहक था। और कृतज्ञता का विकास जरूरी है, हिंसा का संबंध केवल प्राण वध करना ही नहीं है। विचारों की शुद्धि और पवित्रता के बिना अहिंसा की साधना नहीं हो सकती है। ईष्र्या और लालच की मनोवृति मानसिक हिंसा है। आज चारों और अहम का टकराव बढ़ रहा है। धार्मिक लोगों के व्यवहार में उदारता की भावना का विकास जरूरी है। जो महापुरुष होते हैं वह सब की सेवा के प्रति कृतज्ञ होते हैं। हमारे मस्तिष्क में हिंसा के बीज भी है, और अहिंसा से भी हमें हिंसा के बीज को मिटाकर अहिंसा के बीजों को अंकुरित और विकसित करना चाहिए।